civilised society : एक दिन अमुक जी एक सभा समाप्ति पर मंच से मेरे उतरते ही पीछे भीड़ को चक्रव्यूह के बाहरी घेरे को भाँती चीरते हुए अभिमन्यु की तरह आकर सीढ़ियों पर मुझसे तपाक से मिले . वे मेरे परिचित हैं . कहीं – कहीं मिलते हैं . जब मिलते हैं तो झुककर नमस्ते करते हैं . मैं भी उत्तर में हाथों की हथेलियों को जोड़कर उन्हें नाक तक ले आकर ठहरते हुए नमस्ते बोल दिया करता . और ऐसे बोलता हूँ कि उन्हें सिर्फ ते सुनाई दे . वे आगे बढ़कर मेरे हाथों को कस कर पकड़ लेते हैं और अपने ओठों को कानों की ओर खींचकर टिकाते हुए मुखमंडल पर स्थाई मुस्कान स्थिर कर लेते हैं . वे सम्भवतः चाहते हैं कि मैं उनके प्रेम भाव से तुरंत अविभूत हो जाऊँ . मैं सर्वदा ऐसे आक्रमण के अवसरों पर विशेष सतर्क हो जाता हूँ . उनसे हाथ छुड़ाने का संघर्ष करने लगता हूँ . वे इसमें समय लेते हैं . कह उठते हैं – सब ठीक है न . मैं उन्हें टालने के लिए शीघ्रता से उत्तर देता हूँ – हाँ ,सब ठीक है . वे हाथ नहीं छोड़ते और दबाब बनाये रखते हैं . फिर पूछते हैं – और परिवार ? मुझे क्रोध आता है . क्षणिक संशय होता है कि कहीं महाशय मेरी एकलौती , सगी और अत्यंत सौंदर्यमयी पत्नी की अधिक चिंता तो नहीं कर रहे ? मैं चौकन्ना हो जाता हूँ .अब एक ही झटके में अपने हाथ खींच लेता हूँ . वे मेरी प्रतिक्रिया से पीछे नहीं हटते . फिर पूछ लेते हैं – और बच्चे वगैरह ? अब मैं पीछा छुड़ाने का निश्चय कर कहता हूँ – सब अपनी – अपनी जगह ठीक हैं . इतना कहकर मैं आगे बढ़कर शीघ्रता से सीढियाँ उतरने लगता हूँ और किसी अन्य अनजान व्यक्ति की ओर मुस्कुराते हुए उन्हें संकेत देता हूँ कि औपचारिकता हो गयी , मेरा पीछा छोड़ दें . मैं आगे निकल जाता हूँ . ऐसा कई बार अपने शहर के आयोजनों में हो चुका है . मेरे एक साहित्यिक मित्र ने एक दिन पूछ लिया – आप अमुक जी को जानते हैं , वही जो आपको प्रायः ही हर आयोजनों में सीढ़ियों से उतरते हाथ पकड़कर मिलते हैं ? मैंने कहा – मैं उन्हें जानता नहीं . बड़ी आत्मीयता तो अनायास ही दिखा जाते हैं . साहित्यिक मित्र बोले – वे अमुक जी हैं . व्यापारी हैं . उन पर आयकर विभाग , जीएसटी विभाग और ईडी में मामला चल रहा है .मनोरंजन के लिए आ जाते हैं . वे जिससे भी मिलते हैं , ऐसे ही मिलते हैं .
परसों वे फिर एक साहित्यिक कार्यक्रम के बाद मंच से उतरते समय सीढ़ियों पर मिल गए . वही औपचारिकता हुई . वही प्रश्न पूछे .मैं उसी तरह उत्तर देकर अपने हाथ छुड़ाकर आगे बढ़ने लगा . तभी उन्होंने गर्व से कहा – मैं अमुक स्थान के अमुक सिविलाइज़्ड सोसाइटी में रहता हूँ , कभी आएं . मैं अनसुना कर आगे बढ़ गया . वे पीछे -पीछे आकर कहने लगे – कल शाम को आपको लेने आ जाऊँगा . इस अचानक आक्रमण से मैं घबरा गया. और यह कहकर पीछा छुड़ा लिया कि कल मैं बहुत व्यस्त हूँ . वे आज सुबह बिना किसी पूर्व सूचना के आश्चर्यजनक रूप से मेरे घर आ टपके . अनुरोध किया कि दोपहर को उनके घर आऊँ . मैंने पूछ लिया – कोई विशेष आयोजन है ? वे मेरी दुखती रग का पता कर आए थे . कहने लगे – सुंदर काण्ड का पाठ रखा है , आप आते तो आपका आशीर्वाद घर के लोगों को भी मिल जाता . मैं ठीक एक बजे आपके पास गाडी भेज दूँगा .
