International Booker Prize: लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील बानू मुश्ताक के कन्नड लघु कथा संग्रह ‘हार्ट लैप ‘ के अनूदित संस्करण ‘हार्ट लैंप’ को लंदन में अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह पहली कन्नड कृति है जिसे 50,000 पाउंड के अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है. मुश्ताक ने मंगलवार रात ‘टेट मॉडर्न’ में एक समारोह में अपनी इस रचना की अनुवादक दीपा भास्ती के साथ पुरस्कार प्राप्त किया. मुश्ताक ने अपनी इस जीत को विविधता की जीत बताया है.
उनकी 12 लघु कहानियों का यह संग्रह दक्षिण भारत के पितृसत्तात्मक समुदाय में हर दिन महिलाओं के लचीले रुख, प्रतिरोध और उनकी हाजिरजवाबी का वर्णन करता है, जिसे मौखिक कहानी कहने की समृद्ध परंपरा के माध्यम से जीवंत रूप दिया गया है.
छह विश्वव्यापी कथा संग्रह में से चयनित मुश्ताक की कृति ने परिवार और सामुदायिक तनावों को चित्रित करने की उनकी ‘‘मजाकिया, बोलचाल की भाषा के इस्तेमाल, मार्मिक और कटु” शैली के लिए निर्णायकों को आकर्षित किया.
मुश्ताक ने कहा, ‘‘यह पुस्तक इस विश्वास से पैदा हुई है कि कोई भी कहानी कभी छोटी नहीं होती और मानवीय अनुभव के ताने-बाने में बुना गया हर धागा पूरी कहानी का भार उठाता है.” उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी दुनिया में जो अक्सर हमें विभाजित करने की कोशिश करती है, साहित्य उन खोई हुई पवित्र जगहों में से एक है जहां हम एक-दूसरे के मन में रह सकते हैं, भले ही कुछ पन्नों के लिए ही क्यों न हो.”
अनुवादक भास्ती ने कहा, ‘‘मेरी खूबसूरत भाषा के लिए यह कितनी खूबसूरत जीत है.” अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 के निर्णायक मंडल के अध्यक्ष मैक्स पोर्टर ने विजेता कथा संग्रह को अंग्रेजी पाठकों के लिए वास्तव में कुछ नया बताया. उन्होंने कहा, ‘‘एक क्रांतिकारी अनुवाद जो भाषा को बुनता है, अंग्रेजी की बहुलता में नई बनावट बनाता है.”
उन्होंने कहा, ‘‘यह अनुवाद की हमारी समझ को चुनौती देता है और उसका विस्तार करता है. यह वो किताब थी जिसे निर्णायक मंडल ने पहली बार पढ़कर ही बहुत पसंद किया. निर्णायक मंडल के अलग-अलग दृष्टिकोणों से इन कहानियों की बढ़ती प्रशंसा को सुनना एक खुशी की बात है. हम अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 की विजेता को दुनिया भर के पाठकों के साथ साझा करते हुए रोमांचित हैं.”
कौन हैं बानू मुश्ताक?
कर्नाटक के हासन से ताल्लुक रखने वाली बानू ने मिडिल स्कूल में अपनी पहली लघु कहानी लिखी थी. 26 साल की उम्र में उनकी पहली कहानी लोकप्रिय कन्नड़ पत्रिका प्रजामाता में प्रकाशित हुई, जिसने साहित्य जगत में उनकी धमाकेदार शुरुआत को चिह्नित किया.
दलित आंदोलन-किसान आंदोलनों से प्रेरित कहानी
बुकर पुरस्कार मंच पर उनके प्रोफाइल के अनुसार, बानू ने छह लघु कहानी संग्रह, एक उपन्यास, एक निबंध संग्रह और एक कविता संग्रह लिखा है. बुकर पुरस्कार फाउंडेशन को दिए एक साक्षात्कार में बानू ने बताया कि उनकी प्रेरणा सत्तर के दशक में कर्नाटक में दलित आंदोलन, किसान आंदोलन, भाषा आंदोलन, महिलाओं के संघर्ष और पर्यावरण सक्रियता से मिली.
उन्होंने कहा, “हाशिए पर पड़े समुदायों, महिलाओं और उपेक्षित लोगों के जीवन से मेरी सीधी बातचीत और उनके भावों ने मुझे लिखने की ताकत दी. कुल मिलाकर, कर्नाटक की सामाजिक परिस्थितियों ने मुझे गढ़ा.” जब उनके लेखन के बारे में पूछा गया, तो बानू ने फाउंडेशन को बताया कि वह “विस्तृत शोध” नहीं करतीं, बल्कि वास्तविक जीवन की बातचीत से प्रेरणा लेती हैं. उन्होंने कहा, “मेरा दिल ही मेरा अध्ययन का क्षेत्र है.”
महिलाओं के अधिकारों की प्रबल समर्थक बानू, उन महिलाओं की कहानियों से प्रेरित और प्रभावित हुईं जो मदद के लिए उनके पास आईं. उन्होंने धार्मिक और जातिगत उत्पीड़न के खिलाफ भी अपनी आवाज बुलंद की है.