RINPAS 100 Year Celebration: RINPAS के 100 साल, मानसिक रोगियों के लिए उम्मीद की नई किरण

Sushmita Mukherjee
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  • 1925 से अबतक 35 लाख मानसिक रोगी यहां से हंसते-हंसते निकले

RINPAS 100 Year Celebration: कोई किताबों के बोझ तले दबकर टूट गया। कोई नौकरी खोकर अंधेरे में डूब गया। किसी ने अपनों के तिरस्कार से मनोबल खो दिया। किसी को इश्क में नाकामी मिली तो संतुलन खो दिया। ऐसे लोगों की जिंदगी में रांची स्थित संस्थान रिनपास यानी ‘रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस’ उम्मीदों की नई रोशनी भर रहा है।

आज ही के दिन 4 सितंबर को यह संस्थान अपनी स्थापना के 100 साल पूरे कर लिए हैं। रांची के कांके इलाके में हरियाली के बीच बसा ‘रिनपास’ सिर्फ एक अस्पताल नहीं है, बल्कि भारतीय मनोचिकित्सा के इतिहास का जीवंत दस्तावेज है। अब यह संस्थान आधुनिक मनोचिकित्सा, काउंसलिंग और पुनर्वास के क्षेत्र में मानक तय कर रहा है।

आज न सिर्फ झारखंड, बल्कि पूरे पूर्वी भारत के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का सबसे बड़ा आधार है। रांची की धरती पर इस संस्थान की यात्रा भले ही 100 साल पुरानी है, लेकिन इसकी कहानी शुरू होती है 1795 में। मुंगेर (बिहार) में गंगा नदी के किनारे एक मानसिक चिकित्सालय की नींव रखी गई। नाम था- ल्यूनेटिक एसाइलम। करीब ढाई दशक बाद, 1821 में इसे पटना कॉलेजिएट स्कूल परिसर में शिफ्ट कर दिया गया। लंबे समय तक यह वहीं चला, लेकिन जैसे-जैसे मरीजों की संख्या बढ़ी और जगह कम पड़ने लगी, इसे नई जगह तलाशनी पड़ी। यही खोज रांची के कांके तक पहुंची, जहां 4 सितंबर, 1925 को संस्थान को आधिकारिक रूप से शिफ्ट कर दिया गया।
उस वक्त यहां मरीजों की संख्या महज 110 थी। दिलचस्प बात यह है कि संयुक्त भारत के दौरान यहां सिर्फ बिहार, बंगाल और ओड़िशा ही नहीं, बल्कि आज के बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान, उससे पहले ढाका) के मरीज भी इलाज के लिए आते थे। उस दौर में इसका नाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ रखा गया था। 1958 में इस संस्थान का नाम बदलकर रांची मानसिक आरोग्यशाला कर दिया गया। लेकिन असली मोड़ आया 1994 में, जब एक घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसके संचालन में दखल दिया और इसे स्वायत्त बनाने का आदेश दिया। लंबी प्रक्रिया के बाद 10 जनवरी 1998 को यह संस्थान स्वायत्त हुआ और नए नाम रांची इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरो साइकेट्री एंड एलायड साइंस (रिनपास) के साथ सामने आया।

