Modi Putin Meet : रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन अपने 30 घंटे की भारत यात्रा के बाद स्वदेश लौट गए हैं। उनकी यात्रा का लाभ देश के लोगों को मिले, इसकी उम्मीद करना बेहतर होगा, क्योंकि बड़े ताकतवर देश के राजनेता का जब किसी अन्य देश का दौरा करते हैं, तो वहां की जनता की उम्मीद बढ़ती है। वैसे रूस से भारत का संबंध आज का नहीं बहुत ही पुराना और महत्वपूर्ण रहा है। बता दें कि भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार डॉ. स्वर्ण सिंह ने वर्ष 1969 में एक समझौता किया था, जिसका लब्बोलुआब यह था कि हम एक दूसरे देश पर आक्रमण नहीं करेंगे और अगर किसी तीसरे देश द्वारा इन दोनों मित्र देश पर आक्रमण कोई करता है, तो उसका मुकाबला दोनों मित्र देश मिलकर करेंगे। संयोग यह रहा कि कुछ दिन बाद वर्ष 1971 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान पर जब पश्चिमी पाकिस्तान अत्याचार कर रहा था, तब पूर्वी पाकिस्तान की गुहार पर भारत ने उसकी मदद का ऐलान किया। उसके विरुद्ध पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान का साथ देने के लिए अपना सातवां युद्धक बेड़ा भेजा। लेकिन, उसी समय रूस ने भारत की मित्रता का निर्वाह करते हुए भारत की रक्षा के लिए अपना युद्धपोत का आठवां बेड़ा भेज दिया। परिणाम यह हुआ कि अमेरिका को बिना युद्ध लड़े अपने देश के सातवें युद्धक बेड़ा को वापस ले जाना पड़ा। इस मित्र देश की दोस्ती को मिसाल माना जाने लगा।
यह मित्रता लंबी चली, लेकिन हां, बीच में दोस्ती में दरार आई थी। इस दरार का कारण सिरफिरा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का वह फरमान था जिसमें उन्होंने कहा था कि भारतवर्ष रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदेगा। भारत की रूस से कच्चे तेल की खरीद जनवरी 2026 में करीब चार साल के निचले स्तर पर आने वाली है। अनुमान है कि अगले महीने रूस से आने वाली सप्लाई घटकर छह लाख बैरल प्रतिदिन रह सकती है। यह गिरावट उस समय दिख रही है जब कुछ महीने पहले ही भारत 2.1 मिलियन बैरल प्रतिदिन आयात कर रहा था, जो कुल आयात का लगभग 45% था। दोनों देशों के संबंधों को अगर आंकड़ों की नजर से देखें तो पता चलता है कि दोनों देशों के बीच का व्यापार जो पांच साल पहले आठ अरब डॉलर का था, अब 68 अरब डॉलर तक जा पहुंचा है । प्रतिबंधों के बावजूद भारत का रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी है। भारतीय सेना आज भी रूस से मिले हथियारों पर भरोसा करती है। इससे पहले लगभग चार साल पूर्व जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन भारत आए थे, तब से अब की दुनिया में काफी बदलाव आ चुका है। उस यात्रा के बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला किया और इसकी वजह से पुतिन के दो दिन की दिल्ली यात्रा पिछले सप्ताह पूरी हो गई।
भारत के सबसे भरोसेमंद दोस्त रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत में कदम रखने के बाद की हर तस्वीर, हर बयान और दिल्ली से दिए गए हर संकेत पर पूरी दुनिया की नजर टिकी रही। भारत रूस के 23वें शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली आए पुतिन की यह यात्रा ऐसे वक्त में हुई जब रूस-यूक्रेन वॉर खत्म करने को लेकर कोशिशें सबसे ज्यादा तेज हैं। जब रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए कई शक्तियां भारत और रूस की दोस्ती में दरार डालने की कोशिश में लगा हुआ है, भारत और रूस के सहयोग को कम करने की कोशिश कर रही हैं, तब भारत और रूस ने 21 बड़े समझौते किए। वर्ष 2030 तक के सहयोग का रोडमैप दुनिया के सामने रखा और महाशक्तियों को ठीक से समझा दिया कि यह दोस्ती किसी दबाव में टूटने वाली नहीं है। गणराज्य भारत और रूसी संघ ने 1991 में द्विपक्षीय संबंध स्थापित किए और घनिष्ठ सहयोगी बने रहे। इससे पहले, शीत युद्ध के दौरान भारत-सोवियत संबंधों को एक “मजबूत रणनीतिक संबंध” माना जाता था। दोनों देशों के साझा सैन्य आदर्शों और उनकी समग्र आर्थिक नीतियों ने इस कूटनीतिक एकता को और मजबूत किया। सोवियत संघ के विघटन के बाद भी, रूस ने भारत के साथ अपने घनिष्ठ संबंध बनाए रखे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रूस और भारत, दोनों ही देश अपनी पारस्परिक आत्मीयता को एक “रणनीतिक साझेदारी” मानते हैं। उनकी सरकारें एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के निर्माण का समर्थन करती हैं, जिसमें दोनों राष्ट्र “ध्रुव” हों।
