Ram VIvah : राम ! राम हमारे पाहुन हुए…..

Sarvesh Kumar Srimukh

Ram VIvah : जनकपुर की वाटिका से पुष्प लेकर गुरु के पास लौटते उन सांवर गोर किशोरों को देखते ही मुग्ध हो गए सब के सब… क्या राज परिवार, क्या दास दासियाँ और क्या नगर जन… एक साथ असंख्य कण्ठों से प्रार्थना फूट पड़ी, “हे दैव! सिया सुकुमारी को यही वर मिले। इससे अधिक सुन्दर तो कोई हो ही नहीं सकता, जैसे स्वयं विष्णु भगवान मानुस का रूप धर कर आ गए हों…हे बरम बाबा, हे काली माई…”
डगर किनारे खेलते बच्चों को संदेह हुआ, “इतना सुन्दर पुरुष कहीं होता है भला? कहीं माया तो नहीं?” एक आगे बढ़ा और हाथ से छू दिया सांवरे को! फिर चिल्लाते हुए भागा- राम रे राम! सचमुच मानुस ही हैं ये तो… हे भोले बाबा, इन्ही से उठवा दो न धनुष! राजकुमारी से बियाह हो जाय तो हर साल फागुन में ससुराल घूमने आएंगे ही… फिर जम के रङ्ग लगाएंगे इनको…
पूजन के लिए मन्दिर जाने को निकली देवियों ने जी भर निहारा दोनों भाइयों को, फिर उस दिन की पूजा के बाद सबने यही मांगा गौरा देई से, “हे मइया! अपना सारा बल दे देना उस सांवरे राजकुमार को, कि उठा ले धनुष और पूरी हो जाय जनक राजा की साध… बिटिया के लिए इससे अच्छा वर न मिलेगा।”
पवित्र भाव के साथ की गई सामूहिक प्रार्थना कैसे न सुनते भोले बाबा? कैसे न मानतीं गौरा देई?
दिन चढ़ते ही गुरुदेव के साथ राम चले रंगभूमि। और राम के पीछे पीछे चले सारे नगरवासी, जिन्हें विश्वास हो चला था कि ये ही उठाएंगे धनुष… जनक राजा आदर सहित दिखाने ले गए वह महान शिवधनुष, जिसकी प्रत्यंचा चढ़ा सकना ही इस युग में सर्वश्रेष्ठ योद्धा होने का प्रणाम था। पूर्वज जिस धनुष से युद्ध जीतते रहे हों, उसकी प्रत्यंचा भर चढ़ा देना ही संतानों का शौर्य सिद्ध कर देता है।
कुछ और राजे महाराजे आये थे स्वयम्बर में। धनुष देखने, उठाने, प्रत्यंचा चढ़ाने… वे जब धनुष की ओर बढ़ते तो समूचा जन समूह मन ही मन प्रार्थना करने लगता- भारी हो जाओ धनुष देवता! इस मोटके से तो उठना ही मत… और जब वह निराश लौटता तब उनके मन को जो शांति मिलती की पूछिये मत…
फिर राम उठे! ज्यों एकादशी को देव उठे। मुंह तक आ चुके कलेजे को किसी तरह थाम कर उठ गया उपस्थित जनसमूह! एक साथ कोटि कण्ठ की हुहुकार उठी। राम के हाथों में सबकी प्रार्थनाएं समा रही थीं।
सबके हाथ जुड़े हुए थे। होठों पर प्रार्थना के शब्द नाच रहे थे। राम बढ़े, धनुष उठाया, प्रत्यंचा चढ़ाई, और चटक कर टूट गया वह महान धनुष… लोगों ने देखा, भूमि पर धनुष के दो टुकड़े गिरे हुए हैं और अयोध्या का सांवरा राजुकमार मुस्कुरा रहा है। सब चीख पड़े- राम हमारे पाहुन हुए।
सिया चलीं। भोर के गौरीपूजन के समय उन्होंने जो मांगा था, वह मिल गया था। प्रसन्न भाव से वरमाला डाल दिया उस महान योद्धा के गले में, जो कुछ ही क्षण पूर्व अद्भुत पराक्रम दिखाने के बाद भी उनके आगे थोड़ा सा झुक कर खड़ा था।
बोलिये, जय जय सियाराम। विवाह पंचमी की बहुत बहुत बधाई आप सब को…

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