Budget 2025 : आने वाले अर्थ के खर्च की योजना में राष्ट्र , राज्य तो बँधे ही हैं . आज बजट में हाथ खुले . खुले हाथ से खर्च करने का अवसर भी मिला . लेकिन यह एक अवसाद दे गया . अब आयकर देने वाले गौरव भी छीन गया, अपनी पेंशन से आय बारह लाख ही तो है . हाय ! अब इस बजट ने समाज में मुँह दिखाने योग्य भी न छोड़ा !
अब एक आंदोलन करने की इच्छा हो रही है . हम सरकार से कहेंगे कि यह क्या मनमानी है . हम आयकर देना चाहते हैं . ताकि यह कह सकें कि मुफ्त की बँट रही रबड़ी में मेरा भी अंशदान है . सरकार बारह लाख तक की आय को आयकर मुक्त कर मेरे आत्मसम्मान को धक्का दिया है . चार दशक पूर्व हम जब से नौकरी में आए थे , तब से ही आयकर देने का सुख हमें मिलता रहा . हमने पेट काटते रहे , खर्च न्यूनतम करने की आदत डालते रहे , आयकर देने के लिए ऋण लेते रहे और पूरे वर्ष उसे चुकाने में लगाते . ताकि नए वित्तीय वर्ष में नए आयकर देने के लिए पुनः अधिक कर्ज लिया जा सके . हमें इसकी आदत पड़ चुकी है . सरकार एकाएक हमें इन सुखों से मुक्त नहीं कर सकती . समाज में आयकर दाता होने का हमारा गौरव नष्ट हो जाएगा . हम कैसे कहेंगे कि मुफ्त बिजली , पानी , स्कूल की शिक्षा देने में मेरा योगदान है . यह सरकार अब अन्याय पर उतर आयी है . हम अन्याय नहीं सहेंगे . नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने कहा था – तुम मुझे खून दो – मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा . आज़ादी तो मिले सतहत्तर वर्ष हो गए , लेकिन टैक्स के रूप में हमारा खून लिया जाता रहा . अब अचानक इसके बंद होने से कष्ट होने लगा है .मैं सोचता हूँ कि जब अपने टैक्स देने की माँग लेकर मैं सरकार के पास जाऊँगा तो सरकार क्या उत्तर देगी . सरकार कह सकती है कि प्रत्यक्ष कर ,आयकर नहीं लिया तो क्या हुआ हम उसकी भरपाई अप्रत्यक्ष कर जीएसटी से कर लेंगे . लेकिन प्रत्यक्ष कर देने के बाद हमारी अकड़ रहती थी – यह कहने पर सरकार कह सकती है कि अब अकड़ हमें दे दो . बहुत अकड़ लिए . हमें तो लगा था कि कर सरलीकरण में सारी आय सीधे सरकार के खाते में चली जायेगी और फिर अपने खर्च की गुहार लगाएंगे तो सरकार समय -समय पर हम पर कृपा कर दिया करेगी और सरकारी कृपा पर हमारा घर किसी तरह चलेगा . परन्तु इसके ठीक विपरीत हमारी आशाओं पर तुषाराघात कर दिया गया . हमें आयकर से मुक्त कर निरीह बना दिया गया .
बजट की खास बात यह होती है कि बजट के पहले जो सामान खरीद चुके वे सस्ती हो जाती हैं और जिसे खरीदने की सोच रहा हूँ , वह मँहगी हो जाती है . फिर सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाकर हम मँहगी चीज खरीद लेते थे . इस बजट ने उसे भी नहीं होने दिया . अब हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा का क्या होगा ? फिर सस्ती चीजें खरीदने से हमारा व्यक्तित्व भी सस्ता हो जायेगा . हम किस बात का दिखावा कर सकेंगे ?
Budget 2025 : बजट

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