History : कोई बिना इतिहास पढ़ें इतिहासविज्ञ नहीं होतानिशिकांत ठाकुर

Nishikant Thakur

History :किस इतिहास को पढ़कर हमारे राजनेता इतने ज्ञानी हो जाते हैं कि समाज को सच्चाई से रास्ता दिखाने के नाम पर अपने बेतुके बयानों से उन्हें गुमराह करने लगते हैं! सच तो यह है कि उनके पास इतिहास का कुछ खास ज्ञान तो होता नहीं, लेकिन तुकबंदी करने के चक्कर में इस तरह उलझ जाते हैं कि अपने बयानों से समाज को भी गैर ऐतिहासिक बातों में उलझा देते हैं। सामान्य जनता तो यह मानती है कि देश के सबसी बड़ी पंचायत में खड़ा होकर कोई उन्हें भटका नहीं सकता, लेकिन ऐसा ही हो रहा है। यहां इसलिए ऐसा कहना पड़ रहा है, क्योंकि यदि राजनीतिज्ञ एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं लगाएंगे तो फिर समाज उन्हें उच्चतर स्थान पर बैठने के लिए क्यों अपना मत जाया करेगा। यदि आज के सत्तारूढ़ की बात करें, तो उनके सभी राजनीतिज्ञ पं. जवाहरलाल नेहरू, उनकी बेटी इंदिरा गांधी और यहां तक कि राजीव गांधी तक को जोड़कर उनके खिलाफ विषवमन करते रहते हैं। इसका सबसे पहला उदाहरण हमारे प्रधानमंत्री स्वयं हैं, जो बार बार अपने भाषणों में नेहरू परिवार को नीचा दिखाते रहते हैं, कोसते रहते हैं। उनकी बात तो सब जानते हैं, लेकिन उनके मंत्री भी इसमें पीछे नहीं रहते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि नेहरू परिवार पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में यदि वे पीछे रहें तो उनका मान सम्मान अपनी पार्टी के नेताओं के बीच कम हो जाएगा और हो सकता है उन्हें चलता कर दिया जाए। ऐसा हुआ भी है, कुछ सांसदों को इसके लिए पदोन्नति दी गई और कई बाहर निकाल दिए गए। कुल मिलाकर ऐसा लगने लगा है कि जो राजनीतिज्ञ नेहरू परिवार की आलोचना करने में अपना समय जाया कर रहे हैं, उन्हें इतिहास पढ़ना चाहिए, विशेषकर पं. नेहरू लिखित ‘मेरी कहानी’ और ‘भारत एक खोज(डिस्कवरी ऑफ इंडिया)’। निश्चित रूप से इन पुस्तकों को पढ़ने से उनके ऐतिहासिक ज्ञान में वृद्धि होगी और वे समाज को सच्चाई से रूबरू कराने में अज्ञानता का सहारा नहीं लेंगे।

यह समझ से अलग बात है कि बार बार परिवारवाद की बात कहकर क्या साबित करने की होड़ लगी है? यदि पार्टी किसी को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है, तो यह पार्टी के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन चुनाव में जीत हार तो जनता तय करती है। क्या उस क्षेत्र में परिवार के इतने लोग होते हैं, जो सब गांधीवादी विचार के या नेहरू परिवार से जुड़े हुए हैं? फिर जब किसी ने चुनाव जीता है, तो उसे जनता ने चुनकर भेजा है। यही हाल तो भारत के सभी दलों में हो ही रहा है, कोई भी दल इससे अछूता कहां है? यदि इसे ही परिवारवाद माना जाए, तो सत्तारूढ़ दल का शायद ही कोई ऐसा वरिष्ठ सदस्य होगा, जो इस तथाकथित परिवारवाद से ग्रस्त न हो। फिर उस पर भी तो चर्चा करनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता। जिस दिन विपक्ष इतना ताकतवर हो जाएगा, उस दिन वह इस मुद्दे को लेकर संसद में ऐसा कहने वालों के लिए खुलकर अपनी बात रखेगा, लेकिन जब होगा तब, फिलहाल तो सत्तापक्ष अभी किसी न किसी बैसाखी के सहारे मजबूत है, उसके हाथ में सत्ता रूपी हथियार है। अब तो पं. नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी को गुजरे इतने वर्ष हो गए, लेकिन उस परिवार का दबदबा आज भी इतना बना हुआ है कि सत्तारूढ़ अपनी लकीर को बड़ी करने के बजाय उसे मिटाने में लगा है। कई उदाहरणों में एक उदाहरण वर्तमान में लोकसभा में विपक्षी नेता राहुल गांधी का भी लिया जा सकता है, जिन्हें अयोग्य साबित करने में सरकार ने पूरी शक्ति का प्रयोग किया, लेकिन एक पदयात्रा ने सरकार की पूरी योजनाओं को ध्वस्त कर दिया।

