Bharat : चक्रव्यूह है तैयार…!

Sushmita Mukherjee

Bharat : पहलगाम में आतंकी घटना की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य झड़प के बाद वैश्विक समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। वजह साफ है। भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य झड़प की दरमियां चीन और अमेरिका को लगी चोट ने सारे समीकरण बिगाड़ कर रख दिए हैं। अगर पूरे हालात पर नजर डालें तो. ..

चक्रव्यूह है तैयार…
भारत अभिमन्यु बनेगा, या अर्जुन..?
इस बात का है इंतजार,

ताकतवर देश एक मंच पर और भारत को घेरे में लेने की तैयारी शुरू…। अमेरिका और चीन की नई दोस्ती के बाद रूस की चिंता और भारत के लिए बड़ा सवाल…?

चीन के रडार टूटे और अमेरिका का ताकतवर फाइटर प्लेन धराशायी हुआ तो दुनिया के सबसे ताकतवर दो देश अमेरिका और चीन अचानक एक समझौते में बंध जाते हैं।

क्या है ये समझौता..?
भारत कैसे निपटेगा दुनिया की दो महाशक्तियों से एक साथ?

अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए 145% आयात शुल्क घटाकर 30% कर देना कोई सामान्य बात नहीं, बल्कि ये वैश्विक व्यापार संतुलन को पलट देने वाला झटका है। और झटका किसे लगा? सीधा भारत को।

भारत जब ‘विश्व की फैक्ट्री’ बनने का सपना लेकर तेज़ी से आगे बढ़ रहा था, उसी समय अमेरिका और चीन का ये नया समीकरण उसकी मैन्युफैक्चरिंग संभावनाओं के लिए खतरे की घंटी है।

ये संयोग नहीं है।
ये एक कूटनीतिक गणना है, जिसमें भारत को झटका देना तय था।

रूस ने इसे पहले ही भांप लिया था। सेर्गेई लावरोव खुलकर कह चुके हैं कि पश्चिमी देश भारत और चीन के बीच दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

उन्हें अंदेशा है कि एशिया में अब पश्चिम एक नई जंग छेड़ना चाहता है—नाम इंडो-पैसिफिक है लेकिन लक्ष्य चीन और भारत की साझा ताकत को तोड़ना है।

रूस की यह प्रतिक्रिया अचानक नहीं है। क्योंकि भारत की रक्षा जरूरतें अब रूस से कम होने लगी हैं। पहले भारत 76% हथियार रूस से खरीदता था, अब ये आंकड़ा 40% से भी नीचे है।

रूस को डर है कि भारत कहीं पूरी तरह अमेरिका की ओर न चला जाए, इसीलिए लावरोव के बयान में घबराहट झलकती है।

इधर अमेरिका और चीन का ये सौदा ऐसे वक्त हुआ है जब Apple जैसी कंपनियां भारत में निवेश के संकेत दे चुकी थीं।

लेकिन अब आशंका है कि यह निवेश भी रुक जाए, या फिर चीन की ओर लौट जाए। जो कंपनियां वैल्यू-एडेड मैन्युफैक्चरिंग भारत में शिफ्ट करना चाहती थीं, वे अब दोबारा सोचेंगी।

मोदी सरकार ने पूरी ताकत से Make in India को गति दी थी, और वैश्विक सप्लाई चेन में भारत ने अपनी जगह बनाना शुरू कर दिया था।

iPhone से लेकर चिप्स तक, दुनिया भारत की तरफ देखने लगी थी। लेकिन अब इस नए व्यापार समीकरण से ये रफ्तार कमज़ोर पड़ सकती है।

और सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद Apple के CEO टिम कुक को भारत में निवेश न करने की सलाह दी थी यह कहते हुए कि भारत दुनिया में सबसे ऊंचे टैरिफ वाला देश है। यानी कूटनीति की दोहरी चाल पहले से चली जा रही थी।

भारत और चीन के उत्पादों की समानता, भारत से अमेरिका को हो रहे निर्यात में रिकॉर्ड वृद्धि—ये सब संकेत थे कि भारत अमेरिका के लिए एक नया विकल्प बन रहा था। लेकिन अब यही विकल्प एक भ्रम बनकर रह जाए, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

पर तस्वीर अभी पूरी नहीं है। एक ओर जहां अमेरिका और चीन के बीच ये नई नज़दीकी भारत के लिए चिंता का विषय है, वहीं दूसरी ओर यही गठजोड़ लंबी अवधि में भारत के लिए अवसर भी ला सकता है।

अगर भारत आत्मनिर्भरता और निवेश सुधारों को आगे बढ़ाता रहा, तो यही चुनौती एक अवसर में बदल सकती है।

लेकिन आज का बड़ा सवाल यही है क्या भारत वाकई चीन का विकल्प बन सकता है, या यह केवल एक रणनीतिक सपना है जो पश्चिम ने सिर्फ मजबूरी में देखा था?

अब भारत को निर्णय लेना होगा
दुनिया की चालों में फंसना है या अपनी चाल से दुनिया को चलाना है। वक्त कम है, लेकिन भारत तैयार है।

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