Jharkhand : कांग्रेस के हाथ से जाएगा एक और राज्य? NDA में शामिल होंगे झारखंड CM?

Siddarth Saurabh
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Jharkhand : हाल के दिनों में देखा गया है कि जब-जब प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दिल्ली दौरे पर जाते हैं तब तक राजनीति की गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो जाती है कि अब झामुमो बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाएगी। इस बार भी चर्चा जोरों पर है। हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन के दिल्ली जाते ही प्रदेश में इस बात की शोर सुनाई देने लगी कि अब भाजपा को साथ लेकर झामुमो सरकार बनाएगी। इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो समय ही बताएगा मगर परिस्थितियों की रूपरेखा चर्चा को हवा दे रही है।

ऐसी खबरें आ रही हैं कि झारखंड की राजनीति एक बड़े बदलाव की राह पर है। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने अपने पुराने विरोधी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ जाने की इच्छा जताई है। कहा जा रहा है कि JMM के NDA में शामिल होने के लिए बड़े पैमाने पर कोशिशें चल रही हैं।

बिहार में महागठबंधन की करारी हार के कुछ ही दिनों बाद, इसका असर अब पूरब की ओर दिखने लगा है। सोरेन और बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच पर्दे के पीछे चल रही बातचीत की खबरों से रांची की सियासत में तेजी से हलचल हो रही है। कई मीडिया रिपोर्ट्स ने इस बात की पुष्टि की है कि हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना ने हाल ही में दिल्ली में बीजेपी के टॉप नेताओं से मुलाकात की, जिससे राज्य में एक नए सत्ता समीकरण के बनने की अटकलें तेज हो गई हैं।

कांग्रेस और JMM खेमों की कई रिपोर्ट्स के मुताबिक, मीडिया ने बताया है कि 16 कांग्रेस विधायकों में से कम से कम आठ विधायक, बीजेपी के बाहरी समर्थन से सोरेन के नेतृत्व वाली एक नई पार्टी में शामिल होने के लिए बातचीत कर रहे हैं। ‘द संडे गार्जियन’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस के वरिष्ठ सूत्रों ने निजी तौर पर माना है कि बातचीत चल रही है और जानकारी दी है कि “दो दिनों में चीजें साफ हो जाएंगी।”

दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्यता से बचने के लिए, कम से कम 11 कांग्रेस विधायकों को एक साथ पार्टी छोड़नी होगी, हालांकि कोई भी अंतिम फैसला स्पीकर, JMM के रवींद्र नाथ महतो पर निर्भर करेगा।

JMM के पास 34 सीटें

अगर यह गठबंधन बनता है, तो पलड़ा सोरेन के पक्ष में ही भारी रहेगा। पिछले नवंबर में चुनी गई 82 सदस्यों वाली विधानसभा में, JMM के पास 34 सीटें हैं, जबकि बीजेपी के पास 21 सीटें हैं। LJP के एक विधायक, AJSU के एक विधायक और JD(U) के एक विधायक के साथ, दोनों के बीच गठबंधन को 58 सीटें मिलेंगी, जो बहुमत के लिए जरूरी 41 सीटों से कहीं ज्यादा है।

मीडिया में बताए गए सूत्रों ने यह भी संकेत दिया है कि बातचीत में उपमुख्यमंत्री पद पर भी चर्चा हुई है। इसके उलट, कांग्रेस (16 विधायक), RJD (4) और लेफ्ट (2) के साथ JMM के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास 56 सीटें हैं, लेकिन अंदरूनी एकता दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है।

जानकारों का मानना है कि JMM के इस पुनर्विचार के पीछे मुख्य रूप से दो वजहें हैं। पहली, केंद्र के साथ बेहतर संबंधों की उम्मीद, जिससे झारखंड में रुके हुए विकास कार्यों में तेजी आ सकती है। दूसरी, सोरेन खेमे में भ्रष्टाचार से जुड़े प्रवर्तन निदेशालय (ED) के लंबित मामलों को लेकर चिंता। ये दोनों ही बातें JMM को बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए मजबूर करने की मुख्य वजहें हैं।

गौरतलब है की अगस्त में संसद में पेश किया गया एक नया बिल, जो अभी संयुक्त संसदीय समिति के पास है, उसके मुताबिक, किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को गिरफ्तारी के 31वें दिन इस्तीफा देना होगा या वे अपने आप पद खो देंगे। सूत्रों का कहना है कि इससे भविष्य में किसी भी कानूनी उलझन से पहले राजनीतिक सुरक्षा पाने की अपेक्षा बढ़ गई है।

दिशोम गुरु को भारत रत्न

ऊपर बताई गई रिपोर्ट के अनुसार, अटकलों की एक और वजह केंद्र की वह योजना है, जिसमें JMM के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, जिनका अगस्त में निधन हो गया था, को अगले साल भारत रत्न देने की बात है। JMM के भीतर कई लोगों का मानना है कि यह एक सांकेतिक जुड़ाव और एक नए गठबंधन की ओर एक राजनीतिक अवसर दोनों हो सकता है।
शिबू सोरेन को यह सम्मान झारखंड की आत्मा, उसकी संघर्ष-परंपरा और जनजातीय अस्मिता के प्रति राष्ट्र की श्रद्धा का प्रतीक बन सकता है।

आपको याद होगा पिछले वर्ष 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा चौधरी चरण सिंह और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा ने स्पष्ट संकेत कर दिया था कि देश अब उन नेताओं की कद्र कर रहा है जिन्होंने जमीन से जुड़कर बदलाव की धारा को दिशा दी। उसी फैसले ने जयंत चौधरी के एनडीए में आने का मार्ग प्रशस्त किया था। यह राजनीति से आगे बढ़कर सम्मान और वैचारिक मान्यता का विषय था।

इसी परिप्रेक्ष्य में देखें तो शिबू सोरेन जनजातीय अधिकारों की पैरोकारी, झारखंड राज्य-निर्माण का नेतृत्व और वंचित समुदायों के लिए आजीवन संघर्ष के बूते एक बड़े स्थान के अधिकारी हैं। यह मुद्दा गठबंधन की राजनीति और सत्ता की सियासत से कहीं आगे है। यह उस भारत की पहचान को स्वीकार करने का प्रश्न है, जो हर भाषा, हर जनजाति और हर संघर्ष को एक समान आदर देता है।

क्या बीजेपी-JMM के बीच पहले ही हो चुका है समझौता?

झारखंड की हिंदी मीडिया रिपोर्ट्स तो एक कदम और आगे बढ़कर दावा कर रही हैं कि JMM और बीजेपी के बीच एक “शुरुआती समझौता” पहले ही हो चुका है और दिल्ली की बैठक सिर्फ एक शिष्टाचार मुलाकात नहीं थी।

कांग्रेस ने साधी चुप्पी

जैसे-जैसे अटकलें तेज हो रही हैं, JMM और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने चुप्पी साध ली है, जबकि बीजेपी ने भी अपना रुख साफ करने से इनकार कर दिया है। हालांकि, राजनीतिक जानकार इन संकेतों को साफ तौर पर मान रहे हैं। यह देखना बाकी है कि क्या हेमंत सोरेन आखिरकार INDIA ब्लॉक से बाहर निकलकर बीजेपी से हाथ मिलाएंगे। लेकिन बदलते गठबंधन, उच्च-स्तरीय बैठकें और संभावित दलबदल यह संकेत देते हैं कि झारखंड की मौजूदा राजनीतिक कहानी एक नाटकीय मोड़ की ओर बढ़ रही है।

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