आचार्य पंडित सनत कुमार द्विवेदी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) : हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 22 नवंबर को शाम 6 बजकर 07 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 23 नवंबर 2024 को रात 7 बजकर 56 पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में 22 नवंबर, शुक्रवार को काल भैरव जयंती है। भगवान काल भैरव को भूत संघ नायक के रूप में वर्णित किया गया है। पंच भूतों के स्वामी-जो पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश हैं। वह जीवन में सभी प्रकार की वांछित उत्कृष्टता और ज्ञान प्रदान करने वाले हैं। भगवान काल भैरव का प्राकट्य यह संदेश देता है कि अहंकार, अधर्म और अन्याय का अंत अवश्य होता है।
ऐसे हुआ भगवान काल भैरव का जन्म
भगवान काल भैरव का प्राकट्य शिवपुराण की एक महत्वपूर्ण कथा से जुड़ा है, जो उनके क्रोध, शक्ति, और न्याय के प्रतीक के रूप में उनकी उपस्थिति को दर्शाती है। इस कथा के अनुसार, एक बार त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के बीच सृष्टि के सर्वोच्च देवता को लेकर विवाद हुआ। सभी देवता इस चर्चा में शामिल हुए, और यह प्रश्न उठा कि कौन सबसे महान है। इस विवाद में भगवान ब्रह्मा ने अपने पांच मुखों के माध्यम से यह दावा किया कि वे सृष्टि के रचयिता हैं और इसलिए सर्वोच्च हैं। उनकी बातों में अहंकार झलक रहा था। भगवान शिव, जो विनम्रता और सृष्टि की मूल चेतना के प्रतीक हैं, ने उन्हें अहंकार त्यागने की सलाह दी। परंतु ब्रह्मा ने इसे अनसुना कर दिया और भगवान शिव का अपमान कर दिया।
भगवान शिव ने यह अपमान सहन नहीं किया और अपने क्रोध से एक उग्र स्वरूप उत्पन्न किया। इस स्वरूप को “काल भैरव” कहा गया। काल भैरव एक भयानक और अजेय रूप में प्रकट हुए, जिनके हाथ में त्रिशूल और कमंडल था, और उनकी गले में नरमुंड की माला थी। उनका प्रकट होना सृष्टि के संतुलन और न्याय को स्थापित करने के लिए था।
ब्रह्मा के अहंकार का अंत
भगवान काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया, जिसे अहंकार का प्रतीक माना गया। इस घटना के बाद, भगवान ब्रह्मा ने अपनी गलती स्वीकार की और भगवान शिव से क्षमा मांगी। इस प्रकार, काल भैरव ने ब्रह्मा के अहंकार को समाप्त कर सत्य और न्याय की स्थापना की। हालांकि, ब्रह्मा का सिर काटने के कारण काल भैरव ब्रह्म हत्या के पाप के भागी बन गए। इस पाप के प्रायश्चित के लिए उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा की। अंततः वे काशी पहुंचे, जहां इस पाप से मुक्त हो गए। इसलिए, काशी को “मुक्ति स्थली” और काल भैरव को “काशी के कोतवाल” कहा जाता है।
काल भैरव की पूजा का महत्व
काल भैरव की पूजा तंत्र और साधना पद्धति में विशेष महत्व रखती है। वे समय, मृत्यु, और सुरक्षा के देवता माने जाते हैं। भक्तों का मानना है कि उनकी उपासना से भय, पाप, और बुरी शक्तियों का नाश होता है। काशी में उनकी विशेष आराधना होती है, और हर मंगलवार और शनिवार को उनके भक्त उन्हें शराब, नारियल, और काले तिल अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इनके भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता । काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल,तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है । इनकी पूजा-आराधना से घर में नकारात्मक शक्तियां,जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता बल्कि इनकी उपासना से मनुष्य का आत्मविश्वास बढ़ता है।