Vaikuntha Chaturdashi 2024 Date : बैकुंठ चतुर्दशी कब? इस दिन पूजा करने से मिलेगा मोक्ष, जानें पूजा मुहूर्त और विधि

Sanat Kumar Dwivedi

आचार्य पंडित सनत कुमार द्विवेदी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) : कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। दरअसल, साल में यह एक दिन ऐसा होता है जब भगवान विष्णु और भगवान शिव की आराधना एक साथ की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जो व्यक्ति भगवान शिव और विष्णु की पूजा पूरे विधि विधान से करते हैं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। उस व्यक्ति के जीवन के सभी दुख दूर होते हैं। इसी के साथ इस दिन पूजा अर्चना करने से व्यक्ति की कुंडली में जितने भी दुष्प्रभाव हैं वह सभी दोष दूर हो जाते हैं। आइए जानते हैं कब है बैकुंठ चतुर्दशी। जानें पूजा का मुहूर्त और पूजा की विधि।

बैकुंठ चतुर्दशी कब है?
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 14 नवंबर को सुबह 9 बजकर 43 मिनट पर होगा। चतुर्दशी तिथि का समापन 15 नवंबर को सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर हो जाएगा। हालांकि, बैकुंठ चतुर्दशी में निशीथ काल की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। ऐसे में निशीथ काल में चतुर्दशी तिथि 14 नवंबर को रहेगी जिस वजह से बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा 14 नवंबर गुरुवार के दिन ही की जाएगी।

बैकुंठ चतुर्दशी पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
14 नवंबर को बैकुंठ चतुर्दशी के दिन निशिता काल की शुरुआत रात में 11 बजकर 39 मिनट पर होगी और मध्यरात्रि 12 बजकर 32 मिनट तक चतुर्दशी तिथि रहेगी। इस अवधि में की गई पूजा का व्यक्ति को दोगुना फल प्राप्त होगा।

बैकुंठ चतुर्दशी पूजा की विधि
बैकुंठ चतुर्दशी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। फिर साफ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद पूजा पूजा स्थल में एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं। फिर भगवान शिव और भगवान विष्णु की तस्वीर स्थापित करें।
इसके बाद एक घी का दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें। सबसे पहले भगवान विष्णु को एक कमल का फूल अर्पित करें और भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करें।

फिर कम से कम 108 बार भगवान विष्णु के मंत्र ओम श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्। का जप करें। इसके बाद एक माला भगवान शिव के मंत्र का जप करें। ओम नमः शिवाय मंत्र का।
फिर बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा का पाठ करें और अंत में दोनों भगवान की आरती करके। पूजा में भूल चूक की माफी मांग लें।

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