100 Years of RSS : संघ के 100 साल

Siddarth Saurabh

100 Years of RSS : साल 2024 अलविदा हो चुका है और नए साल की दस्तक के साथ हम 2025 में प्रवेश कर आगे बढ़ रहे हैं. राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य के लिहाज से 2025 दुनिया के सबसे बड़े गैर-सरकारी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए काफी अहम माना जा रहा है. 2025 में विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना के सौ साल पूरे हो जाएंगे. नागपुर के अखाड़ों से तैयार हुआ आरएसएस मौजूदा समय में विराट रूप ले चुका है. संघ आज जितना मजबूत और पावरफुल नजर आ रहा है, उसके लिए कई उतार-चढ़ाव भरे दौर से उसे गुजरना पड़ा है. इस तरह 25 स्वयंसेवकों से शुरू हुआ संघ आज विशाल संगठन के रूप में स्थापित है.

संघ ने अपने शताब्दी वर्ष में लक्ष्य रखा है कि तब तक देशभर में अपनी शाखाओं की संख्या बढ़ाकर एक लाख करनी है. सौ साल के सफर को पूरा करने पर संघ तब कई बड़े आयोजन भी करेगा और जिसका राजनीति परिदृश्य में भी असर दिखेगा. संघ ने 2025 के लिए जो अपना एजेंडा बनाया है, उसमें अपनी शाखा को शहर और कस्बों में नहीं बल्कि गांव तक अपनी जड़ें जमाने का है. इतना ही नहीं संघ का सामाजिक समरसता का एजेंडा सबसे महत्वपूर्ण है, जिसके जरिए जातियों में बिखरे हुए हिंदुओं को एकजुट करने की है.

संघ के सामने चुनौती?

विपक्ष एक तरफ जातिगत जनगणना, संविधान और आरक्षण के मुद्दे को धार देने के साथ-साथ डॉ. भीमराव आंबेडकर के सम्मान को लेकर सियासी एजेंडा सेट करने में जुटा हुआ है. इतना ही नहीं कांग्रेस और राहुल गांधी जिस तरह संघ के हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर आक्रामक रुख अपना रखा है. ऐसे में संघ के लिए दलित और आदिवासी समुदाय के बीच अपनी पैठ जमाने के साथ गांव-गांव में पैर पसारने की चुनौती है.

हालांकि, बीजेपी पहले की तरह ही विपक्षी दलों के इस सियासी एजेंडे को विभाजनकारी बताते हुए अपनी मुहिम जारी रख सकता है. सामाजिक समरसता अभियान के जरिए ही आरएसएस ने कई चुनाव में बीजेपी के पक्ष में माहौल भी बनाने का काम जमीनी स्तर पर बखूबी किया है. संघ पिछले कई वर्षों से गांव में एक श्मशान, एक मंदिर और एक जल स्रोत के विचार पर काम कर रहा हैं.

आरएसएस इस एजेंडे के जरिए चाहता है कि मंदिर को लेकर कोई भेदभाव ना हो, जल स्रोत में कोई छुआछूत ना हो और न ही जातियों के अलग-अलग श्मशान हों. इस तरह जातियों के भीतर श्रेष्ठता का भाव इन तीनों ही स्थानों पर कहीं न दिखाई दे. इसे लेकर संघ काफी समय से कार्यक्रम करता रहा, लेकिन अब इसका असर दिखाई भी देने लगा है. संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते रहे हैं कि कि भारत के हर शहर, हर कस्बे और हर गांव में एक संघ की शाखा होनी चाहिए, क्योंकि पूरे समाज ने उन्हें उनके लिए काम करने का अवसर दिया है. इसलिए संघ के स्वयंसेवकों को आगे बढ़कर समाज का नेतृत्व करना चाहिए.

किसने की थी संघ की स्थापना?

दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी. भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की गई थी. इस लिहाज से 2025 में ये संगठन 100 साल का हो जाएगा. हेडगेवार ने अपने घर पर 17 लोगों के साथ गोष्ठी में संघ के गठन की योजना बनाई. इस बैठक में हेडगेवार के साथ विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी आदि मौजूद थे. संघ का क्या नाम होगा, क्या क्रियाकलाप होंगे सब कुछ समय के साथ धीरे-धीरे तय होता गया.

