Mahakumbh 2025 : एकता के महाकुम्भ में आस्था का ज्वार

Madhukar Srivastava

Mahakumbh 2025 : मौनी अमावस्या पर संगम पर हादसे के कुछ ही समय बाद हादसा पीछे छूट गया और आस्था का सैलाब आगे आगे चलने लगा। फिर एक बार प्रश्न उठने लगा महाकुंभ क्या है?
आखिर क्या है महाकुंभ! तो समझिए समय से परे एक उत्सव, जीवन से परे एक पल है महाकुंभ। आध्यात्मिक जागृति का महापर्व है महाकुंभ। आत्मशुद्धि का पर्व है महाकुंभ। सनातन धर्म की दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा का महापर्व है महाकुंभ। जहां आस्था अमृत बनकर आत्मा से जोड़ती है, वो है महाकुंभ। सृष्टि में सभी संस्कृतियों का संगम है महाकुंभ। ऊर्जा का अनंत महाश्रोत है महाकुंभ। मानवता का प्रवाह है महाकुंभ। आध्यात्मिक चेतना का उदय है महाकुंभ। आत्म प्रकाश का मार्ग है महाकुंभ। जीवन की गतिशीलता का महा पर्याय है महाकुंभ। हां, आध्यात्मिक ऊर्जा का महापर्व है महाकुंभ। भारत की आस्था और परंपराओं का प्रतीक है महाकुंभ। आस्था और संस्कृति का संगम है महाकुंभ। यह एक ऐसा अवसर है जो लोगों को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास का मार्ग दिखाता है महाकुंभ। मानवता की जीवन रेखा है महाकुंभ।

तभी तो मौनी अमावस्या स्नान पर्व पर मौन डुबकी की ललक में संगम पर हुआ हादसा आस्था के जन ज्वार में चंद समय बाद ही पीछे छूट गया। यकीन मानिए प्रयागराज में सभी लोग सकुशल आस्था के संगम में डुबकी लगा रहे हैं तो बाहर में माहौल को कुछ और बताया जा रहा है।
हादसे के चंद समय बाद ही आठ लेन वाले अखाड़ा मार्ग से लेकर संगम द्वार तक ऐसा माहौल बन गया, जैसे वहां कुछ़ हुआ ही न हो। आस्था का जन प्रवाह रत्ती भर कम नहीं हुआ। बृहस्पतिवार की आधी रात को ही संगम नोज इलाके में तिल रखने की जगह नहीं बची। चेहरे पर उत्साह और पांवों में कभी न आने वाली थकान का भाव लिए संगम की दूरी पूछते लोग आस्था की डगर पर बढ़ते नजर आए। चाहे लाल मार्ग हो या काली मार्ग या फिर त्रिवेणी मार्ग। हर तरफ से भक्ति की लहरें संगम की ओर उफनाती रहीं। बुधवार को मौनी अमावस्या के अवसर पर शाम आठ बजे तक 7.64 करोड़ लोगों ने डुबकी लगाई। वहीं, अभी तक महाकुंभ में कुल 28 करोड़ श्रद्धालु स्नान कर चुके हैं।

कभी नहीं रुकता आस्था का जन प्रवाह

इतिहास इस बात की गवाही देता है की आस्था का जन सैलाब कभी भी नहीं रुका। जो याद दिलाता है कि चरैवेति चरैवेति. ..! चाहे धर्म भीरु सम्राट हर्षवर्धन का दौर रहा हो या फिर सैकड़ों वर्षों की गुलामी का कालखंड। कुंभ में आस्था का यह जन प्रवाह कभी नहीं रुका। पद्मपुराण में कहा गया है कि आगच्छन्ति माघ्यां तु, प्रयागे भरतर्षभ… यानी माघ महीने में सूर्य जब मकर राशि में गोचर करते हैं तब संगम में स्नान से करोड़ों तीर्थों के बराबर पुण्य मिल जाता है। लोक धारणा है कि इस अवधि में जो श्रद्धालु प्रयाग में स्नान करते हैं, वह हर तरह के पापों से मुक्त हो जाते हैं।

यही धारणा संगम पर जन ज्वार के रूप में दिन रात उफना रही है। बिहार के नासरीगंज से अपनी मां को कुंभ स्नान कराने आए अमितेश सिंह बुधवार की रात संगम नोज पर हुए हादसे के समय घिर गए थे। बिना स्नान किए रात को किसी तरह वहां से सुरक्षित सेक्टर 18 के अपने शिविर में मां को लेकर वापस आए। बृहस्पतिवार को वह संगम नोज पर उसी जगह वह फिर अपनी मां पार्वती देवी को लेकर स्नान कराने पहुंचे।

त्रिवेणी की पावन धारा में डुबकी लगाकर दोनों मां-बेटा धन्य हो उठे। उनका कहना था कि वह यहां किसी चमक दमक, बसावट या बाहरी व्यवस्था को देखने नहीं आए हैं। संगम की महिमा ही सनातन संस्कृति का गौरव है। वह कहते हैं कि कुंभ मनुष्य के अंतर्मन की चेतना का नाम है। यह चेतना स्वत: जागृत होती है। यही चेतना भारत के कोने-कोने से लोगों को संगम तट तक खींच लाती है।

एकता का महाकुंभ

जरा सोचिए। गहन विचार करिए। गांव, कस्बों, शहरों से लोग तीर्थराज प्रयाग की त्रिवेणी की ओर निकल पड़ते हैं। सामूहिकता की ऐसी शक्ति, ऐसा समागम शायद ही कहीं और देखने को मिले। यहां आकर संत-महंत, ऋषि-मुनि, ज्ञानी-विद्वान, सामान्य जन सब एक हो जाते हैं। सब एक साथ त्रिवेणी में डुबकी लगा रहे हैं। यहां जातियों का भेद खत्म हो जाता है, संप्रदायों का टकराव मिट जाता है। करोड़ों लोग एक ध्येय, एक विचार से जुड़ जाते हैं।

इसी तरह ऑस्ट्रेलिया से अल्फांसोलिया, जॉनी वेट और
कनाडा से पहुंचकर कल्पवास कर रहीं श्रीमा मालिनी, डेविन, लिंडा गैल कहती हैं कि महाकुंभ के दौरान यहां अलग-अलग राज्यों से करोड़ों लोग जुटे हुए हैं। उनकी भाषा अलग है, जातियां अलग हैं। मान्यताएं अलग है, लेकिन संगम नगरी में आकर वो सब एक हो गए हैं और इसलिए महाकुंभ एकता का महायज्ञ बन गया है। इसमें हर तरह के भेदभाव की आहुति दे दी जाती है। यहां संगम में डुबकी लगाने वाला हर भारतीय एक भारत-श्रेष्ठ भारत की अद्भुत तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है। महाकुंभ बताता है भारत एक है। भारत श्रेष्ठ है।

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