Bihar : गोपालगंज : अपमान, तिरस्कार और अवसाद भी…

Sarvesh Kumar Srimukh

Bihar : यह गोपालगंज है। यहाँ पिछले एक महीने में तीन गैंग रेप की घटनाएं हो चुकी हैं। आज से दस-बीस साल पहले तक, जब अखबार में कहीं लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं दिखतीं तो हम जैसे देहाती लोग कहते थे, “हमारी ओर यह नहीं हो सकता। लूट, अपहरण जितना भी हो, यह नहीं हो सकता।” इस भरोसे के पीछे समाज की वह सोच थी कि बेटे अपने परिवार के बेटे होते हैं लेकिन बेटियां सारे गाँव की बेटी होती हैं। जिन दिनों को हम जंगलराज के नाम से याद करते हैं, उसकी भयावह स्मृतियों में हजार अपराध होंगे लेकिन बलात्कार नहीं है। तब भी हम इतने नीच नहीं हुए थे कि किसी की बेटी का दुपट्टा खींच लें… वही गोपालगंज है यह…
इसमें से एक घटना को तनिक करीब से देखा मैंने। सत्रह साल की लड़की अपने पैरालाइसिस के मरीज पिता के उपचार के लिए उत्तर प्रदेश के किसी गाँव से सासामुसा आई थी। वापसी में ट्रेन छूट गयी तो पिता पुत्री स्टेशन पर ही रुके। स्टेशन सरकारी जगह है, उम्मीद होगी कि यहाँ सुरक्षित रहेंगे। भोर में पिता ने पानी मांगा। लड़की पानी लाने गयी और पकड़ ली गयी… तीन लड़कों ने रेप किया उसका… इस घटना के चार पांच घण्टे बाद थाने में बैठी पीड़िता को कुछ पत्रकार मित्रों ने देखा था, उसका चेहरा सूज गया था। उसको बहुत ही क्रूरता से पीटा था उन अपराधियों ने। बेटी से अधिक वह लकवाग्रस्त बाप बिलख रहा था… कुछ महीने में ही शादी थी बेटी की… संयोग ही था कि यूट्यूब वाले पत्रकार लोग घटना स्थल पर नहीं पहुँचे वरना लड़की की तस्वीर घर घर तक पहुँच गयी होती।
इस घटना के तीनों अपराधी शाम तक पकड़ लिए गए थे। दारू और स्मैक के नशे में अपनी देह गला चुके फूहड़ और बदसूरत युवक! जिनका न कोई वर्तमान है, न भविष्य! लेकिन एक निर्दोष लड़की को जीवन भर के लिए मर्मान्तक पीड़ा दे गए। शायद अपमान, तिरस्कार और अवसाद भी…
जिले में इन घटनाओं पर खूब चर्चा हो रही है। विपक्ष के लोग सरकार और प्रशासन को कोस कर अपना धर्म निभा रहे हैं, तो सत्ता पक्ष के लोग इस विषय पर बात करने से डरते हैं कि इससे अपनी पार्टी की किरकिरी हो जाएगी… लेकिन मूल समस्या और उसके समाधान पर बात नहीं होती। कहीं नहीं…
हर हाथ में फोन है और हर फोन में अश्लील वीडियो का भंडार! वेब सीरीज की दुनिया से लेकर पूरी भोजपुरी सङ्गीत सिनेमा इंडस्ट्री लगी हुई है किसी भी तरह हर युवक पशु हो जाय। आज से ही नहीं, दशकों से… पूजा भट्ट और एकता कपूर जैसी स्त्रियां तो लम्बे समय से इसी काम में लगी हैं। अश्लील फिल्मों और गीतों के जाल में पूरा देश ऐसे जकड़ गया है जैसे कभी चाइना अफीम के नशे में डूबा था। अश्लीलता, नंगई के प्रमोटरों को सरकारें सांसद विधायक बनाती हैं, पद्मश्री पद्मभूषण देती हैं। वे स्टार हैं, आइकॉन हैं… इसकी कीमत गाँव देहात की मासूम बेटियां चुका रही हैं।
मेरे ही जिले की दर्जनों लड़कियां इंस्टा पर अश्लील रील बना कर लाखों फॉलोवर बटोर चुकी हैं। उन्हें लज्जा नहीं, उनके पिता भाई को लज्जा नहीं, उन्हें बस धन चाहिये। इससे समाज पर कैसा असर पड़ रहा है, इससे उनको कोई मतलब नहीं। उनकी बांटी हुई उत्तेजना असभ्य युवकों को पशु बना रही है, इसकी कोई चिन्ता नहीं। होता रहे बलात्कार, रोती रहें लड़कियां, क्या फर्क पड़ता है। चार दिन बाद वही अश्लील लड़कियां नारीवाद की बातें करेंगी।
स्मैक की पहुँच सुदूर गाँवों तक है। उसके नशे में अपराध करने वालों की संख्या रोज बढ़ती जा रही है। पर न तो प्रशासन इसे रोकने का प्रयास कर रहा है, न ही बड़े राजनैतिक लोग… जिला रेप कैपिटल बनता है तो बने…
एक बात और है। जिनकी बेटियों के साथ यह क्रूरता हो रही है, उनमें से अधिकांश उन अश्लील गायकों, कलाकारों, फिल्मों के शौकीन होते हैं। ऑर्केस्ट्रा में हल्ला कर कर के अश्लील गीत गवाने वाले लोग, सड़कों पर फूहड़ गीत बजाने वाले लोग, या अपने घर की शादियों में शौक से वेश्या का नाच कराने वाले लोग… समाज किसी एक के गंदा करने से गंदा तो नहीं होता न! उसमें सबकी भूमिका होती है। दया आती है, और भय भी होता है। कहाँ आ गए हम…

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