आचार्य पंडित सनत कुमार द्विवेदी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) :कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। इस उपलक्ष्य में लोग दीपदान करते हैं और इसे देवताओं की दिवाली कहते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को स्नान और दान का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन स्नान और दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। देव दिवाली के दिन काशी यानी वाराणसी में एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इस दिन काशी के सारे घाट रोशनी से जगमगा उठते हैं। हजारों लोग घाटों पर दीये जलाते हैं और गंगा नदी में दीपदान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। आइए, विस्तार से जानते हैं देव दिवाली क्यों मनाते हैं और क्यों कहा जाता है इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा और क्या है देव दिवाली की कथा।
त्रिपुरासुर ने स्वर्ग में मचा दिया था आंतक
देव दिवाली की कथा महाभारत के कर्णपर्व में मिलती है। देव दिवाली की इस कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। त्रिपुरासुर तारकासुर के तीन पुत्र थे – तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा, लेकिन उन्हें मना कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने एक ऐसा वरदान मांगा जिससे उनकी मृत्यु लगभग असंभव हो जाए। उन्होंने वरदान मांगा कि उनकी मृत्यु केवल तभी हो जब तीनों अभिजित नक्षत्र में एक पंक्ति में हों और कोई उन्हें एक ही बाण से मार दे।
त्रिपुरासुर के वध के लिए भगवान शिव ने बनाया एक दिव्य रथ
वरदान पाकर त्रिपुरासुर बहुत शक्तिशाली हो गए और उन्होंने तीनों लोकों में आतंक मचाना शुरू कर दिया। वे जहां भी जाते, लोगों और ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करते थे। देवता भी उनके अत्याचारों से परेशान हो गए और उन्होंने भगवान शिव से ‘त्राहिमाम-त्राहिमाम’ कहना शुरू कर दिया। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध करने का संकल्प लिया।
त्रिपुरासुर का वध करके महादेव कहलाए ‘त्रिपुरारी’
त्रिपुरासुर के वध के लिए, भगवान शिव ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया। उन्होंने पृथ्वी को रथ बनाया, सूर्य और चंद्रमा को पहिए बनाया और मेरु पर्वत को धनुष बनाया। भगवान विष्णु बाण बने और वासुकी नाग धनुष की डोर बने। फिर भगवान शिव उस असंभव रथ पर सवार हुए और अभिजित नक्षत्र में जब तीनों पुरियां एक सीध में आईं, तो उन्होंने एक ही बाण से तीनों पुरियों को भस्म कर दिया। इस प्रकार, तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली – त्रिपुरासुर का अंत हुआ। त्रिपुरासुर के वध के बाद भगवान शिव ‘त्रिपुरारी’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
कार्तिक पूर्णिमा पर देवताओं ने मनाई दिवाली
त्रिपुरासुर के वध का दिन कार्तिक पूर्णिमा का दिन था। देवता भगवान शिव की इस विजय से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान शिव की नगरी काशी में दीप दान कर खुशियां मनाई। कहा जाता है कि तभी से कार्तिक पूर्णिमा को ‘देव दिवाली’ कहा जाने लगा क्योंकि सभी देवता पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाने आए थे। देव दिवाली पर शिव की नगरी काशी यानी वाराणसी में एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। देव दिवाली पर गंगा के तट पर असंख्य दीए जलाकर देव दिवाली मनाई जाती है।