Places Of Worship Act :सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक इस केस की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती देश में इस तरह का कोई नया केस दायर नहीं होगा। कोर्ट ने केंद्र सरकार को 4 हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा है। बता दें कि यह कानून 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थलों के स्वरूप को बदलने या उन्हें वापस पाने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाता है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना,न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की तीन-न्यायाधीशों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पूजा स्थल अधिनियम (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह में हलफनामा दाखिल करने को कहा है, जो किसी पूजा स्थल को फिर से प्राप्त करने या 15 अगस्त, 1947 को प्रचलित स्वरूप से उसके चरित्र में बदलाव की मांग करने के लिए मुकदमा दायर करने पर रोक लगाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक वह पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई और उनका निपटारा नहीं कर देता, तब तक देश में कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
देश की सुप्रीम अदालत साल 1991 के पूजा स्थल अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी। यह अधिनियम 15 अगस्त 1947 से पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र के रूपांतरण को प्रतिबंधित करता है। यानी कि जो भी धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 से पहले जिस हालत में थे, वह वैसे ही रहेंगे। इस याचिका पर सुनवाी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इस कानून की संवैधानिक वैधता, इसकी रूपरेखा और दायरे का विश्लेषण कर रहे हैं, इसलिए उन्हें देशभर में लंबित मुकदमों की सुनवाई पर रोक लगानी होगी।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की स्पेशल बेंच ने आदेश दिया कि पूजा स्थल अधिनियम से संबंधित केस कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। ऐसे में हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि न्यायालय के अगले आदेश तक पूजा स्थलों के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं किया जाएगा और कार्यवाही नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कहा कि हम यह भी निर्देश देते हैं कि लंबित मुकदमों में अदालतें सर्वेक्षण के आदेशों समेत कोई प्रभावी अंतरिम आदेश या अंतिम आदेश पारित नहीं करेंगी।
अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर एक प्रमुख याचिका में अधिनियम की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की गई है। उनका तर्क है कि ये प्रावधान व्यक्तियों और धार्मिक समूहों को पूजा स्थलों को पुनः प्राप्त करने के लिए न्यायिक उपचार का अधिकार नहीं देते हैं। पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अदालत से कुछ प्रावधानों को रीड डाउन करने का अनुरोध किया है। इससे हिंदुओं को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद जैसे विवादित स्थलों पर दावा करने की अनुमति मिल सकेगी।
रीड डाउन का मतलब है कि कानून के कुछ हिस्सों को कम प्रभावी बनाना या उनकी व्याख्या बदलना। हालांकि,उपाध्याय ने इस दृष्टिकोण का विरोध करते हुए कहा कि कानून असंवैधानिक है और रीड डाउन करने का कोई सवाल ही नहीं उठता।
क्या है पूजा स्थल अधिनियम 1991?
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 किसी भी पूजा स्थल को बदलने पर रोक लगाता है। यह 15 अगस्त, 1947 को जैसी थी, वैसी ही उनकी धार्मिक स्थिति बनाए रखने का आदेश देता है। इसमें इस उद्देश्य से जुड़े या आकस्मिक मुद्दों को संबोधित करने के प्रावधान शामिल हैं। हालांकि, अधिनियम अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इससे छूट देता है। अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं ने 15 अगस्त, 1947 की मनमानी और तर्कहीन पूर्वव्यापी कट-ऑफ तिथि की आलोचना की है।
उनका तर्क है कि यह कट्टरपंथी-क्रूर आक्रमणकारियों और कानून तोड़ने वालों की ओर से अतिक्रमणों की रक्षा करता है।