जो युवा हैं भारत की ताकत वही बढ़ा रहे टेंशन, कहीं चीन-जापान वाला ना हो जाए हाल
बढ़ती आबादी के बीच भारत में क्यों चर्चा में घटती प्रजनन दर
Population crisis India : भारत पीएम नरेंद्र मोदी के ‘2047 में विकसित भारत’ के संकल्प पर आगे बढ़ रहा है और देश की तरक्की में युवा वर्ग अपना बेहतरीन योगदान दे रहे हैं. लेकिन अब ऐसी रिपोर्ट सामने आई है जिसमें यही युवा वर्ग देश का टेंशन बना रहे हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर यही चलता रहा तो भारत की भी स्थिति चीन और जापान जैसी न हो जाए. बात देश में तेजी से घटते प्रजनन दर की हो रही है.
संयुक्त राष्ट्र की नई जनसांख्यिकी रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि अप्रैल तक भारत की आबादी 146.39 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है, साथ ही यह भी कहा गया कि देश की कुल प्रजनन दर घटकर 2.0 से भी नीचे आ गई है और यह 1.9 तक आ गई है. जबकि भारत में प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से कहीं नीचे है.
अनुमानों के करीब आबादी
साल 2025 के लिए संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट में जनसांख्यिकी संकेतक विशेषज्ञों के एक तकनीकी समूह द्वारा 2019 में प्रकाशित भारत की आबादी के उसके अनुमान के करीब हैं. इन अनुमानों के अनुसार, 2025 तक भारत की आबादी 141.10 करोड़ होने का अनुमान रखा गया था.
हालांकि भारत में हर 10 साल पर होने वाली जनगणना (2021) में इस बार देरी हो गई है. सरकार ने कुछ दिन पहले यह ऐलान किया है कि जनगणना मार्च 2027 तक पूरा कर लिया जाएगा. देश में पिछली जनगणना 2011 में कराई गई थी.
क्या होता है TFR
भारत के महापंजीयक कार्यालय की ओर से 2021 में प्रकाशित लेटेस्ट सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम स्टैटिकल रिपोर्ट के अनुसार, भारत में TFR यानी कुल प्रजनन दर 2.0 था, पिछले साल भी यही दर था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रिपलेस्मेंट लेवल TFR अब राष्ट्रीय स्तर पर आ गया है.”
कुल प्रजनन दर (TFR) एक महिला द्वारा उनकी प्रजनन आयु के दौरान अपेक्षित बच्चों की संख्या को मापता है. रिपलेस्मेंट लेवल हर अगली पीढ़ी के लिए पिछली पीढ़ी की आबादी को बदलने के लिए जरूरी दर है.
चीन और जापान में भी गिर रही प्रजनन दर
“स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन 2025: द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस” नाम से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 40 सालों में आबादी में गिरावट की दर शुरू होने से पहले यह बढ़कर 170 करोड़ हो जाएगी. रिपोर्ट में भारत को “दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश” बताया गया है. जबकि चीन की वर्तमान आबादी 141.61 करोड़ बताई गई है.
कुल प्रजनन दर में गिरावट का असर यह होगा कि देश की आबादी में गिरावट तो आएगी ही, साथ में युवाओं की संख्या भी कम होती जाएगी. कभी दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश चीन ने अपने यहां सख्त एक बच्चा नीति का पालन किया और इस वजह से वहां पर प्रजनन दर काफी गिर गई. अभी वहां पर यह दर 1.18 है. चीन सरकार इसे बढ़ाने को लेकर काफी कोशिश कर रही है. इसी तरह 2024 में जापान की प्रजनन दर 1.15 तक आ गई है. इन्हीं 2 देशों में ही नहीं बल्कि कई अन्य देश भी प्रजनन दर की गिरावट को लेकर चिंतित हैं. अब भारत में भी गिरते प्रजनन दर को लेकर चिंता जताई जा रही है.
