Bihar : आइए, नए साल में बिहार की कुछ बातें करते हैं। भगवान बुद्ध के बिहार की, भगवान महावीर के बिहार की, सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी की, आर्यभट्ट के बिहार की, महाकवि कालिदास के बिहार की राष्ट्रकवि दिनकर की, विश्व के पहले विश्वविद्यालय नालंदा व विक्रमशिला की, सम्राट अशोक की, चंद्रगुप्त के गुरु चाणक्य की, प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ अन्य न जाने स्वर्णाक्षरों में दर्ज उस राज्य के स्वर्णकाल की और आज की बात करें तो भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण की। लेकिन, वही बिहार आज अपने ही देश में बेगाना ही नहीं, उपहास का पात्र तक बना हुआ है। लेकिन, ऐसा क्यों?
इसके कई कारणों में से एक जो सबसे प्रमुख है वह यह कि बिहार उपेक्षा का शिकार रहा है। अंग्रेजों से सदैव डटकर लोहा लेने वाले बिहार को सबसे पहले अंग्रेजों ने जानबूझकर पिछड़ा राज्य घोषित किया। फिर क्या था, तब से उस राज्य के कुछ नेताओं को छोड़कर कोई ऐसा अगुआ राजनीतिज्ञ नहीं हुआ, जो यह साबित कर सके कि यह राज्य पिछड़ा नहीं, बल्कि ऊर्जा से ओतप्रोत है। असंख्य संसाधन भी हैं, लेकिन कमी है तो केवल राजनीतिक इक्षाशक्ति की। आजादी के बाद से किसी भी कल-कारखाने का यहां निर्माण नहीं हुआ, जिसकी जरूरत वहां के पढ़े—लिखे युवाओं को थी। इसके बावजूद जो कुछ विकास हुआ, वह सबसे पहले राज्य के मुख्यमंत्री बाबू श्रीकृष्ण सिंह के काल में ही हुआ। आज कई उद्योग बंद हो गए हैं, जिसे सरकारी नियमानुसार अब सरकार चला नहीं सकती।
इस विषय पर बिहार के पूर्व उद्योगमंत्री तथा वर्तमान में मधेपुरा के वरिष्ठ सांसद दिनेश चंद्र यादव ने कहा कि अब बिहार सरकार ही नहीं, बल्कि भारत सरकार के नियमानुसार केंद्र या राज्य सरकार अपने राज्य में उद्योग नहीं लगा सकती। कारण बताते हुए वह कहते हैं कि नई नीति के तहत यदि कोई उद्यमी अपना उद्योग लगाना चाहे, तो वह लगा सकता है। पंजाब और देश के अन्य राज्यों के लिए पूछने पर दिनेश चंद्र यादव कहते हैं कि अन्य राज्यों के उद्यमियों के पास उद्योग लगाने के लिए धन है, संसाधन है, लेकिन बिहार में इस प्रकार के उद्यमियों की कमी है, जो अपने राज्य में उद्योग लगा सकें। मधेपुरा के रेल इंजन फैक्ट्री की स्थिति के विषय में उनका कहना है कि यह कारखाना लालू प्रसाद यादव के वर्ष के आखिरी कार्यकाल में लगना शुरू किया गया, उसे भी बाद में राजनीतिक कारणों से बंद कर देने का फैसला किया गया, लेकिन उनके अथक प्रयास से वह बंद नहीं किया गया। उस फैक्ट्री में काम करने वाले स्थानीय लोग न के बराबर हैं,जो भी कार्यरत हैं, वह बहुत ही निचले स्तर के कर्मचारी हैं। इससे स्थानीय लोगों का कोई हित नहीं हो सका, जो बंदी के कगार पर है। उनका यह भी कहना है कि एक हजार इंजन निर्माण कर लेने के बाद इस कारखाने को हो सकता है, हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए।
