रेहान अहमद
IPL 2025 : आप चाहे जितने IPL को पाटा और सट्टा बुला ले, असलियत ये है कि इस लीग में अब स्किल की लड़ाई बहुत आगे तक चली गई है।आज सनराइजर्स वालो ने जब खेलना शुरू किया था तो वही पाटा विकेट था,जिस पर ये टीम भांग के नशे में भी 300 रन बना सकती थी, पर बात वही है न, स्किल और माइंडसेट, शार्दुल ठाकुर ने खिलाफ सिचुएशन में, अपनी स्किल का नमूना पेश किया। एक गेंदबाज जब रनअप पर दौड़ता है तो उसके पास कम से कम 6 तरह की गेंद फेंकने का ऑप्शन होता है, जिसमें से 4 का पिच से कोई कनेक्शन नहीं होता है, ये 4 गेंदे इस बात पर डिपेंड करती है कि बॉलर ने अपनी स्किल को तराशने में कितनी मेहनत की है या नहीं, एक यॉर्कर और फुल टॉस में कुछ इंच का फासला होता है, बहुत से गेंदबाज तो इस कुछ इंच के फासले के डर से यॉर्कर डालते ही नहीं है, पर कुछ गेंदबाज होते है, अलग माइंडसेट वाले, जो अपने मन की गेंदबाजी करते है। लोगो को लगता है कि क्रिकेट में बल्लेबाजी के लिए दिलेरी चाहिए होती है, जबकि क्रिकेट में सबसे ज्यादा दिलेरी लगती है गेंदबाजी में,खासकर आजकल की क्रिकेट में। शोएब अख्तर का हम लोग चाहे जितना मजा लेते थे, पर वो जब गेंद फेक कर बल्लेबाज को घूरता था l,तो लगता था कि साल कोई गेंदबाज अपने, चौड़ में गेंदबाजी कर रहा है।क्रिकेट के खेल में अग्रेशन वाला डिपार्टमेंट हमेशा से ही,गेंदबाजों के हाथ में था, पता नहीं कब ये चीज बैट्समैन की तरफ शिफ्ट हो गई,और बात सिर्फ पिच और नियमों की नहीं है।
क्रिकेट हमेशा से ही बोलर्स का गेम था, और आगे भी रहेगा,अगर बोलर्स ने रोना छोड़कर वैसी मेहनत शुरू कर दी जैसे पहले के गेंदबाज करते थे।13 साल बाद सचिन ने 200 रन मारकर, सईद अनवर का रिकॉर्ड तोड़ा था, 13 साल लग गए इस 6 रन के फासले को खत्म करने में।अगर आप को लगता है कि नियमों में ढील की वजह से सचिन ने ये 6 रन का फासला तय किया है तो आप क्रिकेट को बस देख रहे है, समझ नहीं पा रहे है। जब कपिल देव में 175 रन मारे थे तो उस दौर में 175 की कल्पना मुश्किल थी, जिस सिचुएशन में कपिल देव ने इतने रन बनाए थे,40 साल तक ये रिकॉर्ड 5वे नंबर के बैट्समैन का हाइएस्ट स्कोर रहा, जब तक ग्लेन मैक्सवेल ने ये रिकॉर्ड दोहरे शतक से नहीं तोड़। क्रिकेट में एक लम्बा दौर रहा है जब एक बल्लेबाज किसी साढ़े 6 फीट के गेंदबाज के सामने खड़ा होता था तो,उसे सिर्फ विकेट ही नहीं, बल्कि जान बचाने की भी चिंता रहती थी। पर बल्लेबाजों ने लड़ाई लड़ी, उन्होंने हल ढूंढा हर पहली का, तभी ये क्रिकेट का खेल इतने सालों तक सरवाइव कर पाया,आज यही काम गेंदबाजों को करने की जरूरत है।फ्लैट पिच हो, या कोई भी नियम, गेंदबाज कभी भी कमजोर नहीं होता अगर उसके पास स्किल और सही माइंडसेट हो तो। इस दौर में जसप्रीत बुमराह से बढ़िया मिसाल कोई दूसरी नहीं हो सकती जिसने हर तरह की पिच और कंडीशन में अपनी मर्जी की गेंदबाजी की है।
