Diljit Dosanjh: बदल रही है फिजा

Bindash Bol

भूपेंद्र सिंह

Diljit Dosanjh: दिलजीत दोसांझ ने कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से मुलाक़ात की… कहा कि वह प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों से अत्यधिक प्रभावित है। फ़िलहाल दिलजीत, सिद्धू मूसेवाला की मृत्यु के बाद पंजाब का सबसे बड़ा सुपरस्टार है। उसके बारे में कहा जाता है कि लंबे समय तक वह खालिस्तानियों के पक्ष में चुपचाप मैसेज़िंग भी करता रहा है। लेकिन कल दिलजीत की बॉडी लैंग्वेज और भाषा बिलकुल बदली हुई नज़र आई। उसने प्रधानमंत्री को “धियान धर महसूस” भजन सुनाया और “मेरा भारत महान..” कह कर अपने आगे के रास्ते को भी स्पष्ट किया।

इसी क्रम में देखा जाए तो हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों के बाद जिस प्रकार का झटका खालिस्तान समर्थित हरियाणा के किसान संगठनों को लगा है उससे वह बिल्कुल शॉक में हैं। तमाम जाति आधारित संगठन भी इस सोच विचार में हैं कि यदि उनकी जाति हिंदू पहचान की होकर इस तरह से खालिस्तानियों की गोद में खेलेगी तो यह भविष्य में इनके लिए हानिकारक साबित होगा। इसलिए किसान आंदोलन के संबंध में इस बार की कॉल केवल पंजाब के भीतर बुलाई गई है। हरियाणा के किसान और उनसे पूर्व में सहानुभूति रखने वाले जातीय संगठन बिल्कुल शांत हैं। पंजाब में इस बार के बंद में दो महत्वपूर्ण पैटर्न बताए जा रहे हैं, पहला यह कि इस बार के बंद में स्थानीय सिक्ख समुदाय के लोग इन ख़ालिस्तान समर्थको के ख़िलाफ़ लगातार जगह जगह चौक चौराहों पर विरोध करते दिखे… और दूसरी बात यह कि पंजाब की मीडिया ने भी इन घटनाओं को रिपोर्ट किया है।
ऐसा माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री जी ने वीर बाल दिवस के सहारे सिक्ख समाज के लिए अपनी तरफ़ से जो खिड़की खोल कर रखी हुई है, उसके कारण पूर्व में ख़ालिस्तान से सहानुभूति रखने वाले लोगों को फिर से मुख्यधारा में आकर उनका समर्थन करने में कोई समस्या नहीं हो रही है।

बताते हैं कि डीप स्टेट एक्सपर्ट अरविंद ने एक्स पर तीन सप्ताह पूर्व ही दावा किया था कि दिलजीत को डीप स्टेट ने अपना एजेंट बनाया है लेकिन वह उनका वफादार बिल्कुल भी नहीं है, सारा मामला इंसेंटिव का है। उधर कनाडा में भी खालिस्तानी समर्थकों के लिए आगे की स्थिति ठीक नहीं लग रही है इसलिए कनाडा के सहारे बैठे लोग भी अब शांत हो सकते हैं। 20 जनवरी तक तमाम राजनीतिक उठापटक दिख सकता है।
कुछ लोग पूछ रहे हैं कि क्या टिकैत भी पलटी मार सकते हैं? तो ऐसे लोगों को याद रखना चाहिए कि टिकैत के संदर्भ में आम धारणा बन चुकी है कि प्रायोजित किसी भी आंदोलन में अंत में आकर वह ऊपर से बैठ जाता है। बीते यूपी विधानसभा चुनाव में भी उसने अपने व्यक्तिगत प्रयास से लखीमपुर मामले को धार्मिक रंग देने से बचा लिया था। टिकैत के बारे में अनावश्यक चिंता की कहीं कोई आवश्यकता नहीं है।

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