Dalit Politics in Bihar :चुनावी साल में लालू प्रसाद यादव का जन्मदिन

Bindash Bol

Dalit Politics in Bihar : आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव का बुधवार को 78वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया। पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से इस अवसर पर दलित बस्ती में भोजन वितरण किया गया। पार्टी के निर्देश पर पूरे प्रदेश में दलित और महादलित टोलों में भोजन के साथ बच्चों के बीच कॉपी कलम का भी वितरण किया गया। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव के जन्मदिन पर पार्टी की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम को राजनीतिक पंडित बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़कर कर देख रहे हैं। सीनियर पत्रकार लव कुमार मिश्रा कहते हैं कि 90 के दशक में यह वोट बैंक लालू प्रसाद के साथ हुआ करता था। लालू प्रसाद और उनकी पार्टी इस अभियान से एक बार फिर से अपने पुराने वोटरों को जोड़ने का प्रयास कर रही है।

आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने इसी दलित वोट बैंक की बदौलत 15 साल तक शासन किया। लालू यादव सत्ता में रहते हुए खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताते थे। इसको गोलबंद करने के लिए लालू प्रसाद दलित बस्ती में जाकर उनके बच्चों को स्नान कराने से लेकर दलितों के साथ भोजन करने तक का काम करते थे। राजधानी पटना में दलितों के रहने के लिए लालू यादव के कार्यकाल में कई भवन बने और तब दलित वोट बैंक का बड़ा हिस्सा लालू यादव के साथ था। लालू प्रसाद के निर्देश पर पार्टी एक बार फिर महादलित बस्ती में अपना कार्यक्रम कर रही है।

दरअसल बिहार में दलितों की आबादी करीब 19 से 20 फीसदी है. बिहार में विधानसभा की 243 सीट में 38 सीट सुरक्षित है। इस तरह बिहार में दलित मतदाता सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में 38 में से एनडीए ने 21 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसमें से जदयू को केवल आठ सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। जबकि महागठबंधन की झोली में 17 सीटें आई थीं। यही कारण है कि बिहार में इस दफा चुनाव से पहले प्रत्येक राजनीतिक दल दलित वोटर को अपने साथ जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है। कांग्रेस ने तो अपने परपंरागत वोटरों को जोड़ने के लिए चुनाव से ठीक पहले भूमिहार प्रदेश अध्यक्ष को बदल कर दलित समाज से आने वाले राजेश राम को बिहार प्रदेश कांग्रेस का नया अध्यक्ष बनाया है।

बिहार में दलित वोटर

दलित लंबे समय तक बिहार में कांग्रेस के वोटर रहे हैं। लेकिन 90 के दशक के बाद लालू, राम विलास और नीतीश कुमार ने इस पर समय-समय पर अपना प्रभाव बढ़ाया। इसकी शुरुआत वर्ष 1990 में तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बाद शुरू हुई। मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने पर पूरे देश में ‘मंडल लहर’ शुरू हो गई थी। बिहार में भी अगड़े बनाम पिछड़ों की लड़ाई शुरू हुई।
बिहार में लालू प्रसाद यादव का इसके बाद ही राजनीतिक उदय हुआ। लालू को इस राजनीतिक लड़ाई में रामविलास पासवान और नीतीश कुमार का भी समर्थन मिला था। लेकिन, बाद में ये तीनों अलग हो गए। इसके बाद दलित वोटर समय-समय पर अपना मन और मिजाज बदलते रहे। लेकिन, 2005 आते-आते वोट बैंक में बिखराव आने लगा। बिहार में कई दलित नेता राजनीति के पटल पर आ गए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को सीएम बनाकर दलित कार्ड खेला। नीतीश कुमार के इस दांव के बाद प्रदेशभर की राजनीति को नई धुरी पर स्थापित कर दिया।

एक नजर दलित वोट बैंक पर

1- बिहार में 18 से 20% आबादी दलितों की है.
2- दलितों की कुल आबादी का 31.3 प्रतिशत आबादी चर्मकार जाति की है.
3- दुसाध जाति का दूसरा स्थान है.
4- अनुसूचित जाति की कुल आबादी का 30.9% आबादी दुसाध या पासवान की है.
5- इसके बाद क्रमश: मुसहर, पासी, धोबी और भुइया जाति की आबादी है।

2020 में 38 दलित विधायक जीते चुनाव

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 38 दलित विधायक चुनाव जीते, जिसमें पासवान जाति से 13, रविदास जाति से 13, मुसहर समाज से 7, पासी जाति के 3 और एक विधायक मेहतर जाति के शामिल हैं।
जातियों की कैटेगरी
बिहार के दलित समुदाय में 22 जातियां आती थीं। लेकिन साल 2005 में जब नीतीश कुमार सरकार में आए तो उन्होंने दलित वोट बैंक साधने के लिए दलितों को दो भागों में बांट दिया। 22 में से 21 जातियों को महादलित कैटेगरी में शामिल कर दिया। सिर्फ पासवान जाति को दलित कैटेगरी में रखा गया।

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