Mahalaya 2025: माना जाता है कि इसी दिन देवी दुर्गा कैलाश से पृथ्वी पर आने के लिए अपनी यात्रा शुरू करती हैं. इस दिन मां दुर्गा के धरती पर स्वागत करने के लिए उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. ऐसी मान्यता है कि देवी दुर्गा महालय के दिन पृथ्वी पर अवतरित होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं.
अश्वनी माह की अमावस्या को महालया है, पितरों को सम्मान देने और अपने मूल को अक्षुण रखने का दिवस. इस साल 21 सितंबर को महालया के दिन सूर्य ग्रहण का भी संयोग पड़ रहा है. महालया संस्कृत के दो शब्दों महा और आलय से मिलकर बना है. जिसका मतलब -देवी का महान निवास होता है. बंगाल में, महालया को दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. बंगाल में दुर्गा पूजा की शुरुआत महालया से होती है.
पितृपक्ष की समाप्ति और मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत
महालया के साथ ही जहां एक तरफ पितृपक्ष समाप्त होता है तो दूसरी ओर मां दुर्गा की पूजा शुरू होती है. महालया को देवी पक्ष की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है इस दिन से माँ भगवती 10 दिनों के लिये पृथ्वी पर निवास करती हैं और भक्तों के सभी दुःख कष्टों को हर लेती है. इस दिन एक वरिष्ठ मूर्ति कलाकार माँ दुर्गा की आँखों को चित्रित करने का कार्य करते हैं. चोक्खूदान अनुष्ठान के दौरान एक विशिष्ट क्रमों में आँखों को चित्रित किया जाता है- सबसे पहले त्रिनयन (तीसरी आंख), उसके बाद बायीं आँख और अंत में दायी आँख यह सब एक ढके हुए घेरे में पुजारी की उपस्थिति में लेलिहान मुद्रा में 108 बार ‘बीज मंत्र’ का जाप करते हुए किया जाता है.
महालया के बाद ही मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है और वह पंडालों की शोभा बढ़ाती हैं.
पितृ पक्ष की आखिरी श्राद्ध तिथि को महालया पर्व मनाया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानी अमावस्या को महालया अमावस्या (Mahalaya Amavasya 2025) कहा जाता है. पितृ पक्ष में महालया अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है.
क्या है महालया का इतिहास ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अत्याचारी राक्षस महिषासुर के संहार के लिए मां दुर्गा का सृजन किया. महिषासुर को वरदान मिला हुआ था कि कोई देवता या मनुष्य उसका वध नहीं कर पाएगा. ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया.
देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया. महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की. इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया. शस्त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया. दरसअल, महालया मां दुर्गा के धरती पर आगमन का द्योतक है.
महालया कैसे मनाया जाता है ?
वैसे तो महालया बंगालियों का प्रमुख त्योहार है, लेकिन इसे देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. बंगाल के लोगों के लिए महालया पर्व का विशेष महत्व है. मां दुर्गा में आस्था रखने वाले लोग साल भर इस दिन का इंतजार करते हैं. महालया से ही दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है.
महालया पितृ पक्ष का आखिरी दिन भी है. इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है. इस दिन सभी पितरों को याद कर उन्हें तर्पण दिया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वह खुशी-खुशी विदा होते हैं.
