- सरकारी स्तर पर धान क्रय केंद्र नही खुलने से किसान परेशान, बिचौलियों की चांदी
- न्यूनतम समर्थन मूल्य 24.69रु की जगह 14-15 रु प्रति किलो बेचने पर किसान मजबूर
जलेश शर्मा
Jharkhand : बड़े ही धूमधाम से, उत्साह जनक रंगारंग कार्यक्रम के साथ राज्य स्थापना दिवस मनाने वाले सूबे के सीएम हेमंत सोरेन की हर बात सच के करीब है। छोटे से बड़े काम को लेकर हर जगह बिचौलियागिरी। लोगों का काम होने में, करने में, करने में परेशानी। बिचौलियागिरी इतनी हावी है कि राज्य में कहावत भी बदल गए। लोग कहते है कि बिचौलियों की चांदी है मगर झारखंड में बिचौलिए सोना कूट रहे हैं। अगर आप झारखंड के खेत खलिहानों का चक्कर लगाएगे तो किसानों की पतली हालत का अंदाजा आसानी से लग जाएगा। अगर सूबे की एक हिस्से की बात करें तो इनकी कहानी कुछ यूं है.. ।
नीलाम्बर पीताम्बरपुर पलामू खेतों से धान काट चुके किसान जब बेचने जाते हैं तो उसे निराशा मिलती है। सरकार धान पर MSP 24.69 रु तय किया है किन्तु जिले में अबतक धान क्रय केंद्र नहीं खोले जाने से बाजार में बिचौलियों की चांदी है। किसानों की मजबूरी का फायदा उठाने में शामिल विचौलिये 14-15 रु प्रति किलो धान खरीद रहे हैं।
दिसंबर का पहला पखवाड़ा खत्म होने को है। सरकार अबतक क्रय केंद्र खोलने की तारीख तय नहीं कर पायी है।किसानों की मजबूरी है कि खाली खेत में अगली फसल लगानी है। उसके लिए खाद बीज और खेतो की जुताई, बच्चों की पढ़ाई और घर की दवाई समेत दैनन्दिन की ख़र्च की व्यवस्था करनी है। उसके सामने कोई विकल्प नहीं बचता और मजबूरी में धान बेचना पड़ रहा है।

अगर पड़ोसी राज्यों की बात करें तो वहां की सरकार 15 नवम्बर से 31 रु प्रति किलो धान खरीद रही है और भुगतान 72 घंटे के भीतर किसान को जाता है। छग सरकार किसानों से उनके पास उपलब्ध जमीन में 21 क्विंटल प्रति एकड़ तय कर रखा है और 15 नवंबर से 31 रु प्रति किलो धान खरीद रही है। उड़ीसा सरकार 31.69 पैसे और नवम्बर से क्रय करने लगी है वहाँ भी भुगतान अगले 72 घंटे के अंदर किसान को हो जाता है।इसी तरह असम सरकार 26.19रु, केरल सरकार 28.69रु, बंगाल सरकार 23.89रु, उ प सरकार 23.69रु खरीद करती है।
सबसे अच्छी बात यह है कि वहां अक्टूबर से ही धान खरीद शुरू होता है और अगले 72 घंटे में पैसा किसान के खाते में आ जाता है। इन वजहों से वहाँ विचौलिये पनप नहीं पाते और सीधा लाभ किसान को होता है।किंतु झारखंड की स्तिथि उलट है। यहां समय पर खरीद शुरू नहीं होता, भुगतान की कोई गारंटी नहीं और राज्य सरकार द्वारा बोनस या सब्सिडी मात्र एक रु प्रति किलो, जो अन्य पडोसी राज्यों की तुलना में नहीं के बराबर है। सनद रहे केंद्र सरकार 23.69रु न्यूनतम समर्थन मूल्य देती है। इस तरह सरकार के उदासीन रवैया से न्यूनतम समर्थन मूल्य से 900 रु से 1000 रु प्रति क्विंटल का नुकसान यहां के किसानों को उठाना पड़ रहा है। किसान अपनी गाढ़ी मेहनत की उपज ही नहीं अपने अरमान भी मिट्टी के मोल बेचने को मजबूर हैं।

पहाड़ी कला के किसान ब्रह्मदेव सिंह ने बताया कि हमे अधूरे घर का निर्माण कार्य पूरा करना है, साथ ही खाली हुए खेत में अगली फसल लगानी भी है।सरकार अबतक खरीद शुरू नहीं हुआ है। सरकार के खरीदी के भरोसे रहेंगे, तो न खेत में अगली फसल लगा पाएंगे और न अधूरे घर को पूरा कर पाएंगे? यही हाल सुरेश सिंह का है। वे 120 क्विंटल धान पैदा किये हैं। इसी दिसंबर में उनकी लड़की की शादी है। उनका भी 100 क्विंटल का रजिस्ट्रेशन है किंतु सरकार पैक्स के माध्यम से धान क्रय केंद्र खोली ही नहीं है। ऐसी परिस्थिति में उन्हें भी स्थानीय व्यापारी के पास 1400 प्रति क्विंटल धान बेंचना पड़ा। यह स्तिथि सिर्फ एक ब्रह्मदेव और सुरेश सिंह की नहीं बल्कि सभी किसानों की है। अगर समय पर अन्य राज्यों की भांति यहां भी सरकार नवम्बर से धान खरीद शुरू करती तो यहां के किसानों को 900 से 1000 रु प्रति क्विंटल नुकसान नहीं उठाना पड़ता ?
हां एक और बात, झारखंड सरकार की ओर से किसानों को दी जा रही बोनस की तुलना अन्य राज्यों से करें तो यहां के किसान काफी नुकसान में हैं।
केंद्र सरकार द्वारा जारी MSP 23.69) के साथ बोनस की बात करें तो छत्तीसगढ़ सरकार अपने किसानों को 7.31रु, उड़ीसा सरकार 8 रु, असम सरकार 2.50रु को देती है। जबकी झारखंड सरकार अपने यहां के किसानों को मात्र एक रुपये देती है। तो दूसरी तरफ झारखंड की सरकार खरीददारी तब शुरू करती है जब किसान अपना धान विचौलिये के हाथों बेंच चुका होता है।