दूसरी ओर उद्यमियों का कहना है कि बिहार में संसाधन की कमी, सुरक्षा का अभाव, परिवहन और बिजली की गारंटी नहीं होने के कारण वहां उद्योग लगाना संभव नहीं हो पा रहा है। जब तक इन सारी कमियों को बिहार सरकार द्वारा सुधारा नहीं जाएगा, यहां उद्योग लगाना असंभव है। सच तो यह कि बिहार के लिए नकारात्मक प्रचार के लिए किसी—न—किसी प्रकार सरकार के साथ बिहार के लिए फैलाया जाने वाला अफवाह भी काम करता है। ऐसे इसलिए कि कोई यह फख्र करने के स्थान पर इस बात पर शर्म महसूस करता है कि वह खुलकर इस बात को स्वीकार करे कि अब यह स्थिति बदलती जा रही है और यह राज्य विकास की तेज गति से दौड़ रहा है। जिन्होंने कुछ वर्ष पूर्व बिहार को सड़कविहीन, सुरक्षा की घोर कमियों के राज्य के तौर पर देखा है। लेकिन, यदि वर्तमान बिहार को देखें, तो वहां ढेरों बदलाव किए गए हैं, जिससे सुरक्षा, बिजली, सड़क की स्थिति सुधरी है।
वर्तमान सांसद और बिहार के पूर्व उद्योगमंत्री दिनेश चंद्र यादव यह स्वीकारते हैं कि अभी राज्य में केवल एक ही कारखाना कार्य की स्थिति में है और उद्योगपतियों को आमंत्रित किया जा रहा है। दूसरी ओर यदि नजर दें, तो यह बात समझ में आ जाती है कि यदि स्थानीय लोग स्वरोजगार के लिए जागरूक होंगे, तो हो सकता है कि बेरोजगारी और पलायन से राज्य को छुटकारा मिल जाए, लेकिन यहां यक्ष प्रश्न है कि क्या स्थानीय लोग इस बात के लिए जागरूक होंगे? सच तो यह है कि इस राज्य में प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध है और आज सुरक्षा की भी गारंटी दी जा सकती है, लेकिन क्या इस विश्वास के बाद भी बिहार के उद्योगपति बिहार में उद्योग लगाएंगे? साथ ही युवा सरकारी रोजगार पाने के चक्कर में इसी तरह बेरोजगारी का दंश सहते रहेंगे? दुर्भाग्य तो यह है कि इस राज्य का मुखिया स्वहित देखकर पाला बदलता रहता है, राज्य की निराश और हताश जनता भी उनके इस रवैये पर चुप रहती हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए रोज कोई—न—कोई अफवाह आप सुनते और पढ़ते होंगे, लेकिन इससे राज्य ही नहीं, देश की जनता और राज्य के बाहर के उद्योगपति यही समझने लगते हैं कि अस्थिर सरकार में हम क्यों अपना समय और धन नष्ट करें।
विश्वव्यापी बेरोजगारी की इस समस्या से बिहार ही नहीं, पूरा विश्व जूझ रहा है। एकमात्र चीन ही ऐसा देश है जिसने अपनी इस समस्या का समाधान ढूंढ लिया है। निश्चित रूप से राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इस विश्वव्यापी समस्या का समाधान ढूंढ रही है, लेकिन क्या केंद्र सरकार ने यह जानने का कभी कोई प्रयास किया कि चीन ने इस समस्या का हल कैसे निकाला? यदि देश के सम्बन्ध चीन से सकारात्मक हों, तो फिर इस मुद्दे के समाधान के लिए सकारात्मक प्रयास तो करना ही होगा। बिहार हो या देश, इस समस्या से वह अपना निजात पाना ही चाहता है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक एन.के. सिंह कहते हैं कि बिहार की आबादी लगभग 14 करोड़ है और क्षेत्रफल कम होने के कारण तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जातिगत स्थिति गंभीर होने के कारण विकास में वह भी एक बाधक बना हुआ है। जो भी हो, इस समस्या का समाधान तो ढूंढना ही होगा, अन्यथा बिहार ही नहीं, बेरोजगारी से उबकर एक राज्य से दूसरे राज्यों में पलायन होता रहेगा। इसलिए निदान आज नहीं तो कल, सरकार को ही ढूंढना ही होगा। नए वर्ष 2025 में बिहार ही नहीं, देश प्रगति की ओर बढ़ता रहेगा और इस नए सूर्योदय से देश जगमगा उठेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)