Mahakumbh 2025 : वनवासकाल के दौरान प्रयागराज के भरद्वाज आश्रम में रुके थे भगवान श्रीराम

Sushmita Mukherjee

Mahakumbh 2025 : भगवान राम भारतीय इतिहास का एक अहम हिस्सा हैं, इसका एक प्रमाण प्रयागराज स्थित महर्षि भारद्वाज मुनि का आश्रम है, जो आज भी विद्यमान है. रामचरित मानस और वाल्मिकी रामायण में उल्लेखित है कि श्रीराम का चौदह वर्ष के वनवास का पहला ठहराव प्रयागराज स्थित भरद्वाज आश्रम ही था. एक रात इस आश्रम में गुजारने के पश्चात महर्षि भरद्वाज जी से आशीर्वाद प्राप्त कर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को गंगा-यमुना-सरस्वती की त्रिवेणी में स्नान कर चित्रकूट के लिये प्रयाण किया था.

प्रयागराज के पहले वासी थे भरद्वाज मुनि

मान्यता है कि प्रयागराज को महर्षि भरद्वाज ने ही बसाया था, इसीलिए उन्हें प्रयागराज का प्रथम वासी माना जाता है. उन्होंने प्रयाग में पृथ्वी के सबसे बड़े गुरूकुल (विश्वविद्यालय) की स्थापना की थी और हजारों वर्षों तक विद्यादान करते रहे.

महर्षि भरद्वाज और उनके आश्रम का उल्लेख वेद और पुराणों के अलावा रामायण और श्रीरामचरित मानस में भी है. भरद्वाज तपस्वी होने के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान, वेद पुराण, आयुर्वेद, धनुर्वेद और विमान विज्ञान के भी गहरे जानकार थे. राजा दशरथ ने जब राम को चौदह वर्ष का वनवास दिया, तब सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या छोड़ने के बाद भरद्वाज मुनि के आग्रह पर इसी आश्रम में उन्होंने कुछ समय गुजारा था. भरद्वाज ऋषि ने ही श्रीराम को चित्रकूट में चौदह वर्ष गुजारने के लिए कहा था, क्योंकि यह स्थान हर दृष्टिकोण से शांत, सुरक्षित और प्रकृति सौंदर्य से भरपूर था.

श्रीराम के चित्रकूट प्रयाण के पश्चात जब भरत श्रीराम को वापस लाने के लिए चित्रकूट जा रहे थे, तब उन्होंने भी प्रयाग रुक कर भरद्वाज ऋषि का आशीर्वाद लिया था. यही नहीं रावण का संहार कर श्रीराम सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान से अयोध्या वापस लौट रहे थे, तब भी भरद्वाज ऋषि का आशीर्वाद लेने के लिए उन्होंने कुछ समय भरद्वाज आश्रम में ही बिताया था. जानकारों के अनुसार यह त्रेता और द्वापर का संधिकाल का समय था. बताया जाता है कि इस आश्रम में भरद्वाज मुनि ने एक शिवलिंग की स्थापना की थी, इन्हें भरद्वाजेश्वर शिव कहा जाता है. आज भी यह शिव विग्रह भारद्वाज आश्रम में मौजूद है.

कौन थे भरद्वाज ऋषि

भरद्वाज ऋषि के बारे में कहा जाता है कि वह बृहस्पति और ममता के सर्वश्रेष्ठ पुत्र थे. किन्हीं कारणों से माता-पिता द्वारा परित्याग किये जाने के पश्चात मरुद्गणों ने इनका पालन-पोषण किया. एक बार राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र सम्राट भरत अपने वंश के विस्तार के लिए पुत्र प्राप्ति हेतु मरुत्सोम यज्ञ किया. इस यज्ञ से प्रसन्न होकर मरुद्गणों ने भरद्वाज को सम्राट भरत को भेंट कर दिया. सम्राट भरत द्वारा गोद लिये जाने के पश्चात ये ब्राह्मण से क्षत्रिय बन गये थे. महर्षि भरद्वाज की दो पुत्रियां मैत्रेयी और इलविला थीं. मैत्रेयी का विवाह महर्षि याज्ञवल्क्य और इलविला का विश्रवा मुनि से हुआ था.

सर्वप्रथम विमान का निर्माण भरद्वाज मुनि ने किया था

ऋषि-मुनियों-तपस्वियों को लेकर हमारे मन-मस्तिष्क में जो दृश्य रेखांकित होता है, वह जटाजूटधारी, भगवा वस्त्र पहने, तिलक और रुद्राक्ष धारण किये, हवन कुण्ड के सामने यज्ञादि करते एक पवित्र व्यक्ति के रूप में होती है. हम उनके उस पहलू को भूल जाते हैं, जो उनके वैज्ञानिक होने का पुख्ता एवं प्रामाणिक संकेत देते हैं. महर्षि भारद्वाज ऐसे ही सर्वगुण सम्पन्न ऋषि थे, जिनके पास विज्ञान तकनीक की महान दृष्टि भी थी. महर्षि भारद्वाज के “यंत्र सर्वस्व” नामक ग्रंथ में तमाम किस्म के यंत्रों के बनाने तथा उनके संचालन का विस्तृत वर्णन किया गया है. इसके चालीसवें संस्करण में विमान संबंधित तमाम जानकारियां उल्लेखित हैं.

सबसे लंबी आयु वाले महर्षि थे भारद्वाज मुनि

बताया जाता है कि महर्षि भरद्वाज को आयुर्वेद और सावित्र्य अग्नि विद्या का ज्ञान इन्द्र एवं श्री ब्रम्हा जी से प्राप्त हुआ था. अग्नि के सामर्थ्य को आत्मसात कर उन्होंने अमृत तत्व प्राप्त किया था और स्वर्ग लोक जाकर आदित्य से सायुज्य प्राप्त किया था. यही वजह है कि ऋषि भरद्वाज सर्वाधिक आयु वाले ऋषियों में से एक थे.

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