कार्तिक पूर्णिमा

Niranjann Srivastava

निरंजन प्रसाद श्रीवास्तव
रांची :
हिन्दू धर्म में सभी पूर्णिमाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ‘भविष्य पुराण’ के अनुसार गंगा स्नान और दान के लिए माघ, वैशाख एवं कार्तिक मास की पूर्णिमाओं का विशेष महत्त्व है। कार्तिक शरद ऋतु का दूसरा और अंतिम मास है। इसके सन्दर्भ में कहा गया है, “कृष्ण प्रिय हि कार्तिक: कार्तिक कृष्णवल्लभ:”अर्थात् बारह महीनों में कार्तिक श्रीकृष्ण को अधिक प्रिय है। स्कंदपुराण में कार्तिक मास की महिमा का बारे में यह कहा गया है –
मासानां कार्तिको श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन:।
तीर्थ नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।।
अर्थात् मासों में कार्तिक, देवताओं में भगवान विष्णु तथा तीर्थों में नारायण तीर्थ बद्रिकाश्रम श्रेष्ठ हैं। ये तीनों कलियुग में अत्यंत दुर्लभ हैं।
स्कंदपुराण में कार्तिक मास के विषय में आगे कहा गया है:-
न कार्तिक समो मासो न कृतेन समं युगम्।
न वेद सदृशं शास्त्रं न तीर्थ गङ्गया समम्।।
कार्तिक मास के समान कोई महीना नहीं, सतयुग के समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं। इसका कारण यह है कि सघन पुंज कृतिका नक्षत्र के आधार पर इस मास का नाम कार्तिक पड़ा। पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था, जिसके कारण उनका नाम कार्तिकेय पड़ा। वे देवताओं की सेना के सेनाध्यक्ष बने। दक्षिण भारत में इन्हें मुरुगन और अयप्पा कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा शरद ऋतु और कार्तिक मास की अंतिम तिथि है। स्नान और दान के लिए तीन महत्त्वपूर्ण पूर्णिमाओं-माघ, वैशाख और कार्तिक-में कार्तिक पूर्णिमा सर्वाधिक पुण्यदायनी बतायी गई है।


कार्तिक पूर्णिमा की संध्या समय भगवान विष्णु का मत्स्य रूप में प्रथम अवतार हुआ था। मत्स्य पुराण के अनुसार हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया था। सृष्टि में चारों ओर अज्ञान और अधर्म फैल हुआ था। तब धर्म की रक्षा के लिए श्रीहरि विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लेकर हयग्रीव का वध किया और वेदों की रक्षा की। वैष्णव मतानुसार इसी तिथि को गोलोक के रासमण्डल में श्रीकृष्ण ने श्री राधे का पूजन किया था। इसी तिथि को वैकुंठ में तुलसी का प्राकट्य हुआ था। महाभारत के अनुसार इसी तिथि को भगवान शिव ने तारकासुर के तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नामक तीन पुत्रों के लिए असुर वास्तुकार मय दानव द्वारा निर्मित स्वर्ग में स्वर्ण के, अंतरिक्ष में चांदी के और मर्त्यलोक में लोहे के तीन नगरों यानी पुरों को नष्ट किया तथा तीनों असुरों को भस्म कर दिया था और इस कारण वे त्रिपुरारी कहलाये। इसी तिथि को सिखों के प्रथम गुरु नानकदेव की जयंती प्रकाश पर्व के रूप में मनायी जाती है।
कार्तिक पूर्णिमा को कुरुक्षेत्र, प्रयाग, पुष्कर, नैमिष, मूलस्थान (मूलतान), गोकर्ण (कर्नाटक), द्वारका और मथुरा में तीर्थस्नान की विशेष महिमा है और इसमें कुरुक्षेत्र, द्वारका, पुष्कर और मथुरा विशेष फलदायी हैं। इसके अलावा अयोध्या तथा अन्य मोक्षदायिनी पुरियों की भी महिमा बतायी गई है।
कार्तिक पूर्णिमा पूरे देश में मनाया जाता है। बिहार में कार्तिक पूर्णिमा को गंग नहान भी कहा जाता है। बिहार की प्रमुख नदियों- गंगा, सरयू, गंडक, बागमती, महानन्दा, कमला, कोसी, सोन और पुनपुन के अलावा छोटी नदियों के किनारे स्नानार्थियों की भीड़ उमड़ती है। कार्तिक पूर्णिमा को सारण जिले के हरिहरक्षेत्र के सोनपुर और गौतम क्षेत्र के गोदना-सिमरिया में मेला भी लगता है। लोकमानस हर नदी को गंगा के समान ही पवित्र मानता है। बचपन की बात याद है। रेल से यात्रा करते समय जब रेलगाड़ी किसी नदी पर बने पुल से गुजरती तो लोग ‘गंगा मइया की जय’ बोलते हुए ताम्बे के पैसे रेलगाड़ी की खिड़कियों से नदी में फेंकते थे। हमारे शास्त्र कितने उदार हैं। यदि आस-पास कोई नदी न हो तो निम्नलिखित मंत्र पढ़कर पवित्र नदियों में तीर्थस्नान का फल प्राप्त किया जा सकता है-
“गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदा सिंधु कावेरी जलेअस्मिन सन्निधिं कुरु।।”
कार्तिक पूर्णिमा का न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय महत्त्व भी है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सामूहिक स्नान हमारे सामूहिक अवचेतन में सामाजिक समरसता की भाव-धारा प्रवाहित कर राष्ट्रीय ऐक्य और अखंडता को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आइए, इस पुनीत अवसर पर हम यह गीत गुनगुनाएं-
सुर की नदियाँ हर दिशा से, बहकर सागर से मिलें
बादलों का रूप लेकर बरसें हल्के-हल्के
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा”

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