Bihar Elections : तुझ पर चलते हुए तीरों की तरफ क्या देखें…

Madhukar Srivastava
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Bihar Elections : मुनव्वर राणा कहते हैं…

“अपनी जख्मो से ही फुर्सत नहीं मिलती हमको।
तुझ पर चलते हुए तीरों की तरफ क्या देखें।
हारना अपना मुकद्दर ही जो ठहरा राणा
ऐसी हालत में वजीरों की तरफ क्या देखें।

“जी हां बिहार में चुनाव का प्रवाह तेज है। चुनाव का पहला चरण समाप्त हो चुका है, अब दूसरे चरण की बारी है। सत्ता के गलियारे में कुर्सी की सुगंध बिखरने लगी है। तो आईये हम लोग भी सूंघने की कोशिश करते हैं. ..।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में रिकार्ड 64.66% मतदान हुआ। बिहार में हुए किसी भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव में इतनी वोटिंग नहीं हुई थी।

ऐतिहासिक मतदान के आधार पर दिल्ली में बैठे कुछ विश्लेषक यह नैरेटिव गढ़ने में जुट गये हैं कि जब बंपर वोटिंग होती है, तब सत्ता परिवर्तन होता है! लेकिन, आंकड़े उनके खोखले नैरेटिव को सपोर्ट नहीं करते हैं।

बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 के प्रथम चरण के मतदान से पहले सर्वाधिक 62.57 प्रतिशत मतदान वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में हुआ था। क्या उस वर्ष बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ था?

वर्ष 2005 के फरवरी और अक्तूबर में हुए विधानसभा चुनावों में वर्ष 2000 की तुलना में काफी कम (करीब 17% कम) मतदान हुआ था और उस वर्ष सत्ता परिवर्तन हुआ था।

वर्ष 2005 की तुलना में 2010 में ज्यादा वोट पड़े, तो एनडीए को ज्यादा सीटें आई थीं। 2015 में 2010 से ज्यादा और 2020 में 2015 से ज्यादा वोट पड़े। हर बार लोगों ने नीतीश सरकार की वापसी के लिए वोट किया था। अब 2025 में सबसे ज्यादा वोट पड़े हैं, तो इस बार एनडीए की सीटों में बड़ा इजाफा होने की पूरी संभावना है।

पिछले कुछ लोकसभा चुनावों में भी वोट प्रतिशत बढ़ने पर एनडीए की सीटें बढ़ी हैं। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 2019 में ज्यादा वोट पड़े तो एनडीए को ज्यादा सीटें आई थीं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में कम वोट पड़े, तो एनडीए की सीटें कम हो गईं।
तमाम आंकड़े और राज्यभर से मिल रहे फीडबैक इसी तथ्य की ओर इशारा कर रहे हैं कि लोगों ने बिहार में शांति, सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए उत्साह के साथ मतदान किया है। मतदान केंद्रों पर सुबह से लगी महिलाओं की लंबी कतारें भी नतीजों के साफ संकेत दे रही थीं।
एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विपक्ष ने जब भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ झूठा नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की है, वे पहले से अधिक मजबूत होकर उभरे हैं। इस बार भी उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड को पिछले चुनाव से काफी ज्यादा सीटें मिलने जा रही हैं और इसमें अहम भूमिका मुख्यमंत्री के सेनापति, जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय कुमार झा की सटीक रणनीति की भी होगी। लोकसभा चुनाव 2024 में जदयू का जैसा शानदार परफार्मेंस रहा, विधानसभा चुनाव 2025 में उससे भी बेहतर रिजल्ट संभावित है। दिल्ली वाले विश्लेषक सिर्फ सात दिन और इंतजार कर लीजिए।

यह तो रही आंकड़ों का खेल या यूं कहें आंकड़ों की गवाही। दूसरी तरफ प्रथम चरण के मतदान का एक और दिलचस्प पैटर्न क्या कहता है साथ ही साथ उसके पॉलिटिकल बिहेवियर को समझने की कोशिश करते हैं…।

क्या तेजस्वी यादव औंधे मुंह गिर रहे हैं? या फिर बिहार की जनता इस बार नीतीश कुमार को बाहर का रास्ता दिखा रही है? या फिर अपने उद्धारक नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द बिहार की महिलाएँ चट्टान की तरह खड़ी हो गई हैं?
बिहार विधानसभा के प्रथम चरण में 121 सीटों पर रिकॉर्डतोड़ लगभग 64.46 फ़ीसदी मतदान हुआ है। इसके निहितार्थ क्या हैं? यह यक्ष प्रश्न सबके सामने है—ऊँट किस करवट बैठेगा? प्रथम चरण का मतदान पैटर्न क्या कहता है?
उस रात से ही हर तरह के लाल बुझक्कड़ प्रथम चरण के मतदान के पैटर्न और उसके परिमाण का विश्लेषण कर रहे हैं, और लगभग हर कोई इस बात से सहमत है कि 2025 के चुनाव में बिहार की महिलाएँ निर्णायक भूमिका निभा रही हैं।

