Good News : भारत का 5th जेनेरेशन इंजन क्लब में प्रवेश, USA, रूस और चीन के बाद अब भारत पांचवीं पीढ़ी के इंजन बनाने में सक्षम

Bindash Bol

Good News : भारत ने 5th जेनेरेशन इंजन क्लब में प्रवेश कर लिया है. रूस ने Su-57E इंजन की पूरी तकनीक भारत को सौंप दिया है. भारत के लड़ाकू विमान इंजन निर्माण के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा कदम सामने आया है. रूस ने Su-57E लड़ाकू विमान के इंजन के इज़्देलिये 177S की पूरी तकनीक भारत को सौंपने की मंजूरी दे दिया है. ये उन्नत इंजन अब ओडिशा में स्थित HAL कोरपुट में निर्मित किया जाएगा. ये फैसला भारत की सैन्य उड्डयन यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में वायु शक्ति का परिदृश्य ही बदल जाएगा. रुसी राष्ट्रपति पुतिन की हालिया भारत यात्रा के बाद, मॉस्को की इस मंजूरी से HAL को दुनिया के सबसे अत्याधुनिक लड़ाकू इंजनों में से एक को भारतीय धरती पर बनाने का मार्ग और ज्यादा प्रशस्त हो गया है. इस कदम के साथ… USA, रूस और चीन के बाद भारत उन चुनिंदा देशों के सूची में शामिल हो गया है जो विदेशी सहायता के बिना पांचवीं पीढ़ी के इंजन बनाने में सक्षम है..! मेरे कहने का मतलब आप लोग यह गलतफहमी में न रहे की, भारत ने अपने दम पर यहां 5th पिढी का इंजन विकसित कर लिया है. बल्कि भारत ने रुस से इंजन तकनीक लाकर खुद विदेशी सहायता के बिना अपने देश में, अपने ही दम पर 5th पिढी का इंजन बनाने जा रहा है, जिस क्लब में पहले से ही अमेरिका, रूस और चीन का एकाधिकार रहा है.

दरअसल, Izdeliye 177S रूस का एक 5th पीढ़ी का लड़ाकू विमान इंजन है जिसे रुस ने अपने पांचवीं पीढ़ी के विमान Su-57 के लिए विकसित किया है जिसे भारत अपने Su-30MKI को अपग्रेड करके Super सुखोई बनाने और 5th पीढ़ी के AMCA जैसे कार्यक्रमों के लिए एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में चुना.!177S इंजन सुपरक्रूज़, बेहतर ईंधन दक्षता और लंबी सर्विस लाइफ जैसी खूबियों के साथ आता है. भारत को इस इंजन के माध्यम से पांचवीं पीढ़ी की इंजन तकनीक प्राप्त करने का अवसर मिला है.

इस इंजन की मुख्य विशेषताएँ

1 = शक्तिशाली प्रदर्शन: यह इंजन आफ्टरबर्नर के साथ लगभग 14,500 kgf यानी कि 142 kN और बिना आफ्टरबर्नर के लगभग 9,000 kgf थ्रस्ट दे सकता है, जो मैक 1.6 तक निरंतर सुपरक्रूज़ की अनुमति देता है.

2 = पांचवीं पीढ़ी की तकनीक: इसमें सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड और उन्नत FADEC यानी कि… फुल-अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल जैसी तकनीकें हैं, जो उच्च तापमान और बेहतर स्थायित्व प्रदान करती हैं.

3 = बेहतर ईंधन दक्षता: यह पुराने इंजनों की तुलना में ईंधन की खपत कम करता है, जिससे विमान की रेंज ज्यादा बढ़ जाती है.

4 = लंबी सर्विस लाइफ: इसकी सर्विस लाइफ 6,000 घंटे तक है, जो AL-31 इंजन से लगभग चार गुना अधिक है, और ओवरहॉल के बीच का समय भी बढ़ जाता है.

5 = थ्रस्ट वेक्टरिंग: इसमें थ्रस्ट वेक्टरिंग नोजल TVC शामिल है, जिससे विमान हवा में अधिक पैंतरेबाज़ी कर सकता है.

