Mahashivratri : नमः पार्वती पतये, हर हर महादेव….

Sarvesh Kumar Srimukh

Mahashivratri : कल्पना कीजिये उस बारात की, जिसमें वर के साथ सभी पूज्य देवता चल रहे हैं। विवाह में जिन देवों की पूजा होती है, वे सभी साक्षात आये हैं। बरमा- बिसनु इनर सुरुज सभी… घरातियों की हवा खराब है कि किस किस के आगे सर पटकें, यहाँ तो समूचा देवलोक, ब्रम्हलोक, विष्णुलोक उतर आया है…
सबसे आगे आगे वर चल रहे हैं। उनके साथ शंखकर्ण, विष्टम्भ, विकृत, विशाख, पराजित, सर्वतिक, विकृतानन, कपालक्ष्य, पिप्पल, महाकेश, चंद्रतायन, आवेशन, कुंड, पर्वतक आदि असंख्य गणनायक घेरे चल रहे हैं! सबके साथ असंख्य गण… जैसे नाम, वैसा रूप… राजाजी की बिटिया की बारात देखने आये बच्चों में भगदड़ मच गई है। “अरे बाप रे बाप… इतने भयानक बाराती कहाँ से आये रे देव! सब देह में साँप गोजर लपेटले है भाई… भागो नहीं तो यह भकाउं धर लेगा… भागो भागो, इस बारात के तो शिव ही मालिक!”
“सचमुच इस बारात के शिव ही मालिक हैं जी! वही तो वर हैं। भागो मत, कोई बाराती तिगिड़ बिगिड़ नहीं करेगा। जब शिव जी ही अपने पहुना हो गए तो भूत बैताल से कैसा डर? पीछे देखो, देवता लोग चल रहे हैं… देखो देखो! उ दाढ़ी वाले बूढ़े बाबा को, वे ही ब्रम्हाजी हैं। सब लोक वे ही बनाये हैं। उनको पहिले परनाम करो। एकदम्मे साधु देवता हैं, किसी को मारते वारते नहीं हैं। साफ बाभन देवता…”
अरे ब्रह्माजी के बगल में देखो, दाहिने ओर! हाथ में जो गदा लिए हैं… हथवा में चक्र नाच रहा है, वही। बिसनु जी महाराज हैं। सारा राकस, दानव नाम सुन के ही थर थर कांपता है। हाथ से चक्कर छूटा नहीं कि बड़े बड़े राकस का मुड़ी साफ… परनाम करो! जय हो देवता, जय हो… किरपा बनाये रखिये प्रभु! और वो आगे आगे माथे पर कलश लेकर कौन सी देवी चल रही हैं जी?
“वो चंडी माता हैं, वर की बहन हैं। जल्दी सर नवाओ जी, उतना शक्तिशाली कोई नहीं संसार में… जब कोई राकस-भाकस देवता सब से बस में नहीं आता है, तब यही माता उसका वध करती हैं।”
अरे उ सब तो ठीक है, लेकिन वर देवता दिख नहीं रहे। बैतलवा सब घेर लिया है। अरे कोई कह के हटाओ सब जी… हमारे गाँव में बरात आई है और हमही दूल्हा को नहीं देख पा रहे, यह कोई बात हुई? ए हटिये बानर जी, भालू जी… हटिये, वर को देखने दीजिये…”
मुस्कुराते गण सामने से हटते हैं, “देख लो देख लो, तुम्हारा ही अधिकार है। हमलोग तो नित्य ही देखते हैं…” वे आगे से हटते हैं, भीड़ की आंखें खुली रह गईं… बच्चों के मुँह खुले रह गए हैं… न कोई मुकुट, न ही आभूषण, ना ही रेशमी वस्त्र… नन्दी पर सवार, समूचे देह में भभूत लपेटे, गले में नागों की माला, कमर में मृगछाला, लम्बी लम्बी जटाएं, जटाओं में लिपटे नाग… कर्पूर गौरं… मुख पर पसरा अद्भुत तेज… सब जैसे सम्मोहित हो गए। आंखें टिकी रह गईं, लोग निहारते रह गए…
बाबा मुस्कुरा रहे हैं। क्षण भर में ही गण पुनः घेर लेते हैं वर को! वे जब दृष्टि से ओझल होते हैं तो सम्मोहन टूटता है नगरजन का… वे आश्चर्य में हैं। यह कैसे वर हैं जी? ऐसा बारात कहाँ आता है भाई? अद्भुत लीला बटोरे हैं हिमाचल महाराज! लेकिन वर सुन्दर बहुत हैं जी! कितना सुंदर तो हँस रहे हैं। चलो चलो, जयकार करो… नमः पार्वती पतये, हर हर महादेव….

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