भविष्य की बिहार विधानसभा के स्वरूप को समझने के लिए उनके राजनीतिक व्यवहार (पॉलिटिकल बिहेवियर) को समझना बेहद ज़रूरी है।
तेजस्वी यादव जीविका दीदियों को प्रति माह ₹30,000 और “माई बहन योजना” के तहत महिलाओं को ₹2,500 देने की बात करते रहे हैं, लेकिन उनकी बातों का महिलाओं पर कोई विशेष प्रभाव नहीं दिख रहा है।

उनकी सभाओं में युवाओं की भीड़ तो दिखाई देती है, लेकिन महिलाओं की उपस्थिति नगण्य रही है। तेजस्वी की लंबी-चौड़ी योजनाओं ने भी उन्हें हल्का कर दिया है। महिलाएँ सहजता से उनकी बातों पर भरोसा नहीं कर पा रही हैं। उन्हें स्पष्ट महसूस हो रहा है कि तेजस्वी अपना उल्लू सीधा करने के लिए पासा फेंक रहे हैं।
प्रथम चरण के मतदान के बाद मतदाताओं के नाम तेजस्वी के संबोधन के दौरान उनके बॉडी लैंग्वेज से साफ पता चल रहा है कि उनका आत्मविश्वास डगमगा गया है।

अनावश्यक रूप से उत्तेजित होकर वे मतदाताओं का आभार प्रकट कर रहे हैं और उन्हें दूसरे चरण के लिए तैयार कर रहे हैं। उनके संदेश में सहजता, सरलता और आत्मविश्वास का अभाव साफ झलकता है।

कहा भी गया है — “A good general always has a cool mind in the battlefield.”
प्रथम चरण में रिकॉर्डतोड़ मतदान और महिलाओं की अप्रत्याशित भागीदारी ने तेजस्वी को असहज कर दिया है।

उनका सामना नीतीश कुमार से है-जो एक अतिदूरदर्शी नेता हैं, जो चार नहीं, दस कदम आगे की सोच रखते हैं।

पहली बार जब नीतीश कुमार लालू कैबिनेट से बाहर निकले थे, उनका इरादा साफ था – बिहार की बागडोर अपने हाथ में लेना, न कि लालू के पीछे-पीछे चलना।
वर्ष 2005 में वे अपने इरादे में सफल हुए। इसके बाद उन्होंने बिहार की जातीय राजनीति से आगे बढ़कर महिलाओं को लेकर एक दूरदर्शी और बहुआयामी गोलबंदी की रणनीति बनाई।
इसकी शुरुआत साइकिल योजना और पोशाक योजना से हुई।
इसके बाद पंचायती राज और नगर निकायों में महिला प्रतिनिधियों को 50% आरक्षण, तथा सरकारी नौकरियों में 33% आरक्षण जैसे ऐतिहासिक कदम उठाए गए।
जो बीज उन्होंने तब बोए थे, वे अब 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्ण फसल के रूप में पक चुके हैं। इस बार की महिला मतदाता पूरी तरह गेमचेंजर बन चुकी हैं – वे इस चुनाव में नीतीश कुमार के लिए कवच का कार्य कर रही हैं। वे उन्हें एक अभेद दुर्ग की तरह अपने घेरे में लिए हुई हैं – और ऐसा हो भी क्यों न? शराब जैसे खतरनाक ज़हर से समाज को मुक्त कर, नीतीश कुमार ने महिलाओं और उनके परिवारों के उद्धार का कार्य किया है।

नीतीश कुमार पर जुबानी हमला के दौरान तेजस्वी यादव जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे वह भी उन पर उल्टा पड़ता दिख रहा है। नीतीश कुमार के लिए इस्तेमाल किए गए उनकी शब्दावली ने बिहार की महिलाओं को असहज किया है। इसका जवाब वे आक्रामक रूप से मतदान के जरिये करती दिख रही हैं।
यदि दूसरे चरण के चुनाव में भी महिलाएँ इसी तरह नीतीश कुमार के साथ खड़ी रहीं, तो निस्संदेह बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे देश के इतिहास में नीतीश कुमार का स्थान बिहार के किसी अन्य नेता के लिए “दूर की कौड़ी” बन जाएगा। एक और बात महिलाओं के बीच पीएम मोदी की पैठ…। बाकी तो रघुनाथ जी जाने…।

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