प्रवीण शर्मा
Civil Aviation : नागरिक उड्डयन क्षेत्र किसी भी देश की बुनियादी ढांचे और विकास का प्रतिबिंब होता है। भारत जैसे देश में, जहां हवाई यात्रा लगातार बढ़ रही है, सुरक्षा, जवाबदेही और पारदर्शिता सर्वोपरि होनी चाहिए। किंतु हालिया वर्षों में इंडिगो, एयर इंडिया और अन्य एयरलाइंस की कार्यप्रणाली, एयरपोर्ट्स के निजीकरण और सरकार की ‘फ्री हैंड’ नीति ने इस क्षेत्र को एक गंभीर खतरे की ओर धकेला है।
- सुरक्षा तंत्र की खस्ताहाल स्थिति पुराने और स्तरहीन विमान: एयरलाइंस, विशेषकर इंडिगो और एयर इंडिया, वर्षों पुराने विमानों का उपयोग कर रही हैं।
स्टार एलायंस और अन्य समझौतों के तहत बिना उन्नत सुरक्षा मानकों के विमान उड़ाए जा रहे हैं।
पायलटों और ग्राउंड स्टाफ पर काम का अत्यधिक दबाव, थकावट की वजह से कई बार निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
DGCA की भूमिका सवालों के घेरे में
नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने कई बार सुरक्षा उल्लंघन के बाद भी केवल चेतावनी तक सीमित कार्रवाई की है।
जांच रिपोर्ट्स सार्वजनिक नहीं की जाती, जिससे पारदर्शिता में भारी कमी है।
- अहमदाबाद विमान हादसा: नजरअंदाज किया गया खतरा
अहमदाबाद में हुई दुर्घटना (यदि आप विशेष तारीख या घटना का उल्लेख करें तो और विश्लेषणात्मक बनाया जा सकता है) न केवल तकनीकी विफलता थी, बल्कि सुरक्षा तंत्र की विफलता का स्पष्ट प्रमाण थी। न तो मुख्यधारा मीडिया ने इस पर विस्तृत रिपोर्टिंग की, न ही कोई संसदीय या स्वतंत्र जांच सामने आई।
ऐसे हादसे “नियति” बताकर भुला दिए जाते हैं, जबकि यह सिस्टम की असफलता है।
- एयरपोर्ट्स का निजीकरण: लाभ की होड़ में सुरक्षा की बलि
देश के कई प्रमुख एयरपोर्ट (दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद आदि) अडानी समूह जैसे कुछ विशेष कॉरपोरेट्स को सौंपे गए हैं।
संचालन का उद्देश्य सेवा नहीं, मुनाफा है – जिससे टिकट महंगे, पार्किंग दरें अत्यधिक, और सुविधाएं घटिया होती जा रही हैं।
निजीकरण के बाद सुरक्षा कर्मियों की संख्या में कटौती, आउटसोर्सिंग से सुरक्षा और सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
- विपक्ष की चुप्पी: लोकतंत्र में विमर्श का अभाव
बड़े विपक्षी नेता – राहुल गांधी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल इन मुद्दों पर या तो मौन हैं या सतही बयान देते हैं।
हवाई यात्रा आम जन के लिए अब आम हो चुकी है, लेकिन विपक्ष इसे “मिडिल क्लास” का मुद्दा मानकर अनदेखा करता है।
मीडिया, विशेषकर बड़े चैनल्स, कॉर्पोरेट हितों के दबाव में इस पर रिपोर्टिंग नहीं करते।
- जनता का संकट: जान जोखिम में, विकल्प नहीं
अधिकतर मिडिल क्लास और व्यवसायिक लोग हवाई यात्रा को मजबूरीवश चुनते हैं, क्योंकि ट्रेनें देर से चलती हैं या पर्याप्त कनेक्टिविटी नहीं है।
टिकट महंगे, सुरक्षा घटिया, और कंपनियां पूरी तरह से लाभ केन्द्रित – यह त्रासदी सीधे नागरिकों को प्रभावित कर रही है।
हवाई यात्रा अब “सुविधा” नहीं, बल्कि एक असुरक्षित जुआ बन चुकी है।
- सुझाव और समाधान
- स्वतंत्र विमानन सुरक्षा आयोग की स्थापना हो जो DGCA से स्वतंत्र रूप से जांच और निगरानी करे।
- सार्वजनिक विमानों और एयरपोर्ट संचालन में पारदर्शिता हेतु RTI और जनसुनवाई अनिवार्य की जाए।
- एयरलाइंस की सुरक्षा रिपोर्ट्स प्रत्येक तिमाही में सार्वजनिक की जाएं।
- राजनीतिक विमर्श को मजबूती से खड़ा किया जाए-विपक्ष यदि इस पर गंभीरता नहीं दिखाता, तो जनआंदोलन की आवश्यकता है।
- पुराने विमानों की रिटायरमेंट नीति सख्ती से लागू की जाए।
- पायलट, तकनीकी स्टाफ और ग्राउंड क्रू के लिए न्यूनतम विश्राम अवधि, प्रशिक्षण की गुणवत्ता और कार्य का संतुलन अनिवार्य किया जाए।
भारत में नागरिक उड्डयन का क्षेत्र आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। कॉर्पोरेट लाभ, सरकारी उदासीनता और राजनीतिक चुप्पी के बीच, आम जनता की सुरक्षा दांव पर लगी है। यदि समय रहते कठोर और पारदर्शी कदम नहीं उठाए गए, तो “आसमान में उड़ान” केवल चुनिंदा लोगों की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन जाएगी।