2040 तक चीन में 40 करोड़ होंगे बुजुर्ग
जापान अपने यहां बुजुर्गों की बढ़ती आबादी को लेकर परेशान है. पिछले साल सितंबर में आए सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान की बुजुर्ग आबादी रिकॉर्ड 3.6 करोड़ से अधिक है, जिसमें 65 साल या उससे अधिक आयु के लोग अब जापानियों का करीब एक तिहाई हिस्सा हैं. देश में बुजुर्गों की आबादी करीब 29.3 प्रतिशत है, जो 1 लाख से अधिक लोगों वाले किसी भी अन्य देश या क्षेत्र की तुलना में यह अधिक है. जापान के आंतरिक मामलों और संचार मंत्रालय ने बताया था कि 65 साल या उससे अधिक आयु वर्ग में करीब 2.53 करोड़ महिलाएं हैं, जबकि 1.5 करोड़ आबादी पुरुषों की है.
इसी तरह चीन भी दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती उम्रदराज आबादी में से एक देश है. चीन में 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की आबादी 2040 तक 28% तक पहुंचने का अनुमान है, और यह लंबी जीवन प्रत्याशा और घटती प्रजनन दर की वजह से है. साल 2019 तक चीन में 60 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों की संख्या 25 करोड़ से अधिक थी. जबकि 65 साल और उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या 17 करोड़ से अधिक लोग थी. 2040 तक, चीन में अनुमानित 40 करोड़ से अधिक लोग (कुल जनसंख्या का 28%) 60 साल से अधिक आयु के होंगे.
भारत में युवाओं की कुल कितनी आबादी
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है कि बड़ी संख्या में लोग अपने वास्तविक प्रजनन लक्ष्य को हासिल करने में सक्षम नहीं हैं. रिपोर्ट में इसे वास्तविक संकट करार दिया गया है, न कि अधिक जनसंख्या या कम जनसंख्या. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अब प्रजनन क्षमता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
किसी भी देश की आबादी में युवा वर्ग बेहद अहम होते हैं. भारत के युवाओं की आबादी में करीब 24% आबादी 0-14 आयु वर्ग के हैं, 17% आबादी 10-19 आयु वर्ग के हैं, तो 26% 10-24 आयु वर्ग के हैं. इसके अलावा, रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि देश में 68% आबादी कामकाजी उम्र (15-64 वर्ष) की है.
देश में फिलहाल बुजुर्ग आबादी (65 और उससे अधिक) 7 फीसदी है, लेकिन यह आंकड़ा आने वाले कुछ दशकों में बढ़ने की उम्मीद है क्योंकि जीवन शैली में सुधार होता है, यह भारत में सरकार के अनुमानों की पुष्टि करता है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 तक, पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 71 साल तो महिलाओं की 74 साल होने का अनुमान है.
क्या हो सकते हैं दूरगामी प्रभाव?
- युवाओं की संख्या में गिरावट
कार्यबल में कमी - बुजुर्गों की निर्भरता में वृद्धि
- पेंशन और स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ
- आर्थिक उत्पादकता पर असर
आने वाले दशक में घटने लगेगी भारत की आबादी
गौरतलब है कि भारत दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है, जो चीन को पीछे छोड़ पहले स्थान पर पहुंच गया है. लेकिन जिस तरह से देश में प्रजनन दर में गिरावट आ रही है, उससे आने वाले कुछ दशकों में देश की आबादी बढ़ने की जगह घट सकती है. इसके साथ ही घटती प्रजनन दर का सीधा असर सीधा असर देश की आबादी में मौजूद संतुलन पर भी पड़ेगा. शोधकर्ताओं के मुताबिक आबादी में बच्चों, जवानों और बुजुर्गों के बीच संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रजनन दर का 2.1 के आसपास होना जरूरी है. ताकि देश में पर्याप्त बच्चे हों, जो आगे चलकर वयस्कों की जगह ले सकें.
लेकिन देश में जिस तरह से प्रजनन दर में गिरावट आ रही है, वो आबादी में संतुलन को बनाए रखने के लिए जरूरी स्तर से काफी नीचे है. मतलब की इसकी वजह से देश में धीरे-धीरे जवानों की जगह बुजुर्गों की आबादी कहीं ज्यादा बढ़ सकती है.नतीजन देश को आने वाले समय में श्रमिकों की कमी से जूझना पड़ सकता है.