यह नाम उसकी आधुनिक पहचान और विस्तृत सेवाओं का परिचायक बन गया। झारखंड राज्य बनने के समय संस्थान में करीब 16,175 मरीज पंजीकृत थे। बिहार और ओड़िशा के मरीजों का इलाज यहां होता था और दोनों राज्य इलाज का खर्च वहन करते थे। एक वक्त था, जब इसे लोग ‘पागलखाना’ के नाम से जानते थे। सामाजिक कलंक और अज्ञानता ने मानसिक बीमारियों को मजाक और शर्म का विषय बना दिया था, लेकिन समय के साथ रिनपास ने इस धारणा को बदलने में अहम भूमिका निभाई।
आज इस संस्थान में देश के हर कोने से हर रोज करीब 600 लोग ओपीडी में इलाज कराने पहुंचते हैं। यहां भर्ती मरीजों की संख्या भी 500 से ज्यादा है। ऐसे मरीजों की संख्या लाखों में है, जो इलाज के बाद न सिर्फ मनोरोग से उबरे, बल्कि नई जिंदगी शुरू की। रिनपास के निदेशक डॉ. अमूल रंजन सिंह कहते हैं, ‘रिनपास की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि इसने 100 साल की यात्रा में लाखों निराश लोगों में उम्मीद जगाई है। सबसे बड़ी बात यह है कि आज अगर मनोरोग के प्रति लोगों की धारणाएं बदली हैं और ग्रंथियां दूर हुई हैं, तो उसमें रिनपास जैसे संस्थान की बहुत बड़ी भूमिका है।’

1925 से अबतक 35 लाख मानसिक रोगी यहां से हंसते-हंसते निकले

ककि स्थित रिनपास ने चिकित्सा व सेवा के 100 साल पूरे कर लिये। 100 साल पूरे होने पर आज गुरुवार को स्निपास अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। रिनपास में अबतक 35 लाख से ज्यादा मानसिक रोगियों का सफल उपचार किया जा चुका है। गुरुवार को आपंक्ति समारोह के मौके पर भारतीय डाक विभाग की ओर से एक स्मारक डाक टिकट जारी किया जाएगा, जो रिनपास की ऐतिहासिक और मानवीय सेवाओं को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान देगा। कार्यक्रम के दौरान रिनपास के 100 साल की यात्रा से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री की प्रस्तुति की जाएगी।

इसके बाद टेली-गेटाल हेल्थ (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) और डिजिटल एकेडमी का उद्घाटन भी किया जाएगा। रिनपास के अधिकारियों ने बताया कि रिनपास की यात्रा 1795 में मुंगेर के लूनैटिक अश्यलम से शुरू हुई थी। कई स्थानांतरणों के बाद अप्रैल 1925 में यह रांची में स्थापित हुआ और इसे इंडियन मेंटल हॉस्पिटल (आईएमएस) नाम दिया गया। 4 सितंबर 1925 को यहां पहले 110 पुरुष मरीन और फिर 19 सितंबर को 53 महिला गरीन भर्ती किए गए। स्वतंत्रता के बाद 1958 में इसका नाम बदलकर रांची मानसिक आरोग्यशाला (आरएमए) और इसके बाद पुनः 10 जनवरी 1998 को नाम परिवर्तन कर रिनपास कर दिया गया।

रोगियों के लिए इनडोर वार्ड के अलावा नशा मुक्ति केंद्र

रिनपास दृढ़ता, सुधार और शोष का प्रतीक है। 550 बेडेड रिनपास में मानसिक रोगियों के लिए इनडोर वार्ड, 50-बेड का नशामुक्ति केंद्र, और पुनर्वास के लिए हाफ-वे होम उपलब्ध हैं। इस संस्थान में मनोचिकित्सा डीएनबी कोर्स, क्लीनिक साइकोलॉजी कोर्स, मनोरोग सामाजिक कार्य में एम. फिरल और पीएचडी कोर्स संचालित किए जाते हैं। रिनपास नेशनल मेडिकल कमीशन और आरसीआई (पुनर्वास परिषद) से एफिलिएटेड है।

ओपीडी सेवाएं

  • मानसिक बीमारियों का इलाज
  • आंख और दंत रोगों की जांच और इलाज
  • सामान्य बीमारियों का इलाज, फिजियोथेरेपी
  • मादक पदार्थों के सेवन से संबंधित परामर्श एवं इलाज
  • तनाव, किंता, संघर्ष व जीवन की अन्य समस्याओं का परामर्श
  • महिला रोगों का महिला विशेषज्ञों द्वारा इलाज
  • बाल एवं किशोर परामर्श
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