Donald Trump Tariff : अमेरिका के सान साथ पूरी दुनिया में में उथल-पुथल है. सोमवार को वॉल स्ट्रीट के शेयर फिर तेजी से गिर गए. निवेशक डरे हुए हैं. सेफ गेम खेलते हुए शेयर धड़ाधड़ बेच रहे हैं. अमेरिकी निवेशकों को भी डर है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ वॉर ग्लोबल आर्थिक मंदी को जन्म देगा.
दरअसल, अमेरिका के रेसिप्रोकल टैरिफ (ट्रंप टैरिफ) को लगे अभी 5 दिन ही बीते हैं और दुनियाभर के शेयर बाजार में भूचाल आ गया है. जहां भारत में पिछले हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन शुक्रवार को सेंसेक्स 900 अंकों से ज्यादा गिरा वही सोमवार को हफ्ते के पहले कारोबारी दिन सेंसेक्स 3200 अंक तक गिरा जो कि मार्केट बंद होने तक रिकवर होकर 2226 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ. वहीं निफ्टी 1000 अंक गिरकर मार्केट बंद होने पर रिकवर होगर 742.85 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ.
दूसरी ओर भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में शेयर बाजार 8000 अंक गिरा, जिस वजह से मार्केट को 1 घंटे के लिए बंद करना पड़ा. दूसरी ओर ऑस्ट्रेलियाई शेयर बाजार में 6.4% की गिरावट, सिंगापुर एक्सचेंज बाजार 7% से ज्यादा गिरावट, हांगकांग के हैंग सेंग इंडेक्स बाजार में 9.28% की गिरावट, जापान के शेयर बाजार में करीब 20% की गिरावट और ताइवान के स्टॉक मार्केट में 15% की गिरावट देखी गई. ट्रंप टैरिफ के इन बीते 5 दिनों में दुनियाभर के शेयर बाजार में हाहाकार मचा हुआ है. अगर ऐसा ही रहा तो ट्रंप टैरिफ की आग से जिस तरीके से शेयर बाजार झुलसा है. ठीक वैसे ही महंगाई और नौकरियां भी झुलस सकती हैं.
अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट
2 अप्रैल को जब से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 60 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया है, तभी से अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट जारी है. बीते तीन कारोबारी सेशन में अमेरिका का प्रमुख डॉव जोन्स शेयर बाजार 22 प्रतिशत तक टूटा है. वहीं 7 अप्रैल यानी सोमवार को हफ्ते के पहले कारोबारी दिन में डॉव जोन्स खुलते ही 1000 अंक टूट गया. साथ ही Nasdaq और S&P 500 में भी गिरावट देखने को मिली. अब बड़ा सवाल है कि अमेरिकी शेयर बाजार के साथ दुनिया के बाजारों में ये गिरावट कब तक जारी रहेगी और क्या इससे महंगाई और बेरोजगारी बढ़ेगी, साथ ही मंदी का आगमन होगा?
टैरिफ क्या है और ट्रंप ने क्यों लगाया?
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि टैरिफ होता क्या है. टैरिफ एक तरह का कर (टैक्स) है जो सरकारें दूसरे देशों से आने वाले सामानों पर लगाती हैं. इसका मकसद या तो अपने देश की कंपनियों को बचाना होता है या फिर आयात को महंगा करके विदेशी सामानों की बिक्री कम करना. ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल में कई देशों पर टैरिफ बढ़ाने का ऐलान किया है. ट्रंप ने सभी आयात पर 10% का बेसलाइन टैरिफ लगाने की बात कही है. इसके अलावा, कई बड़े व्यापारिक साझेदार देशों जैसे चीन, जापान, भारत और यूरोपीय संघ आदि पर इससे कई गुना ज्यादा टैरिफ लगाया गया है.
ट्रंप का दावा है कि इससे अमेरिका को 100 अरब डॉलर से ज्यादा का टैक्स मिलेगा. उनका कहना है कि दूसरे देश अमेरिका को “लूट” रहे हैं और अब वह इस “लूट” को रोकेंगे. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह फैसला वाकई अमेरिका के लिए फायदेमंद होगा या उल्टा नुकसान पहुंचाएगा? इसके जवाब में अर्थशास्त्रियों के अलग-अलग विचार हैं. कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि टैरिफ से अमेरिकी कंपनियों को फायदा होगा, लेकिन ज्यादातर चेतावनी दे रहे हैं कि इससे महंगाई बढ़ेगी, व्यापार कम होगा और मंदी का खतरा पैदा हो सकता है.
महंगाई का टैरिफ कनेक्शन
बेशक फिलहाल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सोशल मीडिया साइट ट्रूथ पर कह रहे हैं कि तेल की कीमत कम हो रही हैं, फेड को ब्याज दरों में और कटौती करनी चाहिए, खाने-पीने की चीज सस्ती हो रही हैं और कोई इंफ्लेशन नहीं है. और लंबे समय से दुर्व्यवहार का शिकार अमेरिका उन देशों से हर हफ्ते अरबों डॉलर कमा रहा है, जो पहले से ही टैरिफ लागू कर रहे हैं.
बेशक ट्रंप को सब कुछ अच्छा लगा रहा हो, लेकिन टैरिफ की वजह से आने वाले दिनों में महंगाई बढ़ना तय है. दरअसल जिन चीजों पर टैरिफ लगाया गया है, उनका महंगा होना तय है और इस वजह से इन सामानों की डिमांड घटना भी तय है और जब डिमांड कम होगी तो प्रोडक्शन भी कम होगा, जिसमें नौकरी जाने की संभावना बढ़ जाएगी. इससे एक तरीके से इंटरकनेक्टेड चेन शुरू होगी, जिसका असर अलग-अलग सेक्टर में अलग-अलग तरीकों से दिखाई देना शुरू हो जाएगा. इसलिए कहा जाए कि ट्रंप टैरिफ की आग में महंगाई का झुलसना भी तय है.
नौकरी का टैरिफ से कनेक्शन
अमेरिका के रेसिप्रोकल टैरिफ के बदले में चीन ने भी अमेरिकी सामान पर 34 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है. इसका असर दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी और दुनिया के सबसे बड़े मैन्युफैक्चरिंग हब के बीच ट्रेड वार के तौर पर देखा जा रहा है. इसका असर डिमांड और सप्लाई के ऊपर पड़ना स्वाभाविक है. ऐसे में पूरी दुनिया के ऊपर मंदी की परछाई पड़ सकती है. अगर वाकई में ऐसा हुआ तो लोगों की नौकरी जाना एकम तय है. इसलिए अमेरिकी टैरिफ को किसी भी तरीके से हल्के में नहीं लेना चाहिए.