देश ने यह समझ लिया कि एक योग्य और पढ़े लिखे नेता को किस प्रकार अपने परिवार सहित अपमानित किया जा रहा है। जनता फिलवक्त उस दल को सत्ता तो नहीं दिला सकी, लेकिन सत्तारूढ़ दल को बैसाखी के सहारे सत्ता में बैठने के लिए मजबूर कर दिया। यह जनता की समझदारी है कि वह अब पढ़ लिख गई है और उसे अपना भविष्य देखना आ गया है। पिछले दिनों संसद में संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर अपने दो घंटे के भाषण में प्रधानमंत्री ने कई बातों पर जोर दिया, फिर सिमटकर वही जवाहरलाल नेहरू और उस परिवार पर आ गए, जिनकी आलोचना करते उनका दल और दिल थकता नहीं। जिस पर प्रियंका गांधी ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि प्रधानमंत्री का भाषण गणित के डबल पीरियड जैसा उबाऊ था। देश ने पिछले दस वर्षों में ही नहीं, आजादी के समय से अब तक कितना विकास किया, उसकी क्या उपलब्धि रही और उन्होंने अपने कार्यकाल में कितने लोगों को रोजगार दिया, कितने स्कूल कॉलेज खोले गए, कितने उद्योगों का विकास हुआ, यह न बताकर उन्होंने विपक्ष को खासकर कांग्रेस पर अपनी तरह से हर जगह घेरने का प्रयास किया। काश, सरकार एक दूसरे की कमी निकालने के उलट, विपक्ष को साथ लेकर चलती तो उससे देशहित का काम होता, देश की एकता में बढ़ोत्तरी होगी।

ऐसा नहीं है कि जवाहरलाल नेहरू की आज आलोचना की जा रही है। वह भी सत्तारूढ़ दल द्वारा और विशेषकर प्रधामंत्री और उनके मंत्रियों द्वारा, बल्कि उनके जीवनकाल में भी झूठी बातों का प्रचार जोर शोर से किया जाता रहा है। उन्होंने अपनी किताब ‘मेरी कहानी’ में लिखा है कि ‘मुझे पता लगा मेरे पिताजी और मेरे बारे में एक बहुत प्रचलित दंतकथा यह है कि हम हर हफ्ते अपने कपड़े पेरिस की किसी लॉन्ड्री में धुलने को भेजते हैं। हमने कई बार इसका खंडन किया है, फिर भी यह बात प्रचलित है ही। इससे ज्यादा वाहियात बात  की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर कोई इतना मूर्ख हो कि वह ऐसे झूठे बड़प्पन के लिए इस तरह की फिजूलखर्ची करे, तो मैं समझता हूं कि वह अव्वल दर्जे का मूर्ख ही समझा जाएगा।’ उन्होंने आगे लिखा है कि ‘अभिमान की तह आदमी पर चर्बी की तरह धीरे धीरे अनजाने चढ़ती रहती है। यह जिस आदमी पर चढ़ती है, उसे पता नहीं चलता कि रोज उस पर कितनी चर्बी चढ़ रही है। मगर खुशकिस्मती से इस पागल दुनिया की सख्त चोटों से वह कम भी हो जाती है या फिर बिल्कुल उतर जाती है। हिंदुस्तान में तो पिछले वर्षों में हम पर इन सख्त चोटों की कमी नहीं रही है। जिंदगी का स्कूल हमारे लिए बहुत सख्त रहा है और कष्ट सहना दरअसल बड़ा सख्त काम लेनेवाला मास्टर है।’ सच तो यह है कि पं. नेहरू के समकालीन तो कोई देश में रहा नहीं, इसलिए एकपक्षीय जो भी सच या झूठ का आरोप उनके सिर मढ़ा जाता है, उस काल परिस्थितियों का उत्तर तो केवल वही दे सकते हैं, जिसे अब लेना किसी के लिए भी संभव नहीं है। इसलिए राजनीतिज्ञ केवल कुतर्क और अपने हिसाब से प्रश्न भी चुनते हैं और उसका तदनुरूप उत्तर भी वही देते हैं, पर ऐसे नेताओं  को कहां यह पता है कि देश की जनता अब पूरी तरह सच और झूठ को पकड़ भी लेती और समय आने पर उसका सही जवाब भी देती है।

