Israel Iran Conflict : वैचारिक टकराव से अस्तित्व की जंग तक…

Bindash Bol

वीरेंद्र राय

Israel Iran Conflict : 1948 में जब इज़राइल ने खुद को एक स्वतंत्र यहूदी राष्ट्र के रूप में स्थापित किया, तब अधिकांश अरब और मुस्लिम देशों ने उसका विरोध किया। लेकिन ईरान, जो उस समय शाह की सत्ता के अधीन था, अपवाद बना। 1950 में ईरान ने इज़राइल को औपचारिक मान्यता दी और दोनों देशों के बीच व्यापार, तेल, सैन्य सहयोग तक के रिश्ते बने रहे। इज़राइली कंपनियाँ तेहरान में खुलकर काम कर रही थीं। यह संबंध एक सामान्य राष्ट्रों जैसे ही थे। तब तक जब तक ईरान में सब कुछ बदल नहीं गया। 1979 में अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति हुई और शाह का पतन हो गया। क्रांति ने ईरान को एक इस्लामी गणराज्य में बदल दिया, जो अब न केवल अपने देश के लिए इस्लामी शासन चाहता था, बल्कि पूरी मुस्लिम दुनिया का मार्गदर्शक बनने का दावा भी करने लगा। नई सरकार ने इज़राइल को “इस्लाम का दुश्मन” और “शैतान का प्रतीक” बताया। फ़िलिस्तीन की आज़ादी को अपनी क्रांति का एक मुख्य उद्देश्य बताया। इसी मोड़ से ईरान और इज़राइल के बीच वह दुश्मनी जन्मी, जो आज वैश्विक कूटनीति और सुरक्षा समीकरणों में सबसे जटिल और खतरनाक तनावों में गिनी जाती है। अब सोचिए — इज़राइल और ईरान के बीच करीब 2,000 किलोमीटर की दूरी है। न सीमा साझा करते हैं, न व्यापार। फिर भी ईरान ने खुद को “इस्लामी उम्मा” का लंबरदार मानते हुए इज़राइल को मिटाने की कसम खा ली। सवाल उठता है कि जब आप किसी देश को खुलेआम धमकी देंगे, उसे खत्म करने की योजना बनाएंगे, उसके खिलाफ अपने सरहदी संगठन (जैसे हिज़बुल्ला और हमास) को खड़ा करेंगे, तो क्या वह देश चुपचाप बैठा रहेगा? इज़राइल ने प्रतिक्रिया दी, और कई बार पहले हमला किया। क्योंकि यदि वह नहीं करेगा, तो ईरान करेगा। यह कूटनीतिक नहीं, अस्तित्व की लड़ाई है। इज़राइल के लिए यह कोई नैतिकता की परीक्षा नहीं, बल्कि एक ज़िंदा रहने की लड़ाई है। जब कोई देश चारों ओर से घिरा हो, और उसे रोज़ खत्म करने की साज़िश हो रही हो, तो वह “धर्म-नैतिकता” नहीं, सुरक्षा और सतर्कता से चलता है। यहाँ साम, दाम, दंड और भेद… सब कुछ लागू होता है। इज़राइल ने अगर इतिहास से कुछ सीखा है तो यही कि जब खतरे सिर पर हों, तब केवल क़दमों की गूंज ज़िंदा रह जाती है। यह लड़ाई वैचारिक ज़मीन से उठकर अब रक्षा के अंतिम मोर्चे तक पहुँच चुकी है और इसी मोर्चे पर इज़राइल डटा हुआ है।

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