Operation Sindoor : पाकिस्तान के लिए बना तंदूर, अमेरिका भी हुआ बेनक़ाब

Bindash Bol

Operation Sindoor : पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने जब ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान के ठिकानों पर ‘अग्नि की वर्षा’ करनी शुरू की, तब किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस ‘सिंदूर’ से पाकिस्तान के लिए ‘तंदूर’ बन जाएगा और अमेरिका की छिपी नीतियां भी उजागर हो जाएंगी।

हालात ऐसे बने कि जल्द ही दुनिया को पता चला – हर चिल्लाते पाकिस्तानी जनरल के पीछे एक चिंतित अमेरिकी छिपा है।

7 मई, 2025 को जब भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर आरंभ किया, तो पाकिस्तान और पाकिस्तान अनाधिकृत #कश्मीर के 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हमले किए गए।

ब्रह्मोस, स्कैल्प, हैमर और कामिकाज़े ड्रोन जैसे अत्याधुनिक हथियारों से भारत ने पाकिस्तान के नूर खान, मुरीद, राफिकी, रहीम यार खान, सुक्कुर और चुनियान जैसे प्रमुख एयरबेस को निशाना बनाया।

भारत के हमलों ने पाकिस्तान के दिल पर चोट की, लेकिन वास्तविक धमाका तब हुआ जब भारतीय सेना ने किराना हिल्स को निशाना बनाया। सरगोधा के पास स्थित किराना हिल्स पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की भूमिगत स्टोरेज फैसिलिटी का घर माना जाता है।

विश्लेषकों का दावा है कि भारत ने मिसाइलों से इस फैसिलिटी के दरवाजों पर सटीक हमला किया, जिसने वहां भारी नुकसान पहुंचाया है।”

10 मई, 2025 को, जैसे ही भारत ने पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, वैसे ही रिक्टर स्केल पर 4.0 तीव्रता का भूकंप आया। भूकंप का केंद्र बलूचिस्तान में था और यह भूमि के नीचे 10 किलोमीटर की गहराई पर था – ठीक उसी समय जब किराना हिल्स पर हमला हुआ था।
परमाणु विस्फोटों के समय भी ऐसे ही भूकंप महसूस किए जाते हैं। विश्लेषकों का आंकलन है – “यह झटके संयोग नहीं बल्कि परमाणु हथियारों के फटने के चलते आ सकते हैं।”

जैसे ही पाकिस्तान का परमाणु ढांचा धराशायी होने लगा, अमेरिका के रवैये में अचानक बदलाव आया। CNN के अनुसार, अमेरिका को 10 मई सुबह “चिंताजनक खुफिया जानकारी” मिली। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने तुरंत प्रधानमंत्री मोदी से संपर्क किया और “ड्रैमेटिक एस्केलेशन” की आशंका जताई।

वही जेडी वेंस, जिन्होंने कुछ दिन पहले कहा था, “हम ऐसे युद्ध में शामिल नहीं होंगे जो बुनियादी रूप से हमारा व्यवसाय नहीं है,” अचानक शांति दूत बन गए। हालांकि, अमेरिका का यह रवैया किराना हिल्स पर हमले के बाद ही बदला, जो उसकी चिंता का असली कारण था।

बोरॉन की आपातकालीन खेप और अमेरिकी विमान !
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे रहस्यमयी बात थी – अमेरिकी ऊर्जा विभाग के एक स्निफर विमान (N111SZ) का पाकिस्तान पहुंचना।

यह वही विभाग है जो अमेरिका और उससे जुड़े देशों में परमाणु हथियारों की देखरेख करता है। विमान इस्लामाबाद और आसपास के क्षेत्रों में उड़ाने भरता रहा – संभवतः परमाणु विकिरण के स्तर को मापने के लिए।

इसके ठीक बाद, 11 मई को मिस्र से एक विमान (EGY1916) रावलपिंडी पहुंचा, जिसमें बोरॉन की आपातकालीन खेप थी जिसका यह स्पष्ट निष्कर्ष हुआ कि अमेरिकी स्निफर डॉग ने विकिरण को सूँघ लिया था।

बोरॉन-10, परमाणु विकिरण को अवशोषित करने और श्रृंखला प्रतिक्रिया को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह वही तत्व है जिसका उपयोग फुकुशिमा (2011) और चेर्नोबिल (1986) जैसी परमाणु आपदाओं में किया गया था।

इजिप्टियन विमान का कार्गो “एमर्जेंसी रेडिएशन कंट्रोल” के रूप में लेबल किया गया था – जो साफ इशारा करता है कि पाकिस्तान में परमाणु विकिरण रिसाव हुआ था।

अब सवाल यह उठता है कि अमेरिका इतनी तेजी से और इतनी चिंता के साथ क्यों कूद पड़ा?
अमेरिका के इस आचरण से एक ही संदेह पुष्ट होता है – पाकिस्तान में उसका अपना गुप्त रणनीतिक न्यूक्लियर बेस है। यही कारण है कि पाकिस्तानी जनरलों की ब्लैकमेलिंग के बावजूद अमेरिका न केवल उनका मुंह डॉलर से बंद रखता है, बल्कि पाकिस्तान को गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा भी दे रखा है।

अमेरिकी थिंक टैंक रूस, चीन और ईरान को अपने लिए खतरा तो मानता ही रहा है,भारत को भी वह भविष्य का खतरा मानता रहा है।

ऐसे में पाकिस्तान उसके लिए न केवल रणनीतिक अड्डे के रूप में उपयोगी है, बल्कि वहां के भ्रष्ट और ऐयाश जनरल भी उसके लिए मददगार साबित होते हैं – बिल्कुल वैसे ही जैसे बूट पर चमकाने के लिए पॉलिश।

दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक नई वास्तविकता उभर रही है, जहां अस्पष्टता भारत का सबसे बड़ा हथियार है,तो चुप्पी पाकिस्तान का सबसे बड़ा इकबालिया बयान।

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