सिद्धार्थ सौरभ
नई दिल्ली : बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया. कोर्ट का कहना है, सरकार मनमाने ढंग से कार्रवाई नहीं कर सकती. कार्रवाई से पहले उन्हें नोटिस देकर बताना होगा कि घर कैसे अवैध है. इसकी जानकारी जिला प्रशासन को भी दी जाए. अगर गलत तरीके से निर्माण को तोड़ा गया है तो मुआवजा भी दिया जाए और सरकारी अधिकारी पर भी कार्रवाई की जा सकती है. किसी के घर को सिर्फ इस आधार न नहीं तोड़ा जा सकता है कि वो किसी आपराधिक मामले में आरोपी है या दोषी है. कानून को ताक पर रखकर किया गया बुलडोजर एक्शन असंवैधानिक है.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए यह साफ किया है कि मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दिया है. आइए जानते हैं क्या है अनुच्छेद 142.
क्या है अनुच्छेद 142?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 कोर्ट को विवेकाधीन शक्ति देता है. आसान भाषा में समझें तो जिन मामलों में अब तक कानून नहीं बन पाया है उन मामलों में न्याय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है. सिर्फ बुलडोजर एक्शन को लेकर ही नहीं, इससे पहले तलाक के कुछ खास मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 को आधार बनाते हुए फैसला सुनाया था.
90 के दशक से अब तक कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 142 ने सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्ति दी. हालांकि, जब भी इसे आधार बनाकर फैसला सुनाया जाता है तो यह ध्यान रखा जाता है कि उस फैसले से किसी और को कोई नुकसान न हो.
अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को दो पक्षों के बीच पूर्ण न्याय करने की विशेष शक्ति प्रदान करता है. ऐसे मामलों में अदालत किसी विवाद को इस तरह से आगे बढ़ा सकता है जो तथ्यों के अनुरूप हो. हालांकि, कई बार अनुच्छेद 142 की आलोचना भी की जा चुकी है. तर्क दिया गया कि अदालत के पास व्यापक विवेकाधिकार हैं. लेकिन न्याय को लेकर मनमाने ढंग से इसका दुरुपयोग हो सकता है.
बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट की 5 बड़ी बातें
1- कोई मनमानी कार्रवाई नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य या अधिकारी द्वारा नियमों के विरुद्ध आरोपी या दोषी के खिलाफ बुलडोजर एक्शन नहीं लिया जा सकता.
2- मनमानी हुई तो देना होगा मुआवजा: कोर्ट का कहना है कि अगर राज्य सरकार मनमाने तरीके से दोषी या आरोपी के अधिकार का उल्लंघन करती है तो मुआवजा दिया जाना चाहिए.
3- मौलिक है घर का अधिकार: कोर्ट का कहना है कि घर सिर्फ एक संपत्ति नहीं होता, यह परिवार की सामूहिक आशाओं का प्रतीक होता है. जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और आश्रय का अधिकार इसका एक पहलू है.
4 – अधिकारों की रक्षा करना अदालत की जिम्मेदारी: सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण के साथ तीन फैसलों का जिक्र करते हुए कहा, अगर कानून के खिलाफ जा कर कोई कार्रवाई की जाती है तो अधिकारों की रक्षा करने का काम अदालत का है.
5- कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती: कोर्ट ने साफ कहा है कि क्या राज्य सरकार न्यायिक कार्य कर सकती है? राज्य मुख्य कार्यों को करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकता है. अगर राज्य इसे ध्वस्त करता है तो इसे अन्यायपूर्ण माना जाएगा. बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के संपत्तियां नहीं तोड़ी जा सकती हैं.