जिन दिनों संसद में संविधान 75 वर्ष पूरा होने पर जोरदार चर्चा चल रही थी, तो सदन को देखकर यह लगने लगा था कि सदन में सत्तारूढ़ दल ने तय कर लिया है कि किसी न किसी बात से विपक्ष को उद्वेलित करे, अपमानित करे। चर्चा के दौरान संसदीय कार्यमंत्री किरण रिजिजू कहते हैं कि कांग्रेस ने आंबेडकर को उनका वाजिब हक नहीं दिया, इसके लिए वह माफी मांगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी पर आग बबूला होते हुए कहा कि उन्हें अपना ट्यूटर बदल लेना चाहिए। भाजपा के तमाम नेताओं ने राहुल गांधी पर अपनी भड़ास निकालते हुए संबित पात्रा, भाजपा संसद तेजस्वी सूर्या ने भी कोई कमी नहीं की छोड़ी और कहा राहुल गांधी को अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस से ज्ञान मिलता है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब सत्तारूढ़ राहुल गांधी से इस कदर नफरत करता है और उनसे आतंकित है, तो फिर जांच कराकर उन्हें जेल में क्यों नहीं बंद कर रहे हैं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं) :किस इतिहास को पढ़कर हमारे राजनेता इतने ज्ञानी हो जाते हैं कि समाज को सच्चाई से रास्ता दिखाने के नाम पर अपने बेतुके बयानों से उन्हें गुमराह करने लगते हैं! सच तो यह है कि उनके पास इतिहास का कुछ खास ज्ञान तो होता नहीं, लेकिन तुकबंदी करने के चक्कर में इस तरह उलझ जाते हैं कि अपने बयानों से समाज को भी गैर ऐतिहासिक बातों में उलझा देते हैं। सामान्य जनता तो यह मानती है कि देश के सबसी बड़ी पंचायत में खड़ा होकर कोई उन्हें भटका नहीं सकता, लेकिन ऐसा ही हो रहा है। यहां इसलिए ऐसा कहना पड़ रहा है, क्योंकि यदि राजनीतिज्ञ एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप नहीं लगाएंगे तो फिर समाज उन्हें उच्चतर स्थान पर बैठने के लिए क्यों अपना मत जाया करेगा। यदि आज के सत्तारूढ़ की बात करें, तो उनके सभी राजनीतिज्ञ पं. जवाहरलाल नेहरू, उनकी बेटी इंदिरा गांधी और यहां तक कि राजीव गांधी तक को जोड़कर उनके खिलाफ विषवमन करते रहते हैं। इसका सबसे पहला उदाहरण हमारे प्रधानमंत्री स्वयं हैं, जो बार बार अपने भाषणों में नेहरू परिवार को नीचा दिखाते रहते हैं, कोसते रहते हैं। उनकी बात तो सब जानते हैं, लेकिन उनके मंत्री भी इसमें पीछे नहीं रहते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि नेहरू परिवार पर आरोप प्रत्यारोप लगाने में यदि वे पीछे रहें तो उनका मान सम्मान अपनी पार्टी के नेताओं के बीच कम हो जाएगा और हो सकता है उन्हें चलता कर दिया जाए। ऐसा हुआ भी है, कुछ सांसदों को इसके लिए पदोन्नति दी गई और कई बाहर निकाल दिए गए। कुल मिलाकर ऐसा लगने लगा है कि जो राजनीतिज्ञ नेहरू परिवार की आलोचना करने में अपना समय जाया कर रहे हैं, उन्हें इतिहास पढ़ना चाहिए, विशेषकर पं. नेहरू लिखित ‘मेरी कहानी’ और ‘भारत एक खोज(डिस्कवरी ऑफ इंडिया)’। निश्चित रूप से इन पुस्तकों को पढ़ने से उनके ऐतिहासिक ज्ञान में वृद्धि होगी और वे समाज को सच्चाई से रूबरू कराने में अज्ञानता का सहारा नहीं लेंगे।

