Delhi Elections 2025 : क्या दिल्ली में ‘आप’ को फिर सत्ता दिला पाएगी महिला सहायता योजना? जानिए पार्टी की रणनीति

Siddarth Saurabh

Delhi Elections 2025: पिछले कुछ समय में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व झारखंड ने चुनाव में महिलाओं के लिए नगद वित्तीय सहायता योजनाओं की घोषणा एक नया चलन स्थापित किया है। दिलचस्प तो यह है कि तीनों ही राज्यों में यह तरीका सफल रहा और वहां की सरकारें एंटी इंकंबेंसी को बीट कर पुनः सत्ता में काबिज होने में सफल रहीं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) भी अब इसी लीक पर है और सफलता की गारंटी साबित हो चुके इस फार्मूले को अपनाकर लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का इतिहास बनाने की तमन्ना पाले हुए है।

आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के बीच दिल्ली सरकार ने महिलाओं को हर माह 1000 रुपये की मासिक सहायता की घोषणा की है। चुनाव के बाद इस सहायता राशि को 2100 रुपये प्रति माह तक बढ़ाने का वादा किया गया है। महिला मतदाताओं को लुभाने के इस कदम से आगे बढ़ते हुए आप ने ऑटो चालकों की बेटियों की शादी के लिए एक लाख रुपये की वित्तीय सहायता जैसा वादा भी कर डाला है।

राजधानी में वोट की जंग में नारी शक्ति का रंग

सवाल यह उठ रहा है कि क्या आप को इन वादों का चुनावी लाभ मिलेगा या दिल्ली के मतदाता इनकी चुनावी सफलता की गारंटी होने की धारणा को झुठला देंगे। इन घोषणा व वादों को निभाना आप के लिए एक बड़ी चुनौती है। महिलाओं को 1000 रुपये मासिक भुगतान की घोषणा फिलहाल संदेह के घेरे में है कि चुनाव से पहले पहली किश्त भी वितरित की जा सकेगी या नहीं? यह संदेह आप के वादों को पूरा करने के उसके पुराने अनुभवों से उपजा है। आम आदमी पार्टी और उसके नेता अरविंद केजरीवाल पिछले चुनाव में कई लोकलुभावन वादे करके सत्ता में आए थे, लेकिन इन वादों को पूरा करने में या तो बहुत देरी की गई या फिर वे आंशिक रूप से ही पूरे हो पाए। इन घोषणाओं पर अमल पर संदेह एक बड़ा कारण आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल व केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से चला आ रहा टकराव भी है। माना जाता है कि इस टकराव के कारण केजरीवाल को काफी समय जेल में बिताना पड़ा। हालांकि अंतत: वे अदालती आदेश पर जेल से बाहर आए।

आतिशी के कार्यकाल को ‘खड़ाऊं राज’ की संज्ञा

जेल से बाहर आने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री पद से विरत रखते हुए शासन की औपचारिक बागडोर आतिशी को सौंपनी पड़ी। हालांकि, प्रशासन पर केजरीवाल की छायासाफ दिखाई देती है और आलोचक आतिशी के कार्यकाल को ‘खड़ाऊं राज’ की संज्ञा देते हैं। केंद्र से टकराव के हालात में मतदाताओं के मन में यह सवाल कौंध रहा है आप सरकार इन लुभावनी योजनाओं के लिए हजारों करोड़ की धनराशि कहां से जुटा पाएगी? यदि सरकार दूसरी मदों में कटौती करके यह वादा निभाती है तो स्वाभाविक है कि इससे दूसरी विकास योजनाएं प्रभावित होंगी। हालांकि केजरीवाल के प्रत्यक्ष नेतृत्व से हटने और आतिशी के सीएम बनने के बाद दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच तल्खी में कुछ कमी आई है। उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा की गई आतिशी की सार्वजनिक प्रशंसा से इसे समझा जा सकता है।

गलत साबित हुआ राजनीतिक पंड़ितों के आंकलन

इन सीमाओं के बावजूद यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि लोकलुभावन योजनाएं आम मतदाताओं और उनमें भी विशेषकर गरीब मतदाताओं को आसानी से प्रभावित करती हैं। महाराष्ट्र इसका बड़ा उदाहरण है जहां राजनीतिक पंडितों के आंकलन को गलत साबित करते हुए मतदाताओं ने भाजपानीत महायुति को तीसरी बार जिताया और वह भी ऐतिहासिक बहुमत से। इस जीत का बड़ा कारण ‘माझी लाड़की बहिण’ योजना का माना जाता है।

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