depression in working women : महिलाएं सभी क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, रोज़गार के क्षेत्र में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ रही हैं। महिलाएं शिक्षित हो रही हैं, व्यवसायिक शिक्षा ग्रहण कर रही है, ऐसे में महिलाओं के काम का दायरा भी वृहद स्तर पर बढा है।
कामयाबी मिलने के बावजूद जो सहयोग उन्हें परिवार से मिलना चाहिए, वो नहीं मिल रहा। समय के साथ महिलाओं ने शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर खुदको सशक्त किया है, सम्मान एवं खुद की एक पहचान बनाई है, इंजीनीयरिंग, पत्रकारिका, चिकित्सा इत्यादि क्षेत्र यहां तक कि सेना में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए पूरी ज़िम्मेदारी से बखूबी काम कर रही है। यहां सभी कहना सही नहीं होगा, परंतु ज्यादातर महिलाओं को ऑफिसियल कार्यों के अलावा घर की ज़िम्मेदारी भी उठानी पड़ती है। जिसके परिणाम स्वरूप महिलाओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
इतने सारे बदलाव के बावजूद अगर कुछ कहीं बदला है, तो वह है महिलाओं की घरेलू ज़िम्मेदारी, चाहे बच्चे की देखभाल हो या खाना बनाना ये भी काम महिलाओं के लिए ही या ऐसा कहें कि महिलाओं का काम ही माना जाता है। ऐसी परिस्थिति में कामकाजी महिलाओं को दोहरी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ रही है। आफिस एवं घर दोनों के बीच तालमेल बिठाने में समस्या उतपन्न होती है, 7 से 8 घंटा ऑफिस कार्य के बाद घर में काम करना बहुत कठिन होता है। महिलाओं के तनाव में अहम भूमिका ऑफिसियल काम का तनाव तो दूसरी तरफ घर के सदस्यों को खुश रखने के साथ बच्चों की ज़िम्मेदारी रहती है। माँ बनने के बाद काम छोड़ना पड़ जाता है।
ये सभी कारणों से अवसाद होता है कि, कर्तव्यों को निभाने के चक्कर में महिलाएं अपनी सेहत का ख्याल नहीं रखतीं। कामकाजी महिलाओं में ‘लाइफस्टाइल डिसऑर्डर’ पाया जाता है। उच्च रक्तचाप, मधुमेह, थायरॉइड, मोटापा,पीठ दर्द की शिकायत रहती है।
75% कामकाजी महिलाएं सिर्फ इसलिए अवसाद या समान्य चिंता विकार से पीड़ित हो जाती हैं क्योंकि उनको सख्त समय सीमा में काम करना पड़ता है।
सम्भव है समाधान
● नींद पूरी लें
● संगीत सुनें
● योग ध्यान करें
● 20 मिनट भी सैर करें
● समय समय पर दोस्तों के साथ समय बिताएं
● साल में एक बार परिवार के साथ बाहर घूमने जाएं
● बच्चों के साथ समय बिताएं।
अंशु माला कर्ण, मनोवैज्ञानिक काउंसलर, सदस्य बाल कल्यान समिति, राँची