रिसर्च की मानें तो भारत ऐसा अकेला देश नहीं है जहां टीएफआर में गिरावट आने से आबादी पर असर पड़ेगा.भारत की तरह ही दुनिया के आधे से अधिक यानी 204 में से 110 देशों में प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर यानी 2.1 से भी कम रह गई है. आशंका है कि यदि यह सिलसिला आगे भी जारी रहता है तो सदी के अंत तक 97 फीसदी देश घटती टीएफआर से प्रभावित होंगें.बता दे कि आबादी के बीच संतुलन को बनाए रखने के लिए यह प्रतिस्थापन स्तर बेहद आवश्यक है.
यह अध्ययन इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) के शोधकर्ताओं द्वारा किए ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) के आंकड़ों पर आधारित है. शोधकर्ताओं के मुताबिक भले ही दुनिया के अधिकांश देश प्रजनन दर में आती कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन फिर भी सदी के दौरान कई कमजोर देशों में यह जोखिम उतना नहीं है.
चाड में प्रति महिला सात है प्रजनन दर
प्रजनन दर में आती गिरावट की यह प्रवृत्ति विशेष रूप से दक्षिण कोरिया और सर्बिया जैसे देशों के लिए बेहद चिंताजनक है, जहां यह दर प्रति महिला 1.1 बच्चे से कम है. लेकिन उप-सहारा अफ्रीका के कई देशों में, यह प्रजनन दर अभी भी बेहद ऊंची बनी हुई है. इन क्षेत्रों में यह प्रजनन दर वैश्विक औसत से करीब दोगुनी है यानी वहां प्रति महिला औसतन चार बच्चे हैं. प्रति महिला द्वारा जन्म दिए जाने वाले बच्चों की संख्या के लिहाज से देखें तो चाड सबसे ऊपर है. जहां 2021 में प्रजनन दर प्रति महिला सात दर्ज की गई. प्रजनन दर का यह आंकड़ा मौजूदा समय में दुनिया में सबसे अधिक है.
वैज्ञानिकों का यह भी अंदेशा है कि आने वाले दशकों में वैश्विक प्रजनन दर काफी नीचे आ जाएगी. सदी के अंत तक 204 में से महज छह देशों में यह प्रजनन दर प्रति महिला 2.1 जीवित जन्में बच्चों से अधिक होने की सम्भावना है. इन देशों में समोआ, सोमालिया, टोंगा, नाइजर, चाड और ताजिकिस्तान शामिल हैं. वहीं दूसरी तरफ भूटान, बांग्लादेश, नेपाल और सऊदी अरब सहित 13 देशों में, यह दर प्रति महिला एक बच्चे से भी कम रहने का अनुमान है.
रिसर्च से यह भी सामने आया है कि बच्चों के जन्म का जो वैश्विक पैटर्न है, उसमें भी भारी बदलाव आ रहा है. जहां 2021 में दुनिया के 29 फीसदी बच्चे उप-सहारा अफ्रीका में पैदा हुए थे. वहीं सदी के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर 54 फीसदी तक पहुंच सकता है. यह आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि अफ्रीका में आबादी तेजी से बढ़ेगी. जो इन देशों में महिलाओं की शिक्षा और आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों की पहुंच में सुधार की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है.
रिपोर्ट में यह भी आशंका जताई गई है कि आने वाले दशकों में, अधिकांश बच्चे दुनिया के कुछ सबसे संसाधन-सीमित क्षेत्रों में पैदा होंगे. अनुमान है कि सदी के अंत तक दुनिया के तीन-चौथाई यानी 77 फीसदी से अधिक जीवित बच्चे निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में जन्म लेंगें. यह देश पहले ही अनगिनत सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहे हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन, गरीबी, आहार की कमी, कुपोषण, स्वास्थ्य, साफ पानी, स्वच्छता जैसी समस्याएं शामिल हैं. ऐसे में यदि इन देशों में आबादी बढ़ती है, तो इन समस्याओं का सामना करने के लिए पहले से कहीं अधिक तैयार रहने की जरूरत होगी.
अब क्या करना होगा?
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि “फर्टिलिटी क्राइसिस” यानी प्रजनन क्षमता में गिरावट को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है. भारत को अभी से नीतिगत स्तर पर ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे युवा वर्ग को परिवार बढ़ाने के लिए आर्थिक, सामाजिक और संरचनात्मक समर्थन मिल सके.
इसमें महिला सशक्तिकरण, बाल देखभाल की सुविधा, मातृत्व अवकाश जैसी नीतियां शामिल हो सकती हैं.