गाडी साढ़े बारह बजे ही आ गयी . चालक बड़ी विनम्रता से बता गया कि उस सिविलाइज़्ड सोसाइटी पँहुचने में बीस मिनट लगेगा . मैं ठीक एक बजे पँहुच गया . चालक ने सोसाइटी के गेट पर ही वाहन रोक दिया . बताया कि अंदर का रास्ता जाम है . पैदल जाना होगा . एक व्यक्ति मेरे साथ चला . उसने भी कहा – यह सिविलाईज़ेड सोसाइटी है , सर . बड़े – बड़े , बहुत धनी लोग यहाँ रहते हैं .मैंने देखा कि एक से एक बड़ी और मँहगी गाड़ियाँ आड़े – तिरछे लगी हैं और इसी कारण जाम लगा है . किसी तरह बचते – बचाते आगे बढ़ा . आगे दो लोग असंसदीय भाषाओं की आपसी प्रतिस्पर्धा में लगे थे . बात इतनी सी थी कि किसी ने किसी अन्य व्यक्ति की पार्किंग में अपनी गाडी लगा दी है . आगे तथाकथित पार्क की ओर बढ़ा . उस पार्क में बड़े – बड़े वृक्ष लगे थे , चारों ओर झाडीनुमा झाड़ियाँ थीं . उजाड़ प्रधानता थी . फूलों की शून्यता प्रधान थी . वसंत में उजाड़ होने का संकेत दूर – दूर तक , कोने – कोने में बिखरा था .बच्चों के कुछ झूले और स्लाइडिंग लगे थे . झूलों पर बड़े लोग दिखे . पूरा पार्क कहे जाने वाले स्थान में उजड़े घास पर मँहगे ब्रांडों के रेडी टू ईट के रैपर्स बिखरे पड़े थे . कहीं पत्तल , खाद्य पदार्थ भी बिखरे थे . टहलने के बने पथ पर टाइल्स कई स्थान पर टूटे थे . आगे बढ़ने पर एक तरफ की चहारदीवारी टूटी दिखी .कुछ लोग चर्चा करते दिखे – कल तो नलों से गंदा पानी आना सह लिया . आज सुबह से वह भी बंद है . किसी ने कहा – उस ब्लॉक की पार्किंग में पानी टपकता है . तभी किसी ने ऊपर से कचड़ा एक व्यक्ति पर फेंक दिया . एक पर कबूतर ने बिट कर दी . चाहरदीवारी के किनारे लगे वृक्ष कुरूपता की प्रतिस्पर्धा में लगे थे . चारोँ ओर एक से एक बढ़िया ब्रांड की गाड़ियाँ ठसमठस भरी थीं . उनके चालक जगह – जगह गोलबंद हो एक – दूसरे से अश्लील मजाक करते दिखे . सोसाइटी में पान और गुटके के प्रति लोगों के प्रेम के चिन्ह भी दीवारों पर दिख गए . मैं चुपचाप अमुक जी के फ्लैट में गया , प्रसाद ग्रहण कर दस मिनट में लौटने लगा . इस बार अमुक जी साथ गाडी तक आए . आभासर व्यक्त करते हुए पाँच बार यह कहना न भूले – सर हमलोग सिविलाइज़्ड सोसाइटी में रहते हैं न . सोसाइटी के सभी लोगों को तो नहीं बुला सकते . मैं लौट आया हूँ . और सिविलाइज़्ड सोसाइटी के बारे में अपनी धारणा को परिमार्जित करने का यत्न कर रहा हूँ .
civilised society :सिविलाइज़्ड सोसाइटी

Leave a Comment
Leave a Comment