Poila Boisakh 2025 : दुनियाभर में ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक 1 जनवरी को नया साल मनाया जाता है. लेकिन भारत में अलग-अलग धर्म संप्रदायों में नववर्ष भी अलग-अलग तिथियों में मनाया जाता है. हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होती है, सिख नववर्ष वैशाखी के दिन मनाते हैं, पारसी नववर्ष नवरोज पर मनाते हैं वहीं जैन समुदाय के लोग दिवाली के अगले दिन को नववर्ष के रूप में मनाते हैं. इसी तरह से बंगाली समुदाय के लोग ‘पोइला बोइशाख’ को नया साल (Bengali New Year) मनाते हैं.
पोइला बोइशाख आज
बंगाली नववर्ष बंगाली समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन होता है, जिसे त्योहार की तरह मनाया जाता है, जोकि हर साल अप्रैल के मध्य में मनाया जाता है. इस साल पोइला बोइशाख या बंगाली नववर्ष 15 अप्रैल 2025 को मनाया जाएगा. इस दिन से बंगाली संवत 1432 की शुरुआत होगी. पोइला का अर्थ होता है ‘पहला’ और बोइशाख का अर्थ है ‘साल का पहला महीना’. यानी पोइला बोइशाख का अर्थ है साल का पहला दिन.
पोइला बोइशाख पर क्या करते हैं लोग
- इस दिन लोग एक दूसरे को शुभो नोबो बोरसो कहकर नए साल की शुभकामना देते हैं.
- महिलाएं पारंपरिक बंगाली परिधान लाल बॉर्डर वाली सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं और पुरुष धोती-कुर्ता पहनते हैं.
- सुबह जुलूस निकाला जाता है, जिसमें लोग गीत और नृत्य होते हैं.
- साल के पहले दिन बंगाली लोग पंजिका (बंगाली पंचांग या कैलेंडर) खरीदते हैं.
- घरों में पारंपरिक भोजन जैसे भात, माछ (मछली), पायेश (खीर) आदि तैयार किए जाते हैं.
- सौभाग्य व समृद्धि के लिए घर-घर लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है.
- शुभ-मांगलिक कार्य जैसे नए काम या व्यवसाय की शुरुआत, गृह प्रवेश, मुंडन आदि के लिए पोइला बोइशाख के दिन को शुभ माना जाता है.
पोइला बोइशाक का इतिहास
बंगाली नववर्ष यानी पोइला बोइशाख का इतिहास मुगल शासकों से जुड़ा है. मान्यता है कि मुगल शासन के समय इस्लामी हिजरी कैलेंडर था, जोकि चंद्र पर आधारित था और हर साल तिथियां बदलती रहती थी, जिससे किसानों को समस्या होती थी, क्योंकि फसलें सूर्य आधारित मौसम पर निर्भर थी. इस तरह से कृषि चक्रों से अलग होने कारण हिजरी कैलेंडर मेल नहीं खाता था. तब अकबर ने अपने खगोलशास्त्री फतुल्लाह शिराजी से बंगालियों के लिए एक नया कैलेंडर लाने को कहा था, जिससे कि कर (Tax) संग्रह करने में आसानी हो. फसल के समय बादशाह कर संग्रह का समय तय करना चाहते थे और इसलिए उन्होंने इसकी पहल की. इसलिए माना जाता है कि बोंगाब्दो की शुरुआत 594 ईस्वी से हुई और बंगाली संवत का पहला साल बोंगाब्द 1 अकबर के आदेश पर ही लागू हुआ था.
कुछ इतिहासकारों के अनुसार बंगाली युग की शुरुआत 7वीं शताब्दी में राजा शोशंगको के समय हुई. इसके अलावा दूसरी ओर यह भी मत है कि चंद्र इस्लामिक कैलेंडर और सूर्य हिंदू कैलेंडर को मिलाकर ही बंगाली कैलेंडर की स्थापना हुई थी. कुछ ग्रामीण हिस्सों में बंगाली हिंदू अपने युग की शुरुआत का श्रेय सम्राट विक्रमादित्य को भी देते हैं. इनका मानना है कि बंगाली कैलेंडर की शुरुआत 594 ई. में हुई थी.