नई अमेरिकी सुरक्षा नीति : चीन दुश्मन नंबर-1, रूस पर नरमी, भारत सबसे अहम साझेदार…US की सुरक्षा रणनीति में बड़ा बदलाव
NSS : व्लादिमीर पुतिन की दिल्ली यात्रा ने एशिया की राजनीति में एक नई हलचल ला दी है। इस बीच वॉशिंगटन से ऐसा धमाका हुआ है जिसने भू-राजनीति को और भी गरमा दिया। अमेरिका ने अपनी नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजी (NSS) जारी कर दी है। इस स्ट्रेटेजी में अमेरिका ने बेझिझक कहा है कि चीन उसका दुश्मन नंबर-1 है और भारत उसका सबसे महत्वपूर्ण साझेदार।
अमेरिका ने नवंबर 2025 की अपनी National Security Strategy में कई बड़े ऐलान किए हैं। कुछ प्वाइंट इतने सीधे हैं कि समझिए दुनिया की राजनीति की दिशा बदलने वाली है।
- चीन घोषित हुआ दुश्मन नंबर-1
नई स्ट्रेटेजी में चीन को अमेरिका की सबसे बड़ी चुनौती और मुख्य प्रतिद्वंदी बताया गया है। अमेरिका का दावा है कि चीन आर्थिक, तकनीकी और सैन्य क्षेत्र में सबसे बड़ा खतरा है। इंडो-पैसिफिक में चीन का दबदबा रोकना अब फर्स्ट प्रायोरिटी है। यानी साफ है कि अमेरिका खुलेआम बता रहा है कि अगला दशक US vs China पावर बैटल का होने वाला है।
- भारत को बताया गया महत्वपूर्ण साझेदार
अमेरिकी रणनीति में भारत को key partner in Indo-Pacific and global security कहा गया है। इसका मतलब अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ मजबूत बैलेंस के रूप में देख रहा है। रक्षा, टेक्नोलॉजी, सप्लाई चेन में भारत से गहरी साझेदारी बढ़ाई जाएगी। QUAD, इंडो-पैसिफिक और ट्रेड में भारत को सेंटर स्टेज पर रखा गया है। यह बात पाकिस्तान को सबसे ज्यादा चुभ रही है, क्योंकि अब चीन-भारत-अमेरिका की त्रिकोणीय राजनीति में पाकिस्तान का रोल तेजी से छोटा हो रहा है।
- रूस के साथ टकराव को बताया गलत रास्ता
इस दस्तावेज में अमेरिका ने यह भी माना कि रूस के साथ लंबी लड़ाइयाँ या फ़ॉरेवर वॉर गलत थीं। रूस से टकराव कम करने और स्ट्रैटेजिक स्टेबिलिटी बनाने की जरूरत है। यानि अमेरिका समझ चुका है कि चीन को रोकने के लिए रूस को पूरी तरह दुश्मन बनाना एक रणनीतिक गलती है। यहीं पर पुतिन का भारत दौरा और अहम हो जाता है कि क्योंकि अब रूस-भारत-अमेरिका के रिश्तों में नया समीकरण बन रहा है।
- अमेरिका ने कहा कि दुनिया में हस्तक्षेप कम करेंगे
नई रणनीति में कहा गया कि अब यूएस हर जगह पुलिस की भूमिका नहीं निभाएगा। अनावश्यक विदेशी युद्धों से दूरी रखी जाएगी। लेकिन जहां अमेरिकी हित खतरे में होंगे, वहां पावरफुल रिस्पॉन्स दिया जाएगा। मतलब युद्ध कम, रणनीतिक दबदबा ज्यादा।
अचानक ऐसा क्या हुआ कि भारत, अमेरिका के केंद्र बिंदु में आ गया। चलिए इसे समझने की कोशिश करते हैं। अमेरिका ने अपनी नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी (NSS) जारी कर दी है, और इस बार इसमें सबसे बड़ा बदलाव यह है कि भारत को ग्लोबल स्ट्रैटेजी में एक सेंट्रल रोल दिया गया है। यह वही NSS है जो बताती है कि आने वाले सालों में अमेरिका दुनिया के साथ कैसे रिश्ते बनाएगा, किन देशों को पार्टनर मानेगा और किनको चुनौती के रूप में देखेगा। खास बात यह है कि 2022 में बाइडेन सरकार की स्ट्रैटेजी में चीन को अमेरिका की सबसे बड़ी चुनौती बताया गया था और ट्रंप की नई NSS में चीन स्ट्रैटेजी के “केंद्र” में है। चीन के बढ़ते प्रभाव से निपटने के लिए भारत को सबसे अहम देश कहा गया है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर अमेरिका भारत पर इतना भरोसा क्यों कर रहा है? और इस बदलाव का आने वाले समय में क्या मतलब निकल सकता है? आइए इसे बहुत सरल भाषा में समझते हैं।
भारत पर फोकस क्यों बढ़ा? क्या बदल गई है US की स्ट्रैटेजी?
