Jitiya Vrat 2025 : जितिया व्रत का भावनात्मक पक्ष

Bindash Bol

ध्रुव गुप्त
(आईपीएस) पटना
Jitiya Vrat 2025 : अपनी संतानों की लंबी आयु के लिए स्त्रियों द्वारा रखा जाने वाला जीवित्पुत्रिका अथवा जितिया व्रत पूर्वी भारत का बहुत लोकप्रिय और कठिन व्रत है जिसमें बिना अन्न-जल के पूरे दिन-रात का उपवास रखा जाता है। अब यह तो भोली आस्था भर लगती है कि मांओं के उपवास करने से संतानों की आयु बढ़ जाती है लेकिन इस व्रत की जो एक बात मुझे बहुत अच्छी लगती है, वह है पशु पक्षियों के प्रति हमारी संवेदनशील और सांस्कृतिक दृष्टि। व्रत के पीछे प्रचलित लोककथा इसे करने वाली दो सहेलियों मादा चील और मादा सियार की है। कुछ जगहों पर मिट्टी और गोबर से उनकी प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। उपवास शुरू होने के पहले स्त्रियां अपने पूर्वजों को याद कर चील और सियार सहित कौवों, कुत्तों, गायों के लिए भोजन बनाकर घर के बाहर या छत या छप्पर पर रख देती हैं। सुबह भोजन समाप्त मिला तो माना जाता है कि पशु-पक्षी भी तृप्त हुए और घर के पूर्वज भी। मेरा पूरा बचपन तो इस रहस्य को सुलझाने में ही बीता है कि मां द्वारा घर के खपरैल वाले छप्पर पर रखे भोजन को चील और कौवे तक तो ठीक है, सियार, गाएं, कुत्ते ऊपर चढ़कर कैसे ग्रहण कर लेते होंगे। इस रहस्य के सुलझने के पहले हर बार नींद आ जाती थी। वैसे इस व्रत के पीछे पुरखों के सम्मान और पशु -पक्षियों की चिंता की जो उदात्त मानवीय भावनाएं हैं, वे मन को आज भी छूती हैं।

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