Jharkhand : झारखंड में तमाम बेचैनी के बीच यहां की राजनीति आहिस्ते-आहिस्ते चुपके चुपके करवट ले रही है। बिल्कुल खामोशी के साथ। सर्द हवाओं के बीच गुनगुनी धूप की तरह। भले ही फैसला हवा में तैर रहे हो, कुछ आकार प्रकार दिखाई नहीं दे रहा हो, मगर संवाद अंदर ही अंदर रूप ले रही है। रांची से लेकर दिल्ली तक चैनल एक्टिव मोड में है। ऐसी संभावना है कि खरवास के पहले या खरवास के बाद इस सर्द हवा में गर्माहट अवश्य मिलेगी।
इन दिनों झारखंड की राजनीति में एक बात जो चलन में है वह यह की जब-जब झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन दिल्ली जाते हैं इस बात की चर्चा होने लगती है कि JMM बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाएगी। इस दफा तो मौका भी है और दस्तूर भी। दिल्ली से लेकर रॉंची तक, हर न्यूज़ रूम में, हर बैठकी में, हर जगह एक ही सवाल घूम रहा है, आखिर हो क्या रहा है? क्या झारखंड में JMM भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने जा रही है। तमाम अटकलें तमाम अफवाहें. ..। और ऊपर से दिल्ली से लौट कर आने के बाद हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की चुप्पी ने और मामले को गहरा कर दिया।
लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और सीएम हेमंत सोरेन के बीच बातचीत हो रही है। टॉप लेवल सूत्रों के हवाले से खबर है कि यह कोई नया डेवलपमेंट नहीं है। यह तो गुरु जी के निधन के समय से ही बातें चलने लगी थी। दोनों पार्टियों की अपनी-अपनी समस्याएं हैं और एक दूसरे के पास उसके समाधान।
पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड में सियासी तस्वीर में बदलाव की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। झारखंड में राजनीतिक परिवर्तन की चर्चाओं के पीछे कुछ हालिया सियासी घटनाक्रम हैं। दरअसल झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बिहार चुनाव से पहले से ही कांग्रेस और आरजेडी से पीछा छुड़ाने के मूड में थे। गठबंधन के बावजूद बिहार चुनाव में एक भी सीट JMM को नहीं देने के चलते वो कांग्रेस से खासे नाराज हो गए।
सूत्रों का दावा है कि बिहार चुनाव के दौरान सीएम हेमंत सोरेन अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के साथ दिल्ली आए थे। इस दौरान उनकी मुलाकात बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता से हुई थी, जिसमें उन्होंने अपने सियासी प्लान को साझा किया था। उस वरिष्ठ नेता ने जो कि केंद्र में मंत्री भी हैं सीएम सोरेन से कहा था कि वो शीर्ष नेतृत्व से चर्चा करके बताएंगे।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मजबूरी
इधर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की मजबूरी है कि राज्य का सरकारी खजाना लगभग खाली हो चुका है। राज्य सरकार की कई कल्याणकारी योजनाएं केंद्र की बीजेपी सरकार से सियासी टकराव के चलते समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में हेमंत सोरेन और बीजेपी के साथ आने से केंद्र सरकार बिहार और आंध्र प्रदेश की तर्ज पर झारखंड के लिए भी खजाना खोल देगी, जिसका फायदा झारखंड की जनता को होगा और हेमंत सरकार के चुनावी वादे भी पूरे हो सकेंगे।
हेमंत सोरेन और उनके कई करीबी भ्रष्टाचार के आरोपों में जांच एजेंसियों के शिकंजे में हैं। खुद सीएम सोरेन जमीन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल रहकर आ चुके हैं। शराब घोटाला ED के हाथों में आ चुका है। जानकारों का मानना है कि बीजेपी-JMM के साथ आने से हेमंत सोरेन के लिए ऐसे मामलों में भी राहत की संभावना बन सकती है।
- डबल इंजन की सरकार आते ही केंद्र का रुका पैसा तुरंत जारी होगा।
- मइयाँ जैसी योजनाएँ तभी चलेंगी जब फंड रहेगा—तभी “कमाई” भी चलेगी।
- कांग्रेस–RJD की जगह सिर्फ एक भाजपा के हाईकमान से डील।
- ED–CBI के डर से छुटकारा।
- केंद्र में भी मंत्री बनने की संभावना प्रबल
- शिबू सोरेन को भारत रत्न मिलने की संभावना बहुत मजबूत।
- CONG-RJD के कुछ विधायक भी साथ आ सकते हैं।
- कुछ आदिवासी–क्रिश्चियन–मुस्लिम वोटर हटेंगे, लेकिन उतने ही वोट “केंद्र फंड रोके जाने” से भी नाराज़—असर बराबर।
बीजेपी नेताओं का तर्क
वहीं बीजेपी के नेताओं का तर्क है कि बिना सत्ता में भागीदारी यानि गठबंधन के बीजेपी को झारखंड में JMM के साथ जाने से कोई फायदा नहीं होगा। नेताओं का कहना है कि अगर बीजेपी गठबंधन में जाती है तो JMM के परंपरागत आदिवासी वोटों का भरोसा, सहानुभूति और समर्थन भी बीजेपी को मिलेगा। साथ ही बीजेपी-JMM का गठबंधन होने से आने वाले समय में झारखंड से खाली हो रही राज्यसभा सीटों में बीजेपी की हिस्सेदारी भी मिलेगी। बीजेपी का ये भी मानना है कि JMM–बीजेपी के साथ आने का फायदा पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी हो सकता है।
गुजरात (14.7%), MP (21.1%), छत्तीसगढ़ (30.6%), महाराष्ट्र (15%), पश्चिम बंगाल (6%) —इन बड़े ट्राइबल राज्यों में BJP को जेएमएम जैसे मजबूत आदिवासी दल का साथ बड़ा गेमचेंजर बन सकता है।
- दुमका, राजमहल, खूंटी, चाईबासा जैसी सीटों पर सीधा लाभ।
- पूर्वी भारत से कांग्रेस लगभग साफ—2029 का सबसे बड़ा लक्ष्य!
- परसेप्शन होगा क्रिएट.. “हम सरकारें गिराते नहीं, स्थिरता देते हैं”—नीतीश मॉडल। BJP के आदिवासी नेता होंगे नाराज़ ?
भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को इस बात का अंदाजा है कि आगे आने वाले समय में गठबंधन होते हैं तो राज्य के कई बड़े नेता को नागवार गुजरेगा।
कुल मिलाकर ईस बात की प्रबल संभावना है की हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन के बीच के शांत संवाद और उनकी चुप्पी उस जगह से आती है जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा अपने असली निर्णय गढ़ रहा है।
हां इतना जरूर है हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन की पॉलिटिक्स में एंट्री ने JMM के चाल और चरित्र दोनों को बदल दिया है। मसलन, भावनात्मक स्थिरता, संवाद का नया स्वर, विरासत की लय ने हेमंत को ज्यादा शांत और दूरदर्शी फैसले लेने की जगह देता है। सारी बातें JMM को उस राह पर ले जा रहा है जिसे बाहर से पढ़ना मुश्किल हो गया है। जहां तक सियासत की बात है जहां निर्णय धीमे बनते हैं, पर गहरे होते हैं। झारखंड की मौजूदा अनिश्चितता भी इसी धीमी, पर सोची-समझी प्रक्रिया का हिस्सा लगती है। थोड़ा और इंतजार खरवास के पहले या खरवास के बाद. …। बाकी तो रघुनाथ जी जाने…।
