रेहान
Good News : तस्वीर में दिख रहे दोनों बच्चे तपती हुई सड़क पर नंगे पांव चावल बीन रहे है।ये एक मल्टीडिमेंशल मोमेंट है, अलग अलग इंसान को ये तस्वीर अलग अलग दिखाई देगी।अगर आप इन्फ्लूएंशर या वाना बी इन्फ्लूएंसर है तो आपको ये बच्चे बेचारे दिखेंगे,इन बच्चों में कंटेंट का मौका दिखेगा।मौका इस मोमेंट की वीडियो बनाकर, बढ़िया इमोशनल गाने के साथ एक रील काटने का।अगर आप समाजसेवी इन्फ्लूएंसर है तो आप को पोटेंशियल दिखेगा, कि इस बच्चे के पास जाकर इसके सर पर हाथ फेरकर, हफ्ते महीने का राशन थमाकर एक शर्तिया वायरल रील बना लू। अगर आप एक बुद्धिजीवी चिंतक है तो आपको इस तस्वीर में समाज की दुर्दशा दिखाई देगी, सरकार का नाकारापन दिखाई देगा,कुदरत की नाइंसाफी दिखाई देगी, और आप कोई ब्लॉग,कोई पोस्ट या रील बना सकते है,इन बातों को मजबूती से उठाने के लिए।
पर अगर आप थोड़ा गौर से,बिना किसी लालच के देखेंगे तो पता चलेगा कि ये बच्चे बेचारे नहीं है। ये जो कर रहे है,इस पर तरस खाने की जरूरत नहीं है, इन्हें मदद की भी जरूरत नहीं है। गांव वगैरह में पहले जब फसल कटती थी तो बहुत से बच्चे खेतों में गेंहू की बालियां बीनते थे,कुछ बच्चे घर ले जाते थे, पर ज्यादातर बच्चे गेहूं की बालियों से गेहूं साफ करके किराने की दुकान पर पहुंच जाते थे। डेढ़ दो किलो गेहूं भी इकट्ठा हो गया तो अगले दो दिन उनसे ज्यादा अमीर, उनसे ज्यादा आत्मनिर्भर कोई नहीं होता था।वो गेहूं की बालियां उन्होंने मांगी नहीं है, चुराई नहीं है, बल्कि वो उनकी मेहनत की कमाई होती थी।जिससे वो अगले दिन या उसी रोज आइसक्रीम खरीदते थे,कुछ चटोरे बच्चे चाट फुल्की वगैरह खाते थे। कुछ बेहद गरीब बच्चे उस अनाज को अपने घर लेकर जाते थे, पर बेचारे वो भी नहीं होते थे।
ये बच्चे बहादुर होते है, इन्हें बहुत छोटी सी उम्र में समझ में आ जाता है कि जिंदगी में उन्हें हर चीज इसी तरह बीनकर खानी होगी,किस्मत ने उन्हें खेत नहीं दिया,किस्मत ने उन्हें फसल नहीं दी, पर हाथ दिए है, आंखे दी है, सामर्थ्य दिया है। किसी का छीनकर नहीं खाएंगे, किसी का चुराकर नहीं खाएंगे,और सबसे बड़ी बात,किस्मत और हालात का रोना नहीं रोएंगे।ऐसे बहादुर बच्चों को उनका काम करने दीजिए, उनके अंदर रेजिस्टेंस डेवलप होने दीजिए, मदद की जरूरत उन्हें दस साल बाद पड़ेगी,जब मामला भूख के आगे बढ़ेगा, क्यूंकि ऐसे बच्चे कभी भूखे नहीं सोते है,पर जब मामला भूख के आगे बढ़ता है,तब रील नहीं बन पाती है, और हफ्ते महीने भर के राशन में तो बिल्कुल भी नहीं बनती।
इसलिए ,हो सकता है कि कभी मोमेंट से आपका भी सामना हो, तो प्लीज दखल मत दीजिएगा। सड़क पर चावल बीन रहे बच्चों को दस किलो राशन देकर आप उन्हें बेचारा साबित नहीं कर रहे,बल्कि आप वो बेचारे है, जो उन बच्चों के पैरो में गिरकर अपने लिए लाइक कमेंट और शेयर बिन रहे है। फर्क बस इतना है कि ये बच्चे चोर नहीं है, आप चोट्टे है।