बनारस में ही क्यों मनाई जाती है देव दीपावली?

Sanat Kumar Dwivedi

आचार्य पंडित सनत कुमार द्विवेदी
बिलासपुर छत्तीसगढ़ :
बनारस में ही क्यों मनाई जाती है देव दीपावली? उत्तर प्रदेश के वाराणसी, जिसे शिव की नगरी काशी भी कहते हैं, देव दीपावली धूमधाम से मनाया जाता है। बनारस के गंगा घाट को देव दीपावली के मौके पर लाखों दीयों से जगमगा दिया जाता है। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं। हालांकि अब कई राज्यों और शहरों में देव दीपावली मनाई जाने लगी है, जिसमें अयोध्या का नाम भी शामिल है लेकिन बनारस की देव दीपावली का धार्मिक कारण और इतिहास है।

क्यों मनाते हैं देव दीपावली?

दीपावली का पर्व भगवान श्रीराम से जुड़ा हुआ है। लेकिन देव दीपावली भगवान शिव और माता पार्वती से संबंधित पर्व है। देव दीपावली को देवताओं की दीवाली भी कह सकते हैं। कथा प्रचलित है कि भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का इस दिन वध किया था। इसी खुशी में देवी-देवताओं ने दीपक जलाए और जीत का जश्न मनाया। तभी से देव दीपावली मनाने की परंपरा चली आ रही है।

कब मनाई जाती है देव दीपावली?

देव दीपावली, दिवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली का पर्व मनाते हैं। ये पर्व इसलिए भी खास है क्योंकि दिवाली के बाद वाली पहली एकादशी (देवउठनी एकादशी) को माता तुलसी का विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु) से हुआ था और पूर्णिमा तिथि को तुलसी मां की अपने ससुराल विदाई हुई थी।

देव दीपावली 2024 में कब है?

इस वर्ष देव दीपावली 15 नवंबर 2024 को मनाई जा रही है। इस दिन कार्तिक पूर्णिमा की तिथि है। साथ ही गुरु गोविंद देव की जयंती भी मनाई जाती है। देव दीपावली के दिन घर पर दीपक जलाना, माता तुलसी की पूजा और भगवान शिव और पार्वती का पूजन किया जाता है। साथ ही गंगा में स्नान करने का भी महत्व है।

देव दीपावली का बनारस से नाता

उत्तर प्रदेश की पावन नगरी काशी, भगवान शिव का अतिप्रिय स्थल है। मान्यता है कि धरती पर भगवान शिव मां पार्वती के साथ काशी में ही वास करते हैं। जब उन्होंने त्रिपुरासुर के अत्याचारों से देवताओं को बचाने के लिए राक्षस का वध किया तो सभी देव देवतागण भगवान शिव से मिलने के लिए काशी नगरी पहुंचे। यहां देवताओं ने गंगा में स्नान किया और दीपदाप कर खुशियां मनाईं। इसी कारण काशी में देव दीपावली को बहुत ही धूमधाम से मनाने की परंपरा चली आ रही है।

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