कठिनाई भैया जी की

P.K.Karn

डॉ प्रशान्त करण
(आईपीएस)
रांची :
रामलाल कहने लगे कि भैया जी बहुत अधिक तनाव में थे . उनके प्रतिद्वंदी रघुवंशी जी ने कैसा कार्ड चल दिया जैसे अमेरिका में ट्रम्प ने चल दिया और कमला हारिस . लेकिन अभी तो भैया जी के पास समय है , मतदान जो अभी नहीं हुआ है . दोनों प्रतिद्वंदी पुरुष हैं . स्त्रियों का अमोघ शस्त्र उनकी जिव्हा होती है , जिससे बड़े से बड़ा नामी – गिरामी , शौर्यवान , धैर्यवान पति क्षण भर में धराशायी हो जाता है , उसी प्रकार पुरुषों का अचूक शस्त्र उसकी स्त्री के किसी प्रहार पर उसकी तर्क सहित व्याख्या स्त्री के अचूक शस्त्र के प्रभाव को निरस्त कर देती है . इसी प्रकार भैया जी को स्त्री शस्त्र का ऐसा प्रयोग करना होगा ताकि उसके काट की तार्किक व्याख्या रघुवंशी की बुद्धि कर ही न सके .
रवि बाबू रामलाल के इस सटीक ज्ञान से प्रभावित हुए और पूछ बैठे कि भैया जी अब क्या करेंगे .
रामलाल तनिक गंभीर हुए फिर बोले – काट है मेरे पास . लेकिन पहले जान तो लीजिए कि रघुवंशी ने कौन सा कार्ड चलकर उन्हें चारों खाने चित्त कर रखा है . हुआ यह कि भैया जी दस – बारह नौकरानी बाहर से ले आए और उनपर इतना स्नेह लुटा दिया कि सभी यहीं रहने के जुगाड़ में लग गयीं . अब वे भैया के बाहुबलियों से विवाह कर उनकी सम्पत्ति और भूमि हड़प रही हैं . कई स्थानों पर मीलों बहु टोले बन गए . अब भैया जी कुछ कर नहीं सकते . उनके बड़े वोट बैंक वे ही हैं . रघुवंशी जी ने उन भुक्तभोगी बाहुबलियों को उकसाकर उनको खांडवप्रस्थ का स्मरण करा रहे हैं . बाहुबली सोते से जग गए हैं और नौकरानियों को खदेड़कर उनके वास्तविक स्थानों पर भेजने की व्यवस्था में लग गए हैं . भैया जी को अब भाईचारा का ही कार्ड चलना बचा है . रवि बाबू कहने लगे – सुना नहीं ? रघुवंशी जी इसी पर तो अब कह रहे हैं . रामलाल बोले – तब क्या रघुवंशी जी अपने अमोघ अस्त्र भी चल दिए ? रवि बाबू बोले – भाईसाहब ! रघुवंशी ने नस पकड़ ली है . वे कहने लगे हैं कि भैया जी के भाईचारे का अर्थ भाईचारा शब्द के संधिविच्छेद में निहित है . वे भाई को चारा समझ रहे हैं . लालटेन की मदद से उसके प्रकाश में लोग चारे को महत्व देने वालों से ज्ञान ले रहे हैं . लोग कटने के भय से बँट नहीं रहे .
रामलाल सिर पर हाथ रखकर बोले – गयी भैंस पानी में . भैया जी अब अपनी लुटिया स्वयं डूबा गए . क्या आवश्यकता थी बाहरी नौकरानियों की ? सौन्दर्यप्रेम उनको ले ही डूबेगा !

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