Lalu Yadav News: कांति सिंह को CM बनाने की घोषणा हो चुकी थी, एक फोन और बन गई राबड़ी देवी

Sushmita Mukherjee
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Lalu Yadav News : बात 25 जुलाई 1997 की है। जनता दल से टूटकर राजद बने 20 दिन ही हुआ था। मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के सरकारी एक अणे मार्ग में उनके स्थान पर नए सी.एम. चयन को लेकर बैठक चल रही थी। उस दिन सांसद कांति सिंह काफी सज धज कर आई थी। मनोबल भी काफी ऊंचा था। लालू प्रसाद से उनकी काफी नजदीकियां थी। उस दिन लालू प्रसाद अपना राज पाठ उनके हवाले करने वाले थे। संभवत: इसका संकेत भी कांति सिंह को रहा होगा। शायद उस दिन बुलंद हौसले का राज भी यही था। सब कुछ तय हो गया था। तय होते ही एक फोन कॉल ने सब कुछ बदल दिया। उसी कॉल ने तय किया कि कांति सिंह CM नहीं बनेंगी अब उनकी जगह राबड़ी देवी को सीएम बनाया जाएगा। ये सनसनीखेज खुलासा अभी हाल ही प्रकाशित हुई किताब ‘ नीले आकाश का सच’ में किया गया है, जिसे वरिष्ठ पत्रकार अमरेंद्र कुमार ने लिखा है और विद्या विहार ने प्रकाशित किया है।

किताब में कहा गया है कि राष्ट्रीय जनता दल के लिए यह बैठक बहुत ही महत्वपूर्ण थी। CBI ने चारा घोटाले में लालू प्रसाद के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने का फैसला ले लिया था। 17 जून, 1997 को के राज्यपाल ए. आर. किदवई ने लालू प्रसाद के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने अनुमति दे दी थी। हालांकि लालू प्रसाद CM पद छोड़ने को तैयार नहीं थे। वह बार-बार कहा करते उन्हें साजिश का शिकार बनाया जा रहा है। वे बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देंगे। उनकी गिरफ्तारी की चर्चा होने लगी थी। मुख्यमंत्री लालू प्रसाद पूरी तरह घोटाले में फस चुके थे। उनको अहसास होने लगा था कि CM पद से त्याग-देने के सिवाय कोई और उपाय नहीं है। तब वे अपना उत्तराधिकारी बनाने को लेकर मंथन करने लगे थे। उन्होंने तय किया कि CM पद से इस्तीफा देकर किसी और मुख्यमंत्री बनाया जाए।

बहुत मायूस थी राबड़ी देवी

सीएम चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनता दल की बैठक चल रही थी, मगर लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी बहुत मायूस थीं। उनको इस बात की भनक थी कि आज साहब के माथे से राज्य का ताज हटने वाला है। राबड़ी देवी अपने पति को साहब ही कहती थीं।
बैठक कुछ देर चली, राजद विधायक दल के नेता का चुनाव करने की औपचारिकता पूरी हुई। कांति सिंह का सम फाइनल हो गया। उनके गले में माला भी पड़ने लगी। मीटिंग से बाहर उनके नाम की भी चर्चा होने लगी। यहाँ तक कि न्यूज एजेंसी में उनके विधायक दल का नेता चयन होते की बात भी चल गई थी। लेकिन नियति तो कुछ और थी। मुख्यमंत्री की शपथ ली राबाई देवी ने। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि ऐसा कैसे हुआ?

एक फोन ने सबकुछ बदल दिया, राबड़ी देवी बनीं CM

हुआ यों कि बैठक में कांति सिंह का नाम फाइनल होने के बाद लालू प्रसाद इस बात की जानकारी प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल को देने के लिए अपने कमरे में आए। उन्होंने फोन पर इंद्र कुमार गुजराल से बात की और कांति सिंह को CM बनाने के फैसले का निर्णय सुनाया। लालू प्रसाद की बात सुनते ही प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजरात ने कहा कि राबड़ी देवी क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि राबड़ी देवी बनेगी तभी आपके घर से शासन सुरक्षित रह सकेगा। राजनीति के चतुर खिलाड़ी लालू प्रसाद यादव को बात तुरंत समझ में आ गई और उन्होंने राबड़ी देवी के नाम की घोषणा कर दी। हालांकि राबड़ी देवी उस समय किसी भी सदन की सदस्य भी नहीं थीं। वह तो एक सामान्य गृहिणी की भूमिका में रहती थीं। संभवतः लालू प्रसाद के मन में इससे पहले उन्हें राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने की बात नहीं आई होगी। अब राबड़ी देवी की पहचान लालू प्रसाद यादव की पत्नी से ज्यादा मुख्यमंत्री के रूप में हो गई।

25 जुलाई, 1997 को इस घटना से दुनिया को एक गुर मिला कि कैसे राजसत्ता को अपने घर में रखा जा सकता है। राजनीति में परिवारवाद और अपने हाथ में सत्ता रखने का यह गुर बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने दुनिया को सिखाया था। बाद के वर्षों में लालू प्रसाद की इस राजनीतिक चाल का नाजायज फायदा झारखंड में भी उठाया गया जब श्रम और स्वास्थ्य मंत्री भानु प्रताप शाही ने मंत्री पद को गँवाने के एवज में अपने पिता हेमंत प्रताप शाही को अपनी जगह मंत्री बनवा दिया। अब इस पद चिह्न पर कई नेता आगे बढ़ चुके हैं।

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