MAHAVIR JAYANTI 2025 : जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती पूरे देश में धूमधाम से मनायी जा रही है. जैन धर्म के विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल सम्मेद शिखर मधुबन (यहां 24 में से 20 तीर्थंकर ने मोक्ष की प्राप्ति की थी) में भी इसकी धूम है.
यहां गुरुवार की सुबह से ही विभिन्न मंदिरों में देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालु भगवान महावीर की आराधना में जुटे हैं. यहां के बीस पंथी कोठी, 13 पंथी कोठी, जैन स्वेताम्बर सोसायटी, अनिन्दा पार्श्वनाथ समेत विभिन्न संस्था में सुबह से आराधना हो रही है. सुबह में शांति धारा के बाद शोभायात्रा निकाली गई. शोभायात्रा के साथ कई झांकियां भी निकाली गईं. इसके बाद अनिन्दा पार्श्वनाथ में भगवान का अभिषेक किया गया. यहां विभिन्न संस्था के द्वारा भंडारा का भी आयोजन किया गया है. जबकि देर शाम से कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन होगा.
गिरिडीह शहर में भी शोभायात्रा
इसी तरह गिरिडीह शहर और सरिया में भी शोभायात्रा निकाली गई. शहर के बड़ा चौक स्थित दिगंबर जैन मंदिर से गुरुवार को प्रभात फेरी निकाली गई. जिसमें काफी संख्या में महिला, पुरुष एवं बच्चे शामिल हुए. प्रभात फेरी टुंडी रोड, गद्दी मोहल्ला होते हुए वापस जैन मंदिर में समाप्त हुई.
भगवान बैठे थे पालकी पर, झूमे भक्त
गुरुवार को निकाली गई शोभायात्रा के दौरान भगवान महावीर को पालकी पर बैठाया गया था. जबकि भक्त पूरे भाव के साथ भगवान को याद कर झूम रहे थे. जैन मंदिर में शोभायात्रा पहुंचने के बाद भगवान का अभिषेक भी किया गया.
युवावस्था में लिया था सन्यास, करुणा रूपी धर्म से कराया परिचय
यहां भक्तों ने बताया कि विश्व कल्याण के लिए 24वें तीर्थकंर भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व हुआ था. भगवान महावीर का जन्म तब हुआ जब हिंसा-पशु बलि, जात-पात का भेदभाव बढ़ गया था. युवावस्था (30 वर्ष की आयु) में ही सन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल पड़े. 12 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. इसके बाद उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया. 72 वर्ष की आयु में उन्होंने पावापुरी (बिहार) में मोक्ष की प्राप्ति की.
भगवान महावीर ने दुनिया को सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया. भगवान ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया है. भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत के प्रत्येक आत्म के लिए सामान्य है. भगवान कहते हैं कि अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है. भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया था. बताया गया कि जैन ग्रंथों के अनुसार समय समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी को आत्मिक सुख की प्राप्ति का उपाय बताते हैं.