नई NSS बताती है कि ट्रंप प्रशासन अब अमेरिका की ताकत को पहले अपने पड़ोस यानी वेस्टर्न हेमिस्फियर में बढ़ाना चाहता है। यह मनरो डॉक्ट्रिन जैसा मॉडल है जिसमें अमेरिका चाहता है कि उसकी शक्ति और प्रभाव उसके आसपास सबसे ज्यादा रहे। लेकिन एशिया में सबसे बड़ा सवाल अभी भी वही है-चीन का बढ़ता दबदबा। चीन आर्थिक, तकनीकी और सैन्य शक्ति के तौर पर लगातार बढ़ रहा है। उसका असर ताइवान से लेकर इंडो-पैसिफिक के समुद्री इलाकों तक दिखाई देता है। यहां अमेरिका अकेले चीन का मुकाबला नहीं कर सकता। यही कारण है कि वह भारत को एक “अनिवार्य पार्टनर” मान रहा है।
भारत इंडो-पैसिफिक में इतना अहम क्यों है?
NSS कहती है कि अमेरिका को भारत के साथ व्यापार, डिफेंस और टेक्नोलॉजी साझेदारी को और गहरा करना चाहिए, ताकि भारत इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा में और मजबूत भूमिका निभा सके। एशिया में चीन को संतुलित करने के लिए तीन चीजों आर्थिक सामर्थ्य, मजबूत लोकतांत्रिक सिस्टम और बड़ी सेना और रणनीतिक लोकेशन की जरूरत होती है। भारत इन तीनों में फिट बैठता है। यही कारण है कि US मानता है कि भारत को मजबूत किए बिना चीन का मुकाबला करना संभव नहीं।
क्या भारत सच में चीन को बैलेंस कर सकता है?
NSS के अनुसार चीन को रोकने में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। ताइवान पर किसी भी तरह का संघर्ष US की सबसे बड़ी चिंता है। अमेरिकी सेना कहती है कि अकेले वह पूरी जिम्मेदारी नहीं उठा सकती। इसलिए एशिया में “स्थानीय शक्ति” का मजबूत होना जरूरी है। भारत यहां एक “रीजनल पावर” के तौर पर सामने आता है और भविष्य में “ग्लोबल पावर” के तौर पर भी।
US क्यों कह रहा है कि भारत उसकी चीन-रणनीति का मुख्य हिस्सा है?
इसका जवाब सीधा है कि भारत की आबादी बड़ी है। सेना मजबूत और लगातार आधुनिक हो रही है। लोकतंत्र, मीडिया और पब्लिक सिस्टम अमेरिका जैसे मॉडल के करीब हैं। चीन के मुकाबले भारत का भरोसा US पर ज्यादा है। भारत का भूगोल रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। इसीलिए NSS में लिखा है कि भारत एक आज़ाद, खुले और सुरक्षित इंडो-पैसिफिक के लिए सेंट्रल (India is central to a free, open and secure Indo-Pacific) है।
यूरोप और मिडिल ईस्ट पर ट्रंप प्रशासन का नया रवैया क्या बताता है?
नई NSS बहुत साफ करती है कि मिडिल ईस्ट अब US की प्राथमिकता नहीं है। अमेरिका को अब ऊर्जा के लिए मिडिल ईस्ट पर निर्भर रहना नहीं पड़ता। यूरोप पर US खर्च कम करना चाहता है। इज़राइल और ग्लोबल शिपिंग लेन्स की सुरक्षा उसके लिए मुख्य फोकस रहेंगे। इसका अर्थ यह है कि एशिया पर अमेरिका का फोकस और भी ज्यादा हो जाएगा और वहीं भारत की भूमिका और बढ़ जाएगी। US डेमोक्रेसी नहीं थोपेगा लेकिन सहयोग चाहता है। स्ट्रैटेजी के अनुसार अमेरिका अब दुनिया को अपने तरीके का लोकतंत्र लागू नहीं करेगा। वह सिर्फ शांतिपूर्ण व्यापार और साझेदारी चाहता है। लेकिन अपने पार्टनर्स को लोकतांत्रिक आज़ादियां बनाए रखने की सलाह देता रहेगा।
इससे भारत पर क्या असर पड़ेगा? क्या बदलाव होंगे?
नई NSS के बाद भारत के लिए तीन बड़े संकेत निकलते हैं कि US–India रक्षा साझेदारी और मजबूत होगी। हथियार, टेक्नोलॉजी, समुद्री सुरक्षा, साइबर डोमेन-हर सेक्टर में सहयोग बढ़ेगा। भारत को इंडो-पैसिफिक में “लीडर” की भूमिका निभानी पड़ेगी। भारत अब सिर्फ पार्टनर नहीं, एक क्षेत्रीय शक्ति बनेगा। चीन और भारत का भू-राजनीतिक मुकाबला और तेज हो सकता है। US के समर्थन से भारत की स्थिति मजबूत होगी, लेकिन चीन की प्रतिक्रिया भी आ सकती है।
क्या अमेरिका की नई रणनीति भारत को नई ऊंचाई दे सकती है?
बिल्कुल। नई नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दशक में US–India साझेदारी वैश्विक राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता बन सकती है। US चाहता है कि भारत चीन को बैलेंस करे। इंडो-पैसिफिक को स्थिर रखे। तकनीकी और सैन्य साझेदारी में आगे बढ़े। भारत को इससे दुनिया में एक बड़ा, मजबूत और निर्णायक नेतृत्वकारी स्थान मिल सकता है।
