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Black Monday : सुबह की पहली किरण के साथ ही आज दुनिया भर के निवेशकों के चेहरों पर चिंता की लकीरें गहरी हो गई हैं। शेयर बाजारों में अचानक आई भारी गिरावट ने एक बार फिर 1987 के उस काले सोमवार की याद ताजा कर दी, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था एक भयानक संकट में डूब गई थी। आज का दिन, जिसे “ब्लैक मंडे” का डर कहा जा रहा है, एशियाई देशों के शेयर मार्किट में भूचाल ला चुका है। टोक्यो से सियोल और हॉन्गकॉन्ग से मुंबई तक, हर जगह लाल रंग की स्याही बाजार के चार्ट पर छाई हुई है।
गिरे एशियाई देशों के मार्केट
सुबह होते ही जैसे ही ट्रेडिंग शुरू हुई, सूचकांकों में तेजी से गिरावट का सिलसिला शुरू हो गया। निवेशकों की बेचैनी साफ झलक रही थी—हाथों में पसीना, आंखें स्क्रीन पर टिकीं, और दिमाग में एक ही सवाल—क्या यह वही भयावह इतिहास दोहराने जा रहा है? जापान का निक्केई सूचकांक जहां घंटों में ही हजारों अंक लुढ़क गया, वहीं भारत का सेंसेक्स और निफ्टी भी भारी दबाव में आ गए। कोरिया का कोस्पी और चीन का शंघाई कम्पोजिट भी इस तूफान से अछूते नहीं रहे। हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल है, और कारोबारी हॉल में सन्नाटे के बीच सिर्फ घबराहट भरी फुसफुसाहटें सुनाई दे रही हैं।
क्या आ रही वैश्विक मंदी?
इस गिरावट के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं—वैश्विक मंदी की आशंका, बढ़ती महंगाई, केंद्रीय बैंकों की सख्त नीतियां और भू-राजनीतिक तनाव। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह सिलसिला नहीं थमा, तो यह न सिर्फ शेयर बाजार, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को एक गहरे संकट में धकेल सकता है। छोटे निवेशकों से लेकर बड़े कारोबारी घरानों तक, हर कोई अपने नुकसान का हिसाब लगाने में जुटा है। सड़कों पर आम लोग भी इस आर्थिक भूकंप के झटके महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उनकी बचत और भविष्य की उम्मीदें भी इन बाजारों से जुड़ी हैं।
1987 फिर दोहराएगा?
क्या यह सिर्फ एक अस्थायी झटका है या फिर 1987 की तरह एक लंबे आर्थिक अंधेरे की शुरुआत? अभी यह सवाल हवा में तैर रहा है, लेकिन बाजार का मौजूदा मंजर किसी डरावने सपने से कम नहीं। हर नजर अब अगले कुछ घंटों पर टिकी है, क्योंकि यह तय करेगा कि यह “ब्लैक मंडे” सिर्फ एक डर बनकर रह जाएगा या इतिहास में एक और काला अध्याय जोड़ देगा।