हालांकि, उस वक्त हिंदुओं को सिर्फ संगठित करने का विचार था. यहां तक कि संघ का नामकरण ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ भी 17 अप्रैल 1926 को हुआ और हेडगेवार को सर्वसम्मति से संघ प्रमुख चुना गया, लेकिन सरसंघचालक वे नवंबर 1929 में बनाए गए. डा. हेडगेवार ने संघ स्थापना के बाद पूरी शक्ति लगा थी. इसलिए पहले 50 साल संघ ने केवल संगठन पर काम किया. इस पहले दौर में संघ ने कई संस्थाएं बनायीं, जिसमें राष्ट्र सेविका समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय मजदूर संघ, विश्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनसंघ/भारतीय जनता पार्टी और सरस्वती शिशु मंदिर/विद्या भारती जैसे संगठन शामिल है.

कुछ इस तरह पड़ा संघ का नाम

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ये नाम बड़े विचार-विमर्श के बाद रखा गया था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्वारक मंडल इन तीन नामों पर कई दिनों तक मंथन हुआ. इसके लिए बाकायदा वोटिंग करवाई गई. बैठक में मौजूद 26 सदस्यों में से 20 सदस्यों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पक्ष में वोट किया, जिसके बाद आरएसएस अस्तित्व में आया. ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ प्रार्थना के साथ पिछले कई दशकों से लगातार देश के कोने कोने में संघ की शाखाएं लग रही हैं.

संघ पर जब लगा प्रतिबंध

संघ ने अपने सौ साल के लंबे सफर में कई उपलब्धियां अर्जित की जबकि तीन बार उसपर प्रतिबंध भी लगा. संघ पर 1932 और 1940 में शासन ने आंशिक रूप से प्रतिबंध लगाए गए, लेकिन वे ज्यादा नहीं चल सके. 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया, संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरु गोलवलकर को बंदी बनाया गया. लेकिन 18 महीने के बाद संघ से प्रतिबंध हटा दिया गया. तब शासन, प्रशासन और जनता संघ के विरोध में थी. इसके बाद दूसरी बार आपातकाल के दौरान 1975 से 1977 तक संघ पर पाबंदी लगी. तीसरी बार छह महीने के लिए 1992 के दिसंबर में लगी, जब 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी. 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद सरकार ने फिर प्रतिबंध लगाया, जिसे न्यायालय ने ही खारिज कर दिया.

संघ का ड्रेस कोड

जब संघ की शुरुआत हुई तो उस दौरान संघ की शाखाओं में स्वयंसेवक खाकी शर्ट, खाकी पैंट, खाकी कैप और बूट में नजर आते थे, जो इसकी शुरुआती यूनिफॉर्म थी. हालांकि, बदलते समय के साथ इनमें भी कई बदलाव किए गए. साल 1930 में संघ खाकी के बदले काली टोपी का इस्तेमाल करने लगा, तो साल 1939 में संघ ने अपनी शर्ट के रंग में बदलाव करते हुए उसे खाकी से बदलकर सफेद कर दिया. वहीं, फिर साल 1973 में बूट की जगह सिंपल जूते और मोजे ने ले लिए. साल 2010 में बेल्ट में भी बदलाव हुआ. स्वयंसेवक चमड़े की जगह कैनवास बेल्ट का यूज करना शुरू कर दिया. इसके बाद साल 2016 में संघ ने खाकी निकर के बदले फुलपैंट को अपने ड्रेस कोड में शामिल कर लिया. वहीं, अगर इसके ट्रेनिंग की बात की जाए तो इसके 5 चरण होते हैं. पहला चरण प्रारंभिक वर्ग का होता है, जो तीन दिन चलता है. जिला स्तर पर होने वाले प्राथमिक शिक्षा वर्ग 7 दिन, क्षेत्रिय स्तर पर होने वाले संघ शिक्षा वर्ग-1 करीब 15 दिन, क्षेत्रिय स्तर पर होने वाले कार्यकर्ता विकास वर्ग-1 करीब 20 दिन ऑल इंडिया लेवल पर कार्यकर्ता विकास वर्ग-2 करीब 25 दिनों तक चलता है. संगठन के हिसाब से संघ ने पूरे देश को 44 प्रांत और 11 क्षेत्रों में बांटा हुआ है.

संघ के शाखा के साथ ही समविचारी संगठनों का विस्तार और प्रभाव बढ़ने लगा. इसलिए जब संघ पर प्रतिबंध लगाया, तो बहुसंख्यक समाज आरएसएस के साथ खड़ा रहा है. चाहे आपातकाल की बात हो या फिर बाबरी विध्वंस के दौरान. इसीलिए चुनाव में संघ के समर्थन वाली चाहे जनता पार्टी रही हो या फिर बीजेपी. उसे जीत मिली. समाज में बढ़ती स्वीकार्यता का लाभ उठाकर संघ ने अपने संगठन को विस्तार दिया और स्वयंसेवकों ने अनेक नयी संस्थाएं बनाने का काम किया.

