नई दिल्ली : डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) ने शनिवार रात लंबी दूरी की हाइपरसोनिक मिसाइल की सफल टेस्टिंग की। इसका वीडियो शेयर करते हुए DRDO ने बताया कि ओडिशा के तट के पास एपीजे अब्दुल कलाम आजाद द्वीप से मिसाइल को ग्लाइडेड व्हीकल से लॉन्च किया गया। मिसाइल की फ्लाइट ट्रेजेक्टरी की ट्रैकिंग के बाद टेस्टिंग सफल मानी गई है।भारत ने किया हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल परीक्षण।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार सुबह X पर पोस्ट करते हुए कहा- इस मिसाइल की सफल टेस्टिंग से भारत उन चुनिंदा देशों के ग्रुप में शामिल हो गया, जिसके पास ऐसी सैन्य तकनीक है। यह एक बड़ी उपलब्धि है और यह देश के लिए एक ऐतिहासिक पल है।
लंबी दूरी की इस हाइपरसोनिक मिसाइल की रेंज 1500 किलोमीटर से ज्यादा है। इस मिसाइल से हवा, पानी और जमीन तीनों जगहों से दुश्मन पर हमला किया जा सकता है। लॉन्च के बाद इसकी रफ्तार 6200 किलोमीटर प्रतिघंटे तक पहुंच सकती है, जो साउंड की स्पीड से 5 गुना ज्यादा है।
हाइपरसोनिक मिसाइल की खासियत
- हाइपरसोनिक मिसाइलों की सबसे खास बात ये है कि तेज स्पीड, लो ट्रैजेक्टरी यानी कम ऊंचाई पर उड़ान की वजह से इन्हें अमेरिका समेत दुनिया के किसी भी रडार से पकड़ पाना लगभग नामुमकिन है। इसी वजह से इन्हें दुनिया का कोई भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम मार नहीं सकता है।
- हाइपरसोनिक मिसाइलें कई टन परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम होती हैं। ये मिसाइलें 480 किलोग्राम के परमाणु हथियार या ट्रेडिशनल हथियार ले जा सकती हैं। परमाणु हथियार रखने वाले देशों के लिए यह मिसाइल अहम मानी जाती है।
- अंडरग्राउंड हथियार गोदामों को तबाह करने में हाइपरसोनिक मिसाइलें सबसोनिक क्रूज मिसाइलों से ज्यादा घातक होती हैं। डिफेंस एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अपनी बेहद हाई स्पीड की वजह से हाइपरसोनिक मिसाइलें ज्यादा विध्वसंक होती हैं।
- हाइपरसोनिक मिसाइलें मेनुरेबल टेक्नोलॉजी यानी हवा में रास्ता बदलने में माहिर होती है। इससे ये जगह बदल रहे टारगेट को भी निशाना बना सकती हैं। इस क्षमता की वजह से इनसे बच पाना मुश्किल होता है।
क्या है हाइपरसोनिक मिसाइल
हाइपरसोनिक मिसाइल से मतलब उन मिसाइलों से है, जो आवाज़ की गति से पाँच गुना तेज़ रफ़्तार से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं।
वहीं, सबसोनिक मिसाइल ध्वनि की गति को पार नहीं कर पाती हैं, जबकि सुपरसोनिक मिसाइल ध्वनि की गति से दो से तीन गुना गति तक ही जा पाती हैं।
रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि पहले हाइपरसोनिक मिसाइल आसमान में क़रीब 100 किलोमीटर ऊपर जाती है, जिसका मतलब है कि वह पहले धरती के वायुमंडल को पार करती है।
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि धरती के वायुमंडल से स्पेस में दाखिल होने के बाद हाइपरसोनिक मिसाइल क्रूज फेज में रहती है, जिसके बाद वह धरती पर अपने टारगेट के लिए बढ़ती है।
सवाल है कि क्या हाइपरसोनिक मिसाइल पर न्यूक्लियर वॉर हेड लगाया जा सकता है?
इस संबंध में रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि हाइपरसोनिक मिसाइल पर कवेंशनल और न्यूक्लियर वॉर हेड दोनों लगाए जा सकते हैं।
उनका मानना है कि इस मिसाइल की रेंज क़रीब 1700 किलोमीटर है और इसे गेम चेंजर की तरह देखा जा रहा है। हाइपरसोनिक मिसाइल को ऑपरेशनलाइज करने के लिए भारत को दो से तीन साल का वक़्त लग सकता है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि जैसे कार बनाने के लिए पहले प्रोटोटाइप बनाते हैं और फिर उसका परीक्षण करने के बाद प्रोडक्शन में लाया जाता है। वैसे ही अभी इस मिसाइल को ऑपरेशन में लाने के लिए भारत को समय लगेगा।
हाइपरसोनिक मिसाइल का ‘एक्स फ़ैक्टर’
हाइपरसोनिक हथियारों को उनका विशेष दर्जा सिर्फ़ उनकी स्पीड से ही नहीं मिलता है, क्योंकि स्पीड के मामले में बैलिस्टिक मिसाइल भी ध्वनि की गति से तेज़ चलती हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि हाइपरसोनिक मिसाइल का एक्स फ़ैक्टर क्या है?
रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि यह सबसे आधुनिक मिसाइल तकनीक है। हाइपरसोनिक मिसाइल इतनी तेज़ी से अपने टारगेट की तरफ़ बढ़ती है कि उसे एंटी मिसाइल सिस्टम ट्रैक नहीं कर पाता है।
वहीं रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि हाइपरसोनिक मिसाइलें, बैलिस्टिक मिसाइलों की तरह अपना आर्क और प्रोजेक्टाइल नहीं बनाती हैं, जिसकी वजह से उनके टारगेट का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है।
वे कहते हैं कि अमेरिका का बनाया ‘टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस’ यानी ‘थाड’ और इसराइल का ‘आयरन डोम’ सिस्टम भी हाइपरसोनिक मिसाइलों को नहीं पकड़ पाता है। ये एंटी मिसाइल सिस्टम हैं जिनकी रेंज 250 किलोमीटर पर आकर ख़त्म हो जाती है।
हाइपरसोनिक मिसाइल का अगर आप पता भी लगा लेते हैं तो उसे मार गिराना बेहद ही मुश्किल है, क्योंकि उसके लिए उतनी ही स्पीड से चलने वाली मिसाइल की ज़रूरत पड़ेगी। इसके लिए किसी देश को एरो-3 सिस्टम की ज़रूरत होगी। इसकी रेंज क़रीब 2500 किलोमीटर है।
फ़िलहाल हाइपरसोनिक मिसाइलों को लॉन्च करने के बाद उनकी दिशा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
किन देशों के पास है हाइपरसोनिक?
हाइपरसोनिक मिसाइलें चुनिंदा देशों के पास ही हैं। एक्सपर्ट्स इसे लेकर अलग-अलग राय रखते हैं।
रक्षा विशेषज्ञ का मानना है कि हाइपरसोनिक मिसाइल फ़िलहाल चीन और रूस के पास है, वहीं भारत की तरह अमेरिका इसे ऑपरेशनलाइज करने में लगा हुआ है।
वे कहते हैं कि कुछ और देश हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने का दावा करते हैं, लेकिन पुख़्ता तौर पर ऐसा नहीं कहा जा सकता। ऐसे में भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश होगा, जिसके पास ये आधुनिक तकनीक है।
वहीं रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि “ऐसा माना जाता है कि हाइपरसोनिक मिसाइल रूस, चीन और भारत के अलावा अमेरिका, फ़्रांस, ब्रिटेन और ब्राज़ील के पास है। इसके अलावा ईरान भी इसे लेकर दावा करता है कि उसने हाइपरसोनिक मिसाइल बना ली है।
रूस अपनी किंजल हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल यूक्रेन युद्ध में कर चुका है, क्योंकि इन्हें पकड़ना बेहद ही मुश्किल है। मार्च 2022 में रूस ने दावा किया था कि उसने पश्चिमी यूक्रेन के अंदर भूमिगत हथियार डिपो को हाइपरसोनिक मिसाइल से निशाना बनाया था।
जानकारों के मानना है कि हाल ही में ईरान ने इसराइल पर जो मिसाइल हमले किए थे, उनमें हाइपरसोनिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया था।
ईरान का दावा है कि वो पहली बार फ़तह मिसाइल को बैलिस्टिक और क्रूज़ दोनों वर्गों में हाइपरसोनिक मिसाइल के तौर पर सामने लाया था।
ईरान के लिए धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर लड़ने वाले सेना ‘इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स’ (आईआरजीसी) ने दावा किया है कि उसकी ‘अल-फ़तह’ हाइपरसोनिक मिसाइल की रेंज 1400 किलोमीटर है और वह मिसाइल को नष्ट करने वाली सभी रक्षा प्रणालियों को चकमा देकर उन्हें तबाह करने की क्षमता रखती है।
इसके अलावा साल 2021 में उत्तर कोरिया ने देश के सुप्रीम लीडर किम जोंग उन की निगरानी में एक मिसाइल परीक्षण किया था।
उत्तर कोरिया का दावा था कि यह एक हाइपरसोनिक मिसाइल थी, जो एक हज़ार किलोमीटर दूर ‘सटीक’ अपने लक्ष्य पर गिरी थी।