जो समझौते हुए उनमें से कुछ प्रमुख ये हैं कि दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों और रसद का उपयोग करने की अनुमति देता है, जिससे संयुक्त अभ्यास और लंबी दूरी के मिशन आसान होते हैं। इसमें S-400 मिसाइल सिस्टम, सुखोई-30MKI लड़ाकू विमानों के इंजन, और T-72 टैंकों के लिए इंजन का उत्पादन (तकनीक हस्तांतरण सहित) जैसे समझौते शामिल हैं, जो यूक्रेन युद्ध के बावजूद जारी हैं। इसमें तेल (क्रूड), गैस और परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश और सहयोग शामिल है, जैसे कि रूस से भारत को पेट्रोलियम उत्पादों का आयात। इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, कृषि और कुशल प्रतिभा के आदान-प्रदान से जुड़े समझौते भी हुए हैं। सोशल मीडिया पर भी कहा जा रहा है भारत के मजदूरों को भी रूस अपने यहां रोजगार उपलब्ध कराएगा।
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की यात्रा में जो कुछ भी हुआ वह तो ठीक है, लेकिन आज पूरे देश में जो एक चर्चा का विषय बना हुआ है, वह यह कि विपक्षी दलों के नेता राहुल गांधी को नजरअंदाज किया गया और उन्हें रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ भोज के लिए या भेंट के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। जबकि, परंपरा यह रही है कि यदि कोई राजनेता भारत यात्रा पर आता है, तो उसे नेता विपक्षी से भी आपसी मतभेद को भुलाकर औपचारिक भेंट कराई जाती थी और उन्हें भोज में भी आमंत्रित किया जाता रहा है, लेकिन अब ऐसा नहीं करने की भी परंपरा शुरू हो गई है। इस तरह की परंपरा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल तक था। अब इस परंपरा का निर्वाह करना वर्तमान सरकार में बंद कर दिया गया है। भविष्य में क्या होगा, इस पर अभी चर्चा करने का कोई अर्थ नहीं होता, लेकिन देश में इस पर बुरी प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। हां, इस बात पर देश की प्रतिक्रिया यह है कि इस तरह का खुन्नस वर्तमान सरकार नेता प्रतिपक्ष के लिए क्यों किया गया? जिस तरह का सहानुभूति का रुख आज देश की जनता का देखा जा रहा है, वह देशहित के लिए अच्छा नहीं है। देश की जनता यह कहने लगी है कि नेता प्रतिपक्ष को नजरअंदाज करके उन्हीं के पार्टी के चर्चित संसद शशि थरूर को हमेशा वर्तमान सरकार द्वारा प्रतिनिधि के तौर पर बुलाया जाता है और ऐसा किया जाता है, ताकि कांग्रेस में फूट डालकर शशि थरूर को अपने साथ जोड़ा जा सके। शशि थरूर कांग्रेस के ही नहीं, दक्षिण भारत के एक कद्दावर नेता हैं। उन्हें अपने दल में शामिल करने से भारतीय जनता पार्टी का जनाधार दक्षिण भारत में बढ़ेगा, क्योंकि इसका और क्या कारण बताया जा सकता है कि नेता प्रतिपक्ष को नजरअंदाज करके पार्टी के एक नेता को इतनी प्रधानता दी जाए! समाज इसलिए भी यह सोचने पर मजबूर हो गया है कि जिसे कांग्रेस ने खाद—पानी देकर अपने दल में और राष्ट्रीय नेता के रूप में अपने साथ बनाकर रखा, वही बागी होकर सत्तारूढ़ दल का साथ देने लगा है। जो भी हो, राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है, लेकिन यदि हम रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा पर चर्चा करते हैं, तो यह पारंपरिक मित्रता का निर्वाह ही माना जाएगा, जो देशहित के लिए अच्छा ही होगा, हमें यही मानना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)