यह समझ से अलग बात है कि बार बार परिवारवाद की बात कहकर क्या साबित करने की होड़ लगी है? यदि पार्टी किसी को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है, तो यह पार्टी के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन चुनाव में जीत हार तो जनता तय करती है। क्या उस क्षेत्र में परिवार के इतने लोग होते हैं, जो सब गांधीवादी विचार के या नेहरू परिवार से जुड़े हुए हैं? फिर जब किसी ने चुनाव जीता है, तो उसे जनता ने चुनकर भेजा है। यही हाल तो भारत के सभी दलों में हो ही रहा है, कोई भी दल इससे अछूता कहां है? यदि इसे ही परिवारवाद माना जाए, तो सत्तारूढ़ दल का शायद ही कोई ऐसा वरिष्ठ सदस्य होगा, जो इस तथाकथित परिवारवाद से ग्रस्त न हो। फिर उस पर भी तो चर्चा करनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता। जिस दिन विपक्ष इतना ताकतवर हो जाएगा, उस दिन वह इस मुद्दे को लेकर संसद में ऐसा कहने वालों के लिए खुलकर अपनी बात रखेगा, लेकिन जब होगा तब, फिलहाल तो सत्तापक्ष अभी किसी न किसी बैसाखी के सहारे मजबूत है, उसके हाथ में सत्ता रूपी हथियार है। अब तो पं. नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी को गुजरे इतने वर्ष हो गए, लेकिन उस परिवार का दबदबा आज भी इतना बना हुआ है कि सत्तारूढ़ अपनी लकीर को बड़ी करने के बजाय उसे मिटाने में लगा है। कई उदाहरणों में एक उदाहरण वर्तमान में लोकसभा में विपक्षी नेता राहुल गांधी का भी लिया जा सकता है, जिन्हें अयोग्य साबित करने में सरकार ने पूरी शक्ति का प्रयोग किया, लेकिन एक पदयात्रा ने सरकार की पूरी योजनाओं को ध्वस्त कर दिया।

देश ने यह समझ लिया कि एक योग्य और पढ़े लिखे नेता को किस प्रकार अपने परिवार सहित अपमानित किया जा रहा है। जनता फिलवक्त उस दल को सत्ता तो नहीं दिला सकी, लेकिन सत्तारूढ़ दल को बैसाखी के सहारे सत्ता में बैठने के लिए मजबूर कर दिया। यह जनता की समझदारी है कि वह अब पढ़ लिख गई है और उसे अपना भविष्य देखना आ गया है। पिछले दिनों संसद में संविधान के 75 वर्ष पूरे होने पर अपने दो घंटे के भाषण में प्रधानमंत्री ने कई बातों पर जोर दिया, फिर सिमटकर वही जवाहरलाल नेहरू और उस परिवार पर आ गए, जिनकी आलोचना करते उनका दल और दिल थकता नहीं। जिस पर प्रियंका गांधी ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि प्रधानमंत्री का भाषण गणित के डबल पीरियड जैसा उबाऊ था। देश ने पिछले दस वर्षों में ही नहीं, आजादी के समय से अब तक कितना विकास किया, उसकी क्या उपलब्धि रही और उन्होंने अपने कार्यकाल में कितने लोगों को रोजगार दिया, कितने स्कूल कॉलेज खोले गए, कितने उद्योगों का विकास हुआ, यह न बताकर उन्होंने विपक्ष को खासकर कांग्रेस पर अपनी तरह से हर जगह घेरने का प्रयास किया। काश, सरकार एक दूसरे की कमी निकालने के उलट, विपक्ष को साथ लेकर चलती तो उससे देशहित का काम होता, देश की एकता में बढ़ोत्तरी होगी।