एक गेंदबाज के पास T20 में 24,ODI में 60,और टेस्ट में अनलिमिटेड गेंदे फेंकने का मौका होता है, पर बल्लेबाज के पास नहीं। आप सचिन को शोएब अख्तर की डेढ़ सौ की बाल को ऑफ स्टंप पर छक्का मारकर देखते है, तो आपको लगता है कि शोएब अख्तर ने गेंद खराब की है, जबकि असलियत में ऐसा नहीं होता, उस शॉट में बस इतना हुआ कि,एक बल्लेबाज की स्किल गेंदबाज की स्किल से जीत गई,सेम यही चीज विराट कोहली के हैरिस राउफ को मारे हुए छक्के में भी थी, जहां गेंदबाज की गलती सिर्फ इतनी थी कि जो आदमी सामने खड़ा था, वो अपनी स्किल में उससे ज्यादा बेहतर था। क्रिकेट के खेल में यही होता है, कभी पाटा पिच होती है, कभी हरी तो कभी टूटी हुई। चाहे जैसी पिच हो, खेल होता ही इसी बात का है कि गेंदबाज और बल्लेबाज में से किसकी स्किल सामने वाले पर भारी पड़ती है, और जो जितनी मुश्किल सिचुएशन में स्किल दिखाता है उसी का गुणगान दुनिया गाती है,जैसे आज लोग शार्दूल ठाकुर का गुणगान कर रहे है,क्रिकेट में हमेशा कंडीशन मायने रखते आंकड़े नहीं।डिविलियर्स ने एक मैच में,सिर्फ 31 बाल में शतक मारा हुआ है,और भारत के खिलाफ एक टेस्ट के पांचवें दिन 297 गेंद में 43 रन भी बनाए है। अब 31 बाल वाला शतक, दर्शनीय है, मजेदार है, पर क्रिकेट प्रेमियों और एक्सपर्ट्स के मन में जो रिस्पेक्ट उस टेस्ट इनिंग के लिए है, वो इस शतक के लिए बिल्कुल नहीं है। वजह वही, स्किल का टेस्ट ही तभी होता है जब कंडीशन खिलाफ हो।
खेल बदल रहा है क्यूंकि बल्लेबाजों के पास अब तैयारी के मौके ज्यादा है, अब उनके पास प्रोटेक्शन भी ज्यादा है, और नियम भी अब खेल को बराबरी पर लेकर आए है, पर कोई गेंदबाज अगर ये चाहता है कि पाटा पिच बनना बंद हो जाए,तो ये स्टेटमेंट उसी तरह का है जैसे कोई बल्लेबाज कहे कि पिच पर घास न छोड़ी जाए। क्रिकेट का असल मजा तब नहीं आएगा जब पिच न्यूट्रल बनाई जाए, ऐसे में क्रिकेट की डायवर्सिटी खत्म हो जानी है, जो कि क्रिकेट को क्रिकेट बनाती है, हर तरह की पिचें बननी चाहिए, कभी गेंदबाज के अगेंस्ट तो कभी बल्लेबाज के, ताकि समय समय पर मालूम चलता रहे कि हम कही किसी ट्रैक बुली प्लेयर को खान प्लेयर मानने की गलती न करे, और गेंदबाजों को भी ये समझने की जरूरत है किए बल्लेबाज आजकल उनसे ज्यादा मेहनत करने लगे है, बल्लेबाजों के अंदर अब उनसे ज्यादा कॉन्फिडेंट है, जबकि खेल की शुरुआत से ही,गेंद गेंदबाज के हाथ में होती है, गेंद का फैसला गेंदबाज के हाथ में होता है,बल्लेबाजों ने समय के साथ, दूसरा पढ़ना सीख लिया,कैरम बॉल को समझ लिया, रिवर्स स्विंग को क्रैक कर लिया, और आप रोते रहिए पिच का रोना लेकर।