ध्रुव गुप्त
(आईपीएस)
पटना
Dhanteras : आज का धनतेरस मूल रूप से प्राचीन भारत के एक महान चिकित्सक और आयुर्वेद के जनक धनवंतरी के अवतरण का दिन यानी धनवंतरी जयंती है। धनलोलुपों ने कालांतर में इसे धनतेरस बना दिया यानी धन की पूजा का दिन। लोगों में यह अंधविश्वास गहरे बिठा दी गई कि आज के दिन सोने-चांदी में निवेश करने, विलासिता के महंगे सामान खरीदने या सट्टा या जुआ खेलने से धन तेरह गुना बढ़ जाता है। आज ज्वेलर्स की दुकानों, वाहन एजेंसियों और इलेक्ट्रॉनिक्स शोरूम में लोगों की धक्कामुक्की देख अपने पूर्वजों की दूरदर्शिता को प्रणाम करने को जी चाहता है जिन्होंने देवी लक्ष्मी के वाहन के रूप में उल्लू की कल्पना की थी। विवाद सिर्फ इस बात का हो सकता है कि उल्लु हो जाने के बाद लक्ष्मी आती है या लक्ष्मी के आ जाने के बाद लोग उल्लू बनते हैं। आज की रात धन में बढ़ोतरी का विश्वास लिए कुछ लोग जुए के अड्डों पर बड़ी बोहनी के लिए बड़ी-बड़ी रकम भी दाव पर लगा देते है। तांत्रिक बाबाओं से प्रभावित एक वर्ग का यह मानना है कि धनतेरस की रात उल्लुओं की बलि देने से संपति में बेतहाशा वृद्धि होती है। इन दिनों शहरों में बलि के लिए एक-एक उल्लू हज़ारों रुपयों में बिक रहे हैं। हमारी इस मूर्खता के कारण आज इस दुर्लभ पक्षी के अस्तित्व पर ही खतरा उपस्थित हो गया है। अपने वैभव के बेशर्म प्रदर्शन, विलासिता की चीज़ों तथा जुए-सट्टा में पैसे लुटाने और निर्दोष पक्षियों की बेरहम हत्या के बजाय धनतेरस के दिन अपने गांव-शहर अथवा अनाथालय के ज़रूरतमंद बच्चों में थोड़े लड्डू, कुछ फुलझड़ियां, चंद नए-पुराने कपडे और बस एक ज़रा मुस्कान बांटकर देखिए ! यक़ीनन आपकी ख़ुशी तेरह नहीं, सीधे छब्बीस गुना बढ़ जाएगी।
Dhanteras : धनतेरस के उल्लू
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