Mahakumbh 2025: 13 जनवरी से महाकुंभ मेले का शुभारंभ हो जाएगा. इससे पहले मेला क्षेत्र में छावनी प्रवेश का सिलसिला शुरु हो गया है. धूमधाम के साथ अखाड़े के साधु-संत मेला क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं. जहां बड़ी संख्या में नागा साधु भी पहुंच रहे हैं. जहां एक 9 साल के नागा साधु भी पहुंचे हैं. जिन्होंने साधु जीवन को लेकर अपनी बात रखी है और नागा साधु बनने के पीछे की वजह भी बताई है.
बता दें कि 9 साल के नागा साधु गोपाल गिरी महाकुंभ में पहुंचे है, जो सबसे कम उम्र के नागा साधु हैं. जिनसे पूछा गया कि आखिर उन्होंने इस रास्ते को क्यों चुना है? साथ ही उनसे ये पूछा गया कि आप ये जीवन कब से जी रहे हैं और इस जीवन से आप संतुष्ट हैं कि नहीं. जिसका जवाब उन्होंने बड़ी सादगी से दिया और बताया कि वे पिछले 4 साल से नागा साधु का जीवन जी रहे हैं.
इतना ही नहीं उनसे उनकी तपस्या को लेकर भी सवाल पूछा गया. जिसका जवाब देते हुए गोपाल गिरी ने कहा, तप तो करना पड़ेगा. सबसे बड़ा तो संसार में साधु ही होता है और भगवान होता है. दुनिया तो सब कुछ चाहती है, फिर चाहे वो हो या ना हो लेकिन साधु को अपना भजन नहीं छोड़ना चाहिए. इसलिए सबसे ज्यादा भजन करते हैं.
तन पर भभूत रमाए और हाथ में चापर लिए गोपाल गिरि दिन भर भजन कीर्तन में जुटे रहते हैं. महाकुंभ में अपने गुरु के साथ पहुंचे गोपाल गिरी मूल रूप से हिमाचल प्रदेश में चंबा के रहने वाले हैं. उनके गुरु भाई बताते हैं कि तीन साल पहले इनके माता-पिता ने गुरुजी को बतौर गुरु दक्षिणा सौंप दिया था. उसी समय गुरुजी ने विधि विधान से इन्हें दीक्षा दी और तभी से वह भगवान भोलेनाथ की सेवा में हैं. गोपाल गिरि तो अपनी उम्र बताते हुए शर्माते हैं, लेकिन उनके गुरु भाई ने बताया कि इस समय वह 8 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके हैं.
शस्त्र और शास्त्र की लेते हैं ट्रेनिंग
उन्होंने बताया कि गोपाल गिरी बीते पांच साल से आश्रम में हैं और इस अवधि में वह जप तप साधना और अनुष्ठान सीख रहे हैं. इसके अलावा वह आश्रम में रहकर शस्त्र और शास्त्र की भी ट्रेनिंग ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि गोपाल गिरी को इधर उधर की बातें पसंद नहीं हैं. वह बहुत अनुशासन में रहते हैं और तन पर केवल अभिमंत्रित भभूत लगाकर दिन भर धूनी के सामने बैठे रहते हैं और साधना करते हैं. बता दें कि महाकुंभ में सैकड़ों की तादात में नागा साधु पहुंचे हैं.
अखाड़े में महिलाओं के प्रवेश पर जताते हैं आक्रोश
ये साधु संत दिन-रात संगम की रेती पर धुनी रमाते नजर आते हैं. खुद बाल नागा साधु गोपाल गिरी भी कहते हैं कि यहां दिन भर भंडारा चलता है और खाना पीना और भजन करना ही हमारा काम है. बात बात पर गुस्सा जाहिर करने वाले गोपाल गिरी अखाड़े में महिलाओं के प्रवेश पर नाराज हो जाते हैं. वह नहीं चाहते हैं कि कोई भी उनकी साधना में बाधा बने. हाथ में हमेशा चापर धारण करने वाले इस नागा साधु के मुताबिक हथियार धर्म की रक्षा के लिए होता है.