यह इंजन भारत के AMCA प्रोग्राम और Su-30MKI अपग्रेड के लिए एक मजबूत उम्मीदवार है जो हमारे भारतीय वायुसेना को उन्नत क्षमताएं प्रदान करेगा. रूस से इस इंजन की तकनीक का हस्तांतरण, भारत को अपनी खुद की पांचवीं पीढ़ी के इंजन बनाने की क्षमता हासिल करने में मदद कर सकता है. ये पश्चिमी इंजनों पर निर्भरता कम करने और भारत के लिए रक्षा क्षेत्र में रणनीतिक विकल्प खोलने का एक अवसर है.

रुस की ये इज़्देलिये 177S इंजन जो रूस के वर्तमान AL-41F1S परिवार एवं आगामी इज़्देलिये 30 इंजन के बीच स्थित है, भारत में निर्मित होने वाला पहला पांचवीं पीढ़ी का टर्बोफैन इंजन होगा.. इस इंजन का उत्पादन केवल तकनीकी बढ़त ही नहीं देगा, बल्कि यह भारत को उस गुप्त तकनीक पर नियंत्रण हासिल करने के करीब लाएगा जिसने दशकों से आधुनिक हवाई युद्ध के संतुलन को प्रभावित किया है.. और इस हस्तांतरण पैकेज का उद्देश्य भारतीय विनिर्माण के हिस्से को बढ़ाना है. शुरुआत में ये लगभग 54% होगा जो एक दशक के भीतर 100% तक बढ़ जाएगा. यह योजना भारतीय वायु सेना को बाहरी आपूर्ति बाधित होने के जोखिम को कम करके मजबूत करेगी और भारत को उन्नत मिश्र धातुओं और उच्च तापमान सामग्री एवं सटीक एयरो-इंजन उत्पादन की वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत करेगा.

आपको मालूम होगा की दशकों से AL-31FP इंजन कार्यक्रम के केंद्र के रूप में जाना जाने वाला HAL कोरपुट अब एक पीढ़ीगत छलांग के लिए तैयार है. ‘177S’ इंजन का उत्पादन 2029 और 2030 के बीच शुरू होने की उम्मीद है, और इसे लगभग 2,800 करोड़ रुपये लगभग 336 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बुनियादी ढांचे के उन्नयन का समर्थन मिलेगा. रूस ने अपनी अत्यंत गोपनीय इंजन तकनीक को भारत के साथ साझा करने का यह निर्णय ऐसे समय में लिया है जब उसका रक्षा उद्योग पश्चिमी प्रतिबंधों और बदलती वैश्विक मांग के अनुरूप खुद को ढाल रहा है. इस माहौल में, भारत एक दीर्घकालिक औद्योगिक भागीदार के रूप में उभरता है, जिसकी विनिर्माण क्षमता उत्पादन को स्थिर करने और रूसी प्लेटफार्मों को बनाए रखने में मदद कर सकती है. यह नया समझौता भारत को FGFA कार्यक्रम की शुरुआत में अपेक्षित पहुंच के स्तर को दर्शाता है. लगभग 295 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया था, इससे पहले कि भारत गर्म-खंड धातु विज्ञान, कोटिंग्स और स्रोत कोड तक सीमित पहुंच के कारण बाहर हो गया था. “स्रोत कोड और धातु विज्ञान पर अधूरी उम्मीदें” का यह वाक्यांश वर्षों तक नीति निर्माताओं के साथ रहा. प्रतिबंधों के कारण रूस की आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव पड़ने के साथ, भारत के औद्योगिक गहराई का महत्व और बहुत ज्यादा बढ़ गया है. शुरुआत में इज़्देलिये 177S द्वारा संचालित, निर्यात केंद्रित Su-57E अब NATO-गठबंधन बाजारों से परे एक भरोसेमंद साझेदारों के निर्माण के रूस के प्रयास का केंद्र बन गया है.

TAGGED:
Share This Article
Leave a Comment