धर्मांतरण के खिलाफ संघ का एजेंडा

संघ ने अनुभव किया कि हिंदू समाज में गरीबी है, जिसकी पहली जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान है. इसके अलावा सामाजिक और जाति भेदभाव भी धर्मांतरण का एक बड़ा कारण रहा, जिसके चलते संघ ने सामाजिक समरसता और वनवासी कल्याण के कार्यक्रम शुरू किए. 1989 में डा. हेडगेवार की जन्मशती पर ‘सेवा निधि’ एकत्र कर हजारों पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनाये गये, जो निर्धन बस्तियों को ‘सेवा बस्ती’ कहकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के हजारों छोटे प्रकल्प शुरू किए. हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने के लिए संघ ने विश्व हिंदू परिषद की गठन किया था, जिसने राम मंदिर, गौ-रक्षा जैसे अभियान और आंदोलन चलाए.

आरएसएस साफ तौर पर हिंदू समाज को उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर शक्तिशाली बनाने की बात करता है. संघ से जुड़े हुए स्वयंसेवकों ने ही पहले जनसंघ के रूप में राजनीतिक दल का गठन किया और उसके बाद बीजेपी के रूप में राजनीतिक पार्टी बनाई. देश की सत्ता पर 2014 से बीजेपी काबिज है. इतना ही नहीं देश के 13 राज्यों में बीजेपी की अपने दम पर सरकार चल रही है तो कई राज्यों में सत्ता की भागीदार है. बीजेपी के सत्ता में होने के चलते संघ अपने कोर एजेंडे को भी अमलीजामा पहनाने में कामयाब रहा है.

अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो गया तो जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त हो गई है. एक देश, एक विधान का सपना भी संघ का साकार हो चुका है. संघ का कोर एजेंडा समान नागरिक संहिता का है, जिसे अमलीजामा पहनाने का काम भी बीजेपी ने शुरू कर दिया है. उत्तराखंड के जरिए यूसीसी का सियासी प्रयोग किया जा रहा है. इतना ही नहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में साफ शब्दों में कहा है कि बीजेपी शासित राज्यों में यूसीसी को लागू करेंगे. इसके लिए उन्होंने उत्तराखंड की मिसाल भी दी है.

संघ में इन त्योहारों का बेहद महत्व

साल भर में कई सारे त्योहार आते हैं पर संघ हर साल 6 त्योहार मनाता है. इनमें हिंदू वर्ष, हिंदू साम्राज्य दिवस, गुरु पूर्णिमा, रक्षा बंधन, मकर संक्रांति और विजयादशमी प्रमुख है. वहीं, अगर इसके वर्किंग स्ट्रक्चर पर एक नजर डाले तो संघ प्रमुख को सरसंघचालक कहते हैं. इसके बाद से इस लिस्ट में सरकार्यवाह आते हैं और फिर सह सरकार्यवाह, जो एक से अधिक हो सकते हैं. केंद्रीय कार्यकारी मंडल संघ की सबसे बड़ी बॉडी होती है, जो अगले चीफ की नियुक्ति करता है. संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को सशक्त बनाना है. उसके धर्म और संस्कृति के आधार पर उसको मजबूत बनाना है. इस संगठन में 18 साल का कोई भी युवक इसका हिस्सा बन सकता है. वहीं, 18 साल से कम उम्र वालों बच्चों को बाल स्वयंसेवक कहा जाता है. अब 6 लोग संघ की कमान संभाल चुके हैं, जिनमें 1925-40 तक डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार, 1940-73 तक माधव सदाशिवराव गोलवलकर, 1973-93 तक मधुकर दत्तात्रय देवरस, 1993-2000 तक प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया, 2000-09 तक कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन और 2009 से अभी तक डा. मोहनराव मधुकरराव भागवत प्रमुख हैं.

संघ की आगे की दिशा क्या होगी?

संघ कभी ‘संगठन के लिए संगठन’ की बात करता, पर 50 साल संगठन और 50 साल विस्तार के बाद अब संघ समाज परिवर्तन की ओर बढ़ रहा है. जहां संघ का काम पुराना है, वहां परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी और स्थानीय वस्तुओं का प्रयोग, सामाजिक समरसता, एक मंदिर, एक श्मशान, एक जल स्रोत, नागरिक कानूनों के पालन है. संघ अपना प्रयास इस दिशा में करेगा. संघ कार्य की विकास यात्रा का यह चौथा पड़ाव है. संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी के 1940 के शिक्षा वर्ग में कहा था कि संघ कार्य को शाखा तक ही सीमित नहीं रखना है, उसे समाज में जाकर करना है.

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