Manmohan Singh : आवाज़ों के बाज़ारों में खामोशी पहचाने कौन ?
मुंह की बात सुने सभी दिल के दर्द को जाने कौन ?
“मुझे यकीन है कि इतिहास मेरे साथ न्याय करेगा” …2014 में अपनी विदाई के मौके पर मनमोहन सिंह ने कहा था ऐसा..मेरा भी हमेशा से ये मानना रहा है कि इतिहास सबके साथ न्याय करता है..मौजूदा दौर में जीते हुए हम वर्तमान को ही सच मान लेते हैं..यकीन मानिए जब आज से तीस-चालीस साल बाद मनमोहन सिंह का इतिहास लिखा जाएगा तो वो इतना नकारात्मक नहीं होगा जितना आज बना दिया गया है..जितना मनमोहन सिंह जी के बारे में पढ़ते जाता हूं उतनी इज्जत बढ़ती जाती है..बंटवारे के बाद भारत आए थे..बचपन में ही मां का साया सिर से उठ गया…गरीबी के बावजूद कड़ी मेहनत से पढ़ाई की..पंजाब यूनिवर्सिटी से लेकर कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक पढ़ाई में अव्वल रहे..इनका बायोडाटा देखेंगे तो हैरान रह जाएंगे..लेकिन कभी अपनी गरीबी को बेचा नहीं..अपने राजनीतिक बचाव में कभी ये नहीं कहा कि विपक्ष एक बिना मां के पले गरीब के बेटे का अपमान कर रहा है..विपक्ष एक अल्पसंख्यक (सिख) पर हमला कर रहा है..मनमोहन सिंह के मुंह से कभी सुना क्या कि मैं बिना मां गरीब का बेटा हूं..मुझे शिखंडी, निकम्मा मत कहो..उनके कार्यकाल में भी गलतियां हुईं। किससे नहीं होती ? मनमोहन सिंह की चुप्पी का हमेशा मजाक बनाया गया..उन्हें ‘मौन’मोहन सिंह कहा गया लेकिन जो बड़बोले हैं वो हर ज्वलंत मुद्दे पर चुप्पी साध जाते हैं..
पोस्ट-2
1994 में ब्रायन लारा ने 375 रन बनाकर टेस्ट क्रिकेट में नया रिकॉर्ड बनाया लेकिन ऑस्ट्रेलिया के मैथ्यू हेडेन ने 2004 में 380 रन बनाकर लारा का रिकॉर्ड तोड़ दिया..कुछ ही महीनों बाद लारा ने फिर 400 रन बनाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया..तब हेडन ने लारा के लिए कहा था कि “अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही होता है”..लारा बहुत अच्छा खिलाड़ी और इंसान है..मुझे खुशी है कि ये रिकॉर्ड फिर लारा के नाम हो गया है..
आजकल मनमोहन सिंह को देखकर मुझे ये बात याद आती है..कुछ साल पहले मनमोहन सिंह ने कहा था कि समकालीन मीडिया और विपक्ष की तुलना में इतिहास उनके प्रति दयालु होगा..इतिहास उनका उदार तरीके से मूल्यांकन करेगा..मनमोहन सिंह मूलत: भले आदमी थे..हमेशा नौकरशाह रहे तो उनका चरित्र ही ऐसा बन गया कि Authoritative नहीं हो पाए..लेकिन जैसा मैथ्यू हेडेन ने लारा के लिए कहा था कि “अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही होता है”..इतिहास का इंतज़ार कौन करे ? सरदार मनमोहन सिंह को उनके कामों का क्रेडिट मिलना अभी से शुरू हो गया है..1929-30 की मंदी के बाद सबसे भयंकर ग्लोबल मंदी 2008 में आई लेकिन भारत में किसी को मंदी का पता ही नहीं चला..मनमोहन सिंह ने बहुत अच्छे से इसका सामना किया..तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबाामा ने भी कहा था कि ग्लोबल मंदी के दौरान इसका सामना करने में मनमोहन सिंह की मदद काफी मूल्यवान साबित हुई..1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण और उदारीकरण में उनकी भूमिका सभी जानते ही हैं..
मनमोहन सिंह का इस बात के हमेशा मजाक उड़ाया जाता था कि वो बोलते नहीं हैं..लेकिन अब जबकि हमें बोलने वाला प्रधानमंत्री मिला तो वाकई लगने लगा है..If speech is silver than silence is gold. अभी तो शुरूआत है..मुझे यकीन है जब 30-40 साल बाद जब 21वीं सदी की भारतीय राजनीति का इतिहास लिखा जाएगा तो हिस्ट्री मनमोहन सिंह के प्रति Kinder होगी..
पोस्ट-3
गलतियां सबसे होती हैं सरदार जी से भी हुईं लेकिन ये भी सच है कि अपने बेचारेपन की फर्जी कहानियां कभी नहीं बेची..शरणार्थी होने के बावजूद ना अपनी गरीबी का रोना रोया, ना विक्टिम कार्ड खेला..प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया जाए तो सब कुछ अपनी काबिलियत से हासिल किया..सरदार जी का शिक्षा का रिकॉर्ड तो चमत्कृत करने वाला है..
मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि History will judge me kindly..History will be kinder to me.इतिहास उनको सही से जज कर रहा है और जो सम्मान प्रधानमंत्री रहते (खासकर दूसरे कार्यकाल में) नहीं मिला वो अब मिल रहा है
हज़ारों जवाबों से अच्छी है खामोशी मेरी
ना जाने कितने सवालों की आबरू रख ली..।