ऐसा नहीं है कि जवाहरलाल नेहरू की आज आलोचना की जा रही है। वह भी सत्तारूढ़ दल द्वारा और विशेषकर प्रधामंत्री और उनके मंत्रियों द्वारा, बल्कि उनके जीवनकाल में भी झूठी बातों का प्रचार जोर शोर से किया जाता रहा है। उन्होंने अपनी किताब ‘मेरी कहानी’ में लिखा है कि ‘मुझे पता लगा मेरे पिताजी और मेरे बारे में एक बहुत प्रचलित दंतकथा यह है कि हम हर हफ्ते अपने कपड़े पेरिस की किसी लॉन्ड्री में धुलने को भेजते हैं। हमने कई बार इसका खंडन किया है, फिर भी यह बात प्रचलित है ही। इससे ज्यादा वाहियात बात  की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर कोई इतना मूर्ख हो कि वह ऐसे झूठे बड़प्पन के लिए इस तरह की फिजूलखर्ची करे, तो मैं समझता हूं कि वह अव्वल दर्जे का मूर्ख ही समझा जाएगा।’ उन्होंने आगे लिखा है कि ‘अभिमान की तह आदमी पर चर्बी की तरह धीरे धीरे अनजाने चढ़ती रहती है। यह जिस आदमी पर चढ़ती है, उसे पता नहीं चलता कि रोज उस पर कितनी चर्बी चढ़ रही है। मगर खुशकिस्मती से इस पागल दुनिया की सख्त चोटों से वह कम भी हो जाती है या फिर बिल्कुल उतर जाती है। हिंदुस्तान में तो पिछले वर्षों में हम पर इन सख्त चोटों की कमी नहीं रही है। जिंदगी का स्कूल हमारे लिए बहुत सख्त रहा है और कष्ट सहना दरअसल बड़ा सख्त काम लेनेवाला मास्टर है।’ सच तो यह है कि पं. नेहरू के समकालीन तो कोई देश में रहा नहीं, इसलिए एकपक्षीय जो भी सच या झूठ का आरोप उनके सिर मढ़ा जाता है, उस काल परिस्थितियों का उत्तर तो केवल वही दे सकते हैं, जिसे अब लेना किसी के लिए भी संभव नहीं है। इसलिए राजनीतिज्ञ केवल कुतर्क और अपने हिसाब से प्रश्न भी चुनते हैं और उसका तदनुरूप उत्तर भी वही देते हैं, पर ऐसे नेताओं  को कहां यह पता है कि देश की जनता अब पूरी तरह सच और झूठ को पकड़ भी लेती और समय आने पर उसका सही जवाब भी देती है।

जिन दिनों संसद में संविधान 75 वर्ष पूरा होने पर जोरदार चर्चा चल रही थी, तो सदन को देखकर यह लगने लगा था कि सदन में सत्तारूढ़ दल ने तय कर लिया है कि किसी न किसी बात से विपक्ष को उद्वेलित करे, अपमानित करे। चर्चा के दौरान संसदीय कार्यमंत्री किरण रिजिजू कहते हैं कि कांग्रेस ने आंबेडकर को उनका वाजिब हक नहीं दिया, इसके लिए वह माफी मांगे। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी पर आग बबूला होते हुए कहा कि उन्हें अपना ट्यूटर बदल लेना चाहिए। भाजपा के तमाम नेताओं ने राहुल गांधी पर अपनी भड़ास निकालते हुए संबित पात्रा, भाजपा संसद तेजस्वी सूर्या ने भी कोई कमी नहीं की छोड़ी और कहा राहुल गांधी को अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस से ज्ञान मिलता है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब सत्तारूढ़ राहुल गांधी से इस कदर नफरत करता है और उनसे आतंकित है, तो फिर जांच कराकर उन्हें जेल में क्यों नहीं बंद कर रहे हैं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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