Parisiman Vivad : देश में एक बार फिर परिसीमन का मुद्दा चर्चा में है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस मुद्दे पर चर्चा के लिए 5 मार्च को सर्वदलीय बैठक की घोषणा की है। साथ ही कहा है कि यह ‘दक्षिणी राज्यों पर तलवार की तरह लटक रहा है।’ हाल ही उन्होंने यह भी कहा था कि परिवार नियोजन उपायों के कारण तमिलनाडु की संसदीय सीटों में कमी हो सकती है। कुछ समय पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी राज्य की घटती प्रजनन दर को लेकर चिंता जाहिर की थी और लोगों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की बात कही थी। असल में भारत के दक्षिणी राज्यों की आबादी उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में कम है और उन्हें डर है कि अगले परिसीमन में उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। इन राज्यों को लगता है कि परिवार नियोजन के राष्ट्रीय कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए पुरस्कार मिलने के बजाय उनको सजा दी जा रही है। हालांकि केंद्र ने वादा किया है कि दक्षिणी राज्यों को वर्षों से जनसंख्या नियंत्रण के कारण नुकसान नहीं होगा।
क्या है परिसीमन?
परिसीमन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से निर्धारित किया जाता है। एससी-एसटी आरक्षित सीटें भी इसी के अनुसार निर्धारित की जाती हैं। अंतिम परिसीमन आयोग 2002 में स्थापित किया गया था, जबकि अंतिम परिसीमन अभ्यास 1976 में पूरा हुआ था। परिसीमन का निर्धारण प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर लोकसभा में सीटों के आवंटन के फार्मूले से किया गया है। इसलिए, सीटों को जनसंख्या में बदलाव के अनुसार समायोजित किया जाना चाहिए।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 81 कहता है कि लोकसभा में सीटों का आवंटन विभिन्न राज्यों के बीच इस प्रकार किया जाना चाहिए कि ‘उस संख्या और राज्य की जनसंख्या के बीच का अनुपात, जहां तक संभव हो, सभी राज्यों के लिए समान हो’।
परिसीमन की आवश्यकता क्यों?
कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या बढ़ जाती है, जबकि कुछ क्षेत्रों में कम हो जाती है। परिसीमन यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक नागरिक को समान रूप से प्रतिनिधित्व मिले। समय के साथ, शहरों और कस्बों की सीमाओं में बदलाव होता है। परिसीमन इन परिवर्तनों को ध्यान में रखता है और सीमाओं को समायोजित करता है।
परिसीमन आयोग क्या करता है?
परिसीमन आयोग क्या करता है?
राष्ट्रपति द्वारा एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग नियुक्त किया जाता है और इसमें उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त और राज्य चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं। आयोग नए निर्वाचन क्षेत्र बनाने या सीमाओं में बदलाव के लिए जनसंख्या में परिवर्तन की जांच करता है। सार्वजनिक प्रतिक्रिया लेने के बाद, आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रकाशित करता है। 1976 में आपातकाल के दौरान, लोकसभा सीटों की संख्या को फ्रीज कर दिया गया और परिसीमन को 2001 तक टाल दिया गया था। वर्ष 2001 में, परिसीमन को 25 वर्ष के लिए फिर टाल दिया गया था।
परिसीमन का क्या है आधार?
संविधान के अनुच्छेद 82 में कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना पूरी होने के बाद, प्रत्येक राज्य की लोकसभा सीटों को जनसंख्या परिवर्तन के आधार पर समायोजित किया जाना चाहिए। साथ ही, अनुच्छेद 81 में कहा गया है कि लोकसभा में 550 से अधिक सदस्य नहीं हो सकते।
परिसीमन और चिंता
अगला परिसीमन 2026 के बाद होने की संभावना है। हालांकि, 2021 की जनगणना में देरी के कारण यह स्पष्ट नहीं है कि यह कब होगा। परिसीमन में सीटों का आवंटन जनसंख्या के आधार पर किया जाएगा। इसका मतलब है कि अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को अधिक सीटें मिल सकती हैं, जबकि कम जनसंख्या वाले राज्यों को कम सीटें। यही कुछ राज्यों की चिंता का कारण है। हालांकि केंद्र सरकार ने कहा है कि दक्षिणी राज्यों को जनसंख्या नियंत्रण के लिए दंडित नहीं किया जाएगा और उनकी लोकसभा सीटों की संख्या में कमी नहीं होगी। सूत्रों के हवाले से खबर है कि परिसीमन में जो सीट बढ़ेगी वह भी अनुपातिक होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर उत्तर प्रदेश के लोकसभा सीट 80 से बढ़कर 160 होती है तो दक्षिण या किसी भी राज्य की सीट भी दोगुनी होगी।
ज्यादा जनसंख्या, ज्यादा सीटें
यदि जनसंख्या डेटा अगले परिसीमन का आधार बन जाता है तो लोकसभा सीटों की समग्र संख्या में बदलाव किए बिना, यूपी को अनुमानित 14 निर्वाचन क्षेत्रों का लाभ हो सकता है। वहां की लोकसभा सीटों की संख्या 94 हो सकती है, जो अभी 80 है।
कम जनसंख्या, सीटें कम
वर्तमान में आंध्रप्रदेश की लोकसभा सीटें 25 हैं जो 20 रह जाने की आशंका है। तेलंगाना की 17 से 15, केरल की 20 से 14 और तमिलनाडु की 39 से 30 रह सकती हैं। इस तरह आंध्रप्रदेश को 5, तेलंगाना को 2, केरल को 6 और तमिलनाडु को 9 सीटों का नुकसान हो सकता है।
विवाद का समाधान
परिसीमन एक जटिल मुद्दा है जिसके लिए सावधानीपूर्वक विचार और सभी पक्षों के साथ परामर्श की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि परिसीमन प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और सभी नागरिकों के